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अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद बदतर हुई है जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था

कश्मीर का वर्णन करने वाला एक प्रसिद्ध फ़ारसी दोहा है:

'अगर फ़िरदौस बर रू-ए-ज़मीं अस्त

हमीं  अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं  अस्त '

अर्थात -

'अगर स्वर्ग इस पृथ्वी पर मौजूद है,

तो वो यहीं है, यहीं है, यहीं है।'

आज वह स्वर्ग एक बुरे सपने में परिवर्तित हो गया है।

5 अगस्त, 2019

5 अगस्त, 2019 की घटना के बाद जम्मू-कश्मीर से पूर्ण राज्य का दर्जा ले लिया गया और कश्मीरियों को लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं से वंचित कर दिया गया जैसे स्वतंत्र निर्वाचित विधायिका, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता आदि। अधिकांश राजनीतिक नेता अभी भी जेल में हैं या घर में नज़रबंद हैं, कई प्रतिबंध अभी भी जारी हैं। कश्मीरियों को 4-जी इंटरनेट से वंचित रखा गया है और उन्हें बीते हुए ज़माने का 2G इंटरनेट इस्तेमाल करना पड़ रहा है जिससे छात्रों, व्यापारियों, पेशेवरों, आदि को भारी कठिनाई हो रही है।
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यदि अर्थव्यवस्था अच्छी होगी तो समाज में आमतौर पर ज्यादातर चीजें अच्छी होंगी और इस कारण ऊपर कही गयी कठोरता कुछ हद तक सहनीय हो जाती है। परन्तु अगर ऐसा नहीं है तो समझ जाना चाहिए की अँधेरे से भरा बुरा वक़्त आने वाला है। सच्चाई यह है कि आज कश्मीरी अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर जर्जर है, और बढ़ती बेरोज़गारी, अशांति और उग्रवाद के विकास का एक सुनिश्चित सूत्र है।

क्या हुआ उस घोषणा का?

5 अगस्त 2019 वह दिन था जब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए को समाप्त कर दिया गया, लेकिन साथ ही भारत सरकार ने घोषणा की कि कश्मीर का आर्थिक उत्थान होगा, कश्मीरियों को एक बेहतर और उज्जवल कश्मीर का सपना दिखाया गया था।
दिसंबर 2019 में, द कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने अनुछेद 370 के निरस्त होने के बाद के आर्थिक नुक़सान पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें क्षेत्रवार डेटा विश्लेषण से कश्मीर के केवल 10 ज़िलों में 17,500 करोड़ रुपये के नुक़सान का अनुमान है। 

चौपट अर्थव्यवस्था

भारत सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों द्वारा यह घोषणा की गई थी कि अनुच्छेद 35 ए के उन्मूलन के साथ भारतीय व्यवसायी जम्मू-कश्मीर में भूमि खरीद सकेंगे और वहाँ उद्योग और व्यवसाय स्थापित कर सकेंगे, इस प्रकार कई नौकरियाँ पैदा होंगी और कश्मीरी लोगों के लिए समृद्धि आएगी। इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि व्यवसायी केवल वहीं निवेश करेंगे जहाँ शांतिपूर्ण माहौल हो, न कि जहाँ आतंकवाद हो और चारों ओर गोलियाँ चल रही हों। 
2011 की जनगणना के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की साक्षरता दर देश में सबसे अधिक 67.16% होने के बावजूद, यह भारत में युवाओं की बेरोज़गारी में सबसे ऊपर आने वाले राज्यों में से एक है।

बेरोज़गारी

2016 की राज्य आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 18-29 वर्ष की आयु वाले युवाओं की बेरोज़गारी में यह 24.6% है, जो कि अखिल भारतीय बेरोज़गारी दर से कहीं अधिक है। जम्मू-कश्मीर में 1.5 लाख पोस्ट-ग्रेजुएट छात्रों ने जून 2019 में केवल 15 दिनों में ही खुद को बेरोज़गार के रूप में रोजगार और परामर्श निदेशालय में पंजीकृत किया। अगस्त में अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया,उसके बाद से और फिर कोरोना महामारी के लॉकडाउन के कारण हालात और बिगड़ते ही जा रहे हैं।

बेरोज़गारी से उग्रवाद

कश्मीर के कुछ हिस्सों में राजनीतिक अशांति और बड़ी संख्या में युवाओं  का  उग्रवादियों के गुटों में शामिल होने का कारण काम न मिलना है।

