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फ़ाइल फ़ोटो

कश्मीर में लोग कब सामान्य ज़िंदगी जी पाएंगे?

इस लेख के लेखक जस्टिस मार्कंडेय काटजू और डॉ. अथर इलाही हैं। 

5 अगस्त, 2019 के दिन जम्मू-कश्मीर के लोग जब अपनी नींद से जागे, एक सुहानी सुबह, चमकते सूर्य की रोशनी जो पूरे आकाश को उज्ज्वलित कर रही थी, तब उन्हें शायद ही कोई अंदाजा था कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किया जा रहा था। जब वे उठे तो उन्होंने पाया कि उनके सेलफोन काम नहीं कर रहे थे। कोई इंटरनेट कनेक्टिविटी, कोई सेल्युलर नेटवर्क काम नहीं कर रहा था और ढेर सारे प्रतिबंध लगा दिए गए थे। 

हर कोई जानकारी पाने के लिए टेलीविजन स्क्रीन के सामने बैठा हुआ था, जहाँ उन्होंने कई कश्मीरी राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी और राजनीतिक परिवर्तनों के बारे में सुना। कई क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाया गया और मीडिया पर गंभीर प्रतिबंध लगा दिए गए थे। 

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अब हम उस घटना की लगभग पहली वर्षगांठ की कगार पर हैं, फिर भी कश्मीर घाटी को अब तक उचित इंटरनेट सेवाओं से वंचित रखा गया है और कई प्रतिबंध अभी भी जारी हैं। कई राजनीतिक नेताओं को आज भी हिरासत या घर में नज़र बंद रखा जा रहा है। 

यह घोषणा की गई थी कि धारा 370 के उन्मूलन से कश्मीर में कई उद्योगों का विकास होगा लेकिन यह केवल एक अपूर्ण आशा बनकर रह गयी है।

व्यवसायी केवल वहीं निवेश करेंगे, जहां एक शांतिपूर्ण वातावरण होगा लेकिन घाटी में स्थिति अभी भी गंभीर है, जिसमें अक्सर उग्रवाद की घटनाएँ होती ही रहती हैं। ऐसे वातावरण में शायद ही कोई निवेश करे।

हम कश्मीर के हालात पर अपना आकलन पेश करते हैं।

(1) सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए एक लोकतांत्रिक स्थान होना चाहिए। इसके लिए स्वतंत्र रूप से निर्वाचित विधायिका, बोलने की स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है। वर्तमान में ये सभी मौजूद नहीं हैं, हालांकि यह क्लैंपडाउन लगभग एक साल पहले लगाया गया था। यदि यह स्थिति अधिक समय तक बनी रही तो यह अनिवार्य रूप से कश्मीरी युवाओं को उग्रवादियों की श्रेणी में ला खड़ी करेगी। लोगों को अपनी भड़ास निकालने का सही मौका दिया जाना चाहिए, अन्यथा उनकी नाराज़गी जल्द या बाद में कभी न कभी हिंसक रूप में भड़क सकती है।

सभी राजनीतिक नेताओं और किशोरों को जिन्हें हिरासत में रखा गया है, उनके ख़िलाफ़ दर्ज सभी मामले वापस लिए जाएं, मीडिया की स्वतंत्रता बहाल कर दी जाए और अब राज्य विधानसभा के लिए चुनावों की तैयारी की जानी चाहिए। केवल यही कश्मीर में शांति बहाल कर सकता है।

पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो 

(2) जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य के रूप में बहाल किया जाना चाहिए क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश के रूप में इसे जारी रखना वहां के लोगों के लिए अपमानजनक है। जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या लगभग 1.25 करोड़ है जबकि बहुत से राज्यों में कम जनसंख्या के बावजूद जैसे-सिक्किम (6 लाख), मणिपुर (लगभग 27 लाख), अरुणाचल प्रदेश (13.8 लाख), गोवा (लगभग 14.6 लाख), हिमाचल प्रदेश (जनसंख्या 68.6 लाख) को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया है। इसलिए जम्मू-कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश होना वहां के लोगों का अपमान है और केवल भारत से अलगाव की भावना को बढ़ावा देता है जो पहले से ही कई लोगों के मन में है।

(3) 4G इंटरनेट को तुरंत बहाल किया जाना चाहिए। वर्तमान में कश्मीर 2G इंटरनेट पर चल रहा है जिससे लोगों को भारी परेशानी और कठिनाई हो रही है।

2G इंटरनेट 

इस शब्दावली में G शब्द का अर्थ है 'जेनरेशन'। जबकि भारत सहित पूरी दुनिया 5G या 5th जेनरेशन में जाने वाली है, कश्मीर को 2G, यानी 2nd जेनरेशन में वापस भेज दिया गया है! जो 2011 की बात है। 2G 14-64 kbps की स्पीड देता है, जबकि 4G 100mbps की गति से 1Gbps तक की गति ऑफर करता है। यह बैलगाड़ी की तुलना बुलेट ट्रेन से करने जैसा है।

बिल गेट्स मज़ाक नहीं कर रहे थे जब उन्होंने कहा था कि "यदि आपका व्यवसाय इंटरनेट पर अच्छा नहीं है तो आपका व्यवसाय जल्द ही व्यापार से बाहर हो जाएगा।"

नवोदित उद्यमी, पुराने व्यावसायिक घराने, पूर्व प्रतिष्ठित कॉमर्स हब और पूरी कश्मीरी अर्थव्यवस्था 4G इंटरनेट के तहत विकसित हो रही थी लेकिन बीता वर्ष कश्मीरियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं गुजरा।

कश्मीरी छात्रों की परेशानी 

इंटरनेट की बंदिशों के कारण न केवल व्यावसायिक बल्कि शिक्षा क्षेत्र भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। जहां भारत और दुनिया भर के छात्रों के पास सूचना और अध्ययन सामग्री की तीव्र पहुंच है, कश्मीरी छात्र यह समझने के लिए संघर्ष करते हैं कि एक ऑनलाइन कक्षा के दौरान उनके शिक्षक कह क्या रहे हैं। इस इंटरनेट डाउन-ग्रेडिंग के कारण कई छात्र समय सीमा समाप्त हो जाने की वजह से परीक्षा नहीं दे पाए। कई लोगों को अपनी नौकरी की नियुक्ति से हाथ धोना पड़ा।

उनके नुकसान की ज़िम्मेदारी कौन लेगा? बैंकिंग क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, बिजली, कानून और प्रवर्तन, सभी इस डाउन-ग्रेडिंग से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं।

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4G इंटरनेट दे सरकार

दुनिया कठिन दौर से गुज़र रही है। हम कोरोना की महामारी से जूझ रहे हैं और दुनिया में हर कोई "घर से काम", "घर से अध्ययन", वास्तव में "घर से सब कुछ" का समर्थन कर रहा है। लेकिन उस "होम से" वाक्यांश को वास्तव में प्रभावी होने के लिए 4G इंटरनेट की आवश्यकता है और दुख की बात है कि कश्मीर इस से वंचित है।

केंद्र सरकार को अब राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन करना चाहिए और जल्द ही ऊपर दिए गए उपायों पर अमल करना चाहिए ताकि शांति, व्यापार और कश्मीरी फिर से पुनर्जीवित हो सकें। पर क्या ऐसा होगा? क्या सरकार ऐसा करेगी?

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जस्टिस मार्कंडेय काटजू

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