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चीन के इरादे ख़तरनाक, लद्दाख में पीछे नहीं हटेगा! 

तिब्बत और लद्दाख जैसे पर्वतीय क्षेत्र साइबेरिया की तरह बंजर दिखाई देते हैं लेकिन वे बहुमूल्य खनिजों और अन्य प्राकृतिक संपदा से भरे हैं। चीन ने गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, हॉट स्प्रिंग्स और लद्दाख के अन्य हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया है। इन क्षेत्रों में मूल्यवान खनिज हैं जिनकी चीन के बढ़ते उद्योग को आवश्यकता है। 
जस्टिस मार्कंडेय काटजू

लद्दाख में होने वाली घटनाओं के बारे में सभी तरह की बातें कही जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू में कहा कि भारतीय क्षेत्र में कोई घुसपैठ नहीं हुई है लेकिन बाद में गलवान घाटी के सम्बन्ध में निर्विवाद तथ्यों के सामने आने पर उन्होंने अपने बयान को बदल दिया। निसंदेह चीनी लद्दाख के गलवान घाटी, पैंगांग त्सो, हॉट स्प्रिंग्स आदि क्षेत्रों में घुस आये हैं और इनके अपना क्षेत्र होने का दावा कर रहे हैं। 

आख़िर सच क्या है?

चीन ने बड़े पैमाने पर अपने देश में औद्योगिक आधार बना लिया है। अपने विशाल 3.2 ट्रिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार के साथ बाजार और कच्चे माल की तलाश करते हुए वह लाभदायक निवेश के लिए नए रास्ते बना रहा है, जैसा कि साम्राज्यवादी देश करते हैं।

तिब्बत और लद्दाख जैसे पर्वतीय क्षेत्र साइबेरिया की तरह बंजर दिखाई देते हैं लेकिन वे बहुमूल्य खनिजों और अन्य प्राकृतिक संपदा से भरे हैं। सलामी रणनीति का उपयोग करके चीन ने गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, हॉट स्प्रिंग्स और लद्दाख के अन्य हिस्सों (1960 के दशक में अक्साई चिन पर पहले ही कब्ज़ा कर लिया था) पर कब्ज़ा कर लिया है। इन क्षेत्रों में मूल्यवान खनिज हैं जिनकी चीन के बढ़ते उद्योग को आवश्यकता है। 

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सभी को एक बात स्पष्ट रूप से समझनी चाहिए कि यह राजनीति केंद्रित अर्थशास्त्र है और इसलिए राजनीति को समझने के लिए इसके पीछे के अर्थशास्त्र को समझना ज़रूरी है। अर्थशास्त्र के लोहे की तरह कुछ सख़्त क़ानून हैं जो स्वतंत्र कार्य करते हैं।

उदाहरण के लिए, अंग्रेजों ने भारत को क्यों जीता? उन्होंने ऐसा किसी पिकनिक के लिए या आनंद के लिए नहीं किया। उन्होंने भारत पर विजय प्राप्त की क्योंकि उनके उद्योगों के एक निश्चित स्तर तक बढ़ जाने के कारण उन्हें विदेशी बाजारों, कच्चे माल और सस्ते श्रम की आवश्यकता थी।

इसी तरह, प्रथम विश्व युद्ध का कारण क्या था? यह दुनिया के उपनिवेशों के पुनर्विभाजन के लिए था। ब्रिटेन और फ्रांस ने पहले ही अपना औद्योगिकीकरण कर लिया था और अधिकांश पिछड़े देशों को अपना उपनिवेश यानी बाजार और सस्ते कच्चे माल और सस्ते श्रम का स्रोत बना लिया था। जर्मनी में औद्योगिकीकरण बाद में शुरू हुआ लेकिन जल्द ही इसने ब्रिटिश और फ्रांस को टक्कर दी और फिर जर्मनों ने भी अधिक उपनिवेशों की मांग की। लेकिन ब्रिटिश और फ्रांस उनके साथ उपनिवेशों का बंटवारा करने के लिए तैयार नहीं थे और इसके परिणामस्वरूप युद्ध हुआ।

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जापान ने चीन और अन्य देशों पर आक्रमण क्यों किया? अपने बढ़ते उद्योग के लिए कच्चा माल और बाजार प्राप्त करने के उद्देश्य से!

इसी तरह, चीन द्वारा बड़े पैमाने पर औद्योगिक आधार बनाए जाने के बाद उसे बाजार और कच्चे माल की आवश्यकता है और इसने उसे साम्राज्यवादी बना दिया है। उसने एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और यहां तक कि विकसित देशों में भी प्रवेश कर लिया है।

वर्तमान में चीनी बहुत सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर आर्थिक उपायों का उपयोग करते हैं, सैन्य शक्ति का नहीं। हालांकि, वे कभी-कभी सैन्य उपायों का भी उपयोग करते हैं और उन्होंने एक विशाल सेना भी बना ली है। वर्तमान में वे सलामी रणनीति का उपयोग करते हैं, कदम दर कदम आगे बढ़ते हैं। यह इस बात से पता चलता है कि हाल ही में गलवान घाटी और लद्दाख के अन्य स्थानों के क़ब्ज़े में क्या हुआ था। भविष्य में भी वे लद्दाख और अन्य भारतीय क्षेत्रों के हिस्सों को थोड़ा-थोड़ा कर उन पर क़ब्ज़ा करते रहेंगे। जाहिर है कि ऐसा वे वहां पाए जाने वाले कच्चे माल और खनिज पदार्थों के कारण करेंगे। 

बताया गया है कि 22 जून को भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल और चीनी सेना के मेजर जनरल के बीच वार्ता हुई जिसमें हमारे लेफ्टिनेंट जनरल ने यह मांग की कि एक समय सीमा के अंदर दोनों देशों के सैनिक लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी से 2 किलोमीटर पीछे चले जाएँ I 
दिक्कत यह है कि चीनियों ने कभी नहीं माना कि एलएसी क्या है, क्योंकि ऐसा मानने से उनके विस्तारवाद पर रोक लग जाएगी।
ऊपर बताई गयी सभी बातों को देखते हुए, यह समझना मुश्किल नहीं कि इसकी बहुत कम संभावना है कि चीन इस मांग को मानेगा। बल्कि संभावना निश्चित रूप से यही है कि भविष्य में भी चीन धीरे-धीरे हमारी सीमा के अंदर घुसपैठ करके आगे बढ़ता चलेगा I

अब समय आ गया है कि हमारे नेताओं को इस बात का एहसास हो और अमेरिका जैसे अन्य देशों के साथ हाथ मिलाकर वे चीनी विस्तारवादी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ खड़े हों। ठीक वैसे ही, जैसे रूस, अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों ने हिटलर के ख़िलाफ़ एक सयुंक्त मोर्चे का निर्माण किया था। यह हमारे और दुनिया के अन्य हिस्सों पर चीनी वर्चस्व को रोकने का एकमात्र तरीका है।

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