जैसा कि कहावत है 'मरता क्या नहीं करता'  एक बेरोज़गार युवक उग्रवादियों के लिए आसान निशाना  है। इसके कारण अस्थिरता पैदा होती है और राजनीतिक समस्याओं में बढ़ोतरी होती है, जो आगे चलकर भारत से अलग होने का भाव और शत्रुता पैदा करता है, इस प्रकार दुख और हिंसा का एक कभी न ख़त्म होने वाले चक्र का निर्माण होता है।

सरकारी उपक्रम

भारत में सीमावर्ती राज्यों के विकास का प्रमुख स्रोत सार्वजनिक निवेश या तो सीधे या केंद्रीय उपक्रमों के माध्यम से होता है। जम्मू-कश्मीर में भारत के 339 सार्वजनिक उपक्रम में से केवल 3 हैं। निवेश की यह कमी क्षेत्र में बेरोज़गारी के प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक है। 
हालांकि इस परिदृश्य को सुधारने के लिए बहुत कम कार्य किया गया है। उदाहरण के लिए अगर हम जम्मू-कश्मीर में बिजली आपूर्ति के मामले को देखें तो नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन जम्मू-कश्मीर को उसकी सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक संपत्ति - उसके जल संसाधनों के लाभों से वंचित करता है।
जम्मू-कश्मीर अपने ही क्षेत्र में उत्पादित बिजली का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है और यह जितने में बेचता है, उस से लगभग दुगने दाम पर खरीदता है ।

बागवानी

जम्मू-कश्मीर में बागवानी और पर्यटन की व्यापक संभावनाएं हैं और दोनों आर्थिक समृद्धि के 'इंजन' हो सकते हैं। लेकिन इस संबंध में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया गया है। जम्मू-कश्मीर भारत में 80% सेब का उत्पादन करता है और एकमात्र कारण है कि भारत दुनिया के शीर्ष 5 सेब उत्पादक देशों में से एक है। 
इस क्षेत्र से आधुनिक सेब के संग्रह, भंडारण और परिवहन तकनीकों में अग्रणी होने की उम्मीद होगी, लेकिन वास्तविकता इस से कहीं दूर है। भारत में 6,000 कोल्ड स्टोरेज में से केवल 30 जम्मू-कश्मीर में हैं।

केसर

कश्मीर अपने सुगंधित केसर के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है, लेकिन इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए कोई समर्थन सरकार द्वारा नहीं दिया गया है। इसी तरह इन्फ्रास्ट्रक्चर, पर्यटन और विपणन को बड़े पैमाने पर अनदेखा किया गया है।

हस्तशिल्प

उन कश्मीरी हस्तशिल्प उद्योग को न भूलें जो युगों से कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं। नज़ाकत से तैयार किये गए पंख से भी हलके पश्मीना शॉल की तुलना में  घूमने वाले, जटिल नक्काशीदार लकड़ी के काम, पेपर मशै के अद्भुत पैटर्न, उत्तम कालीन आदि को भारत और दुनिया भर में सराहा गया है। लेकिन मौजूदा हाल में आर्थिक संकट के मद्देनज़र, कश्मीरी अर्थव्यवस्था और उद्योग ध्वस्त हो रहे हैं। 
जम्मू-कश्मीर हस्तशिल्प विभाग के अनुसार, 2019 की दूसरी तिमाही में हस्तशिल्प के निर्यात में 62% की गिरावट आई है।
जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े वित्तीय संस्थानों में से एक, जेके बैंक, ने स्टॉक एक्सचेंज में अपने शेयरों के मूल्य में तेज गिरावट देखी है, जो 2014 में 180 रुपये प्रति शेयर से घटकर आज 15 रुपये प्रति शेयर है, यानी 1200 % की गिरावट। यह एक संकेत है कि कश्मीर की अर्थव्यवस्था बीमार हो गई है।
अब समय आ गया है कि सभी संबंधित अधिकारी जागें और स्थिति की गंभीरता को समझें और कश्मीरी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कठोर कदम उठाये , वर्ना हालात बुरे हो जायेंगे और फिर किसी ने नहीं संभलेगा।
 (इस लेख के सह-लेखक अथर इलाही और मिस्बाह गिलानी हैं।)
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जस्टिस मार्कंडेय काटजू

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