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कन्फ्यूसियस संस्थानों में चीनी भाषा की पढ़ाई बंद करने से परेशान क्यों है चीन?

राजनयिक पर्यवेक्षकों ने कहा है कि कन्फ्यूसियस संस्थानों के जरिये चीन जासूसी का तंत्र खड़ा करता है और दूसरे देशों में चीन विरोधी हवा को बहने से रोकता है। नेपाल के आम लोगों में चीन के प्रति बढ़ते लगाव के पीछे भी कन्फ्यूसियस संस्थानों की बड़ी भूमिका मानी जाती है। पाकिस्तान में भी इसी तरह कन्फ्यूसियस संस्थानों ने अपने पांव काफी पहले जमा लिए थे। बांग्लादेश में भी कन्फ्यूसियस संस्थानों ने एक दशक पहले से ही ज़मीन मजबूत करनी शुरू कर दी थी। 
रंजीत कुमार

भारत में कन्फ्यूसियस संस्थानों की गतिविधियों की समीक्षा करने और चीनी भाषा की पढ़ाई बंद करने के सरकारी फैसले के बाद चीन ने भारत सरकार से भावुक अपील की है कि वह इन संस्थानों का राजनीतिकरण नहीं करे। भारत से पहले अमेरिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया ने अपने यहां चल रहे कन्फ्यूसियस संस्थानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है। 

इन देशों की ओर से कहा गया है कि कन्फ्यूसियस संस्थान चीन की प्रोपेगेंडा इकाई हैं जो स्थानीय जनमत को अपने देश के रिश्तों के साथ अपने अनुकूल मोड़ देने की भूमिका निभाती हैं। कन्फ्यूसियस संस्थानों के जरिये चीन अपनी छवि चमकाता है और इनके जरिये स्थानीय जनमत को प्रभावित करता है।

चीन ने भारत के पड़ोसी देशों खासकर नेपाल के भारत से लगे सीमांत इलाकों में स्थित शिक्षण संस्थानों में पिछले कुछ सालों में अपने खर्चे से कन्फ्यूसियस संस्थान खोले हैं।

कई राजनयिक पर्यवेक्षकों ने कहा है कि इन संस्थानों के जरिये चीन इन देशों में जासूसी का तंत्र खड़ा करता है और चीन विरोधी हवा को बहने से रोकता है। नेपाल के आम लोगों में चीन के प्रति बढ़ते लगाव के पीछे भी कन्फ्यूसियस संस्थानों की बड़ी भूमिका मानी जाती है। पाकिस्तान में भी इसी तरह कन्फ्यूसियस संस्थानों ने अपने पांव काफी पहले जमा लिए थे। बांग्लादेश में भी कन्फ्यूसियस संस्थानों ने एक दशक पहले से ही ज़मीन मजबूत करनी शुरू कर दी थी। 

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कन्फ्यूसियस संस्थानों के जरिये चीन पिछले दो दशकों से अपनी ताकत का इस्तेमाल कर अपने देश की उदार छवि चमकाने की रणनीति पर चल रहा है। 

एक हजार से अधिक संस्थान! 

अनुमान है कि एशिया, अफ्रीका, यूरोप, लातिन अमेरिका और अमेरिका तक दुनिया भर में अब तक चीन ने एक हजार से अधिक कन्फ्यूसियस संस्थान खोल लिए हैं जिनके जरिये वह न केवल अपनी भाषा का बल्कि चीन की संस्कृति और वैश्विक विचारों का भी प्रचार करता है। 

इन संस्थानों का घोषित लक्ष्य चीन और स्थानीय देशों के बीच जनता के स्तर पर सम्बन्धों को मजबूत करना और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है लेकिन हाल के कुछ सालों से यह देखा जा रहा है कि यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया ने कन्फ्यूसियस संस्थानों को बंद करने के क़दम राजनीतिक वजहों से उठाए हैं। 

इन देशों के राजनयिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि चीन इन संस्थानों का इस्तेमाल अपने देश के प्रोपेगेंडा के लिए करता है और स्थानीय प्रबुद्ध और अकादमिक समुदाय पर अपना प्रभाव बढ़ाता है।

ईसा पूर्व 551 में जन्मे कन्फ्यूसियस चीन के प्राचीन दार्शनिक के तौर पर जाने जाते हैं जिनके दर्शन को चीनी सम्राटों ने अपने प्रशासन और नैतिक सामाजिक जीवन के मूल मंत्र के तौर पर प्रचलित किया है।

ऐसे दार्शनिक के नाम का इस्तेमाल कर चीन दुनिया भर में अपनी नैतिक उदार छवि पेश करता है। हालांकि आज के अधिनायकवादी चीन और कन्फ्यूसियस के दर्शन में जमीन-आसमान का फर्क है लेकिन बाकी दुनिया के सामने इसका खुलासा नहीं किया जाता है। कन्फ्यूसियस का दर्शन आम चीनियों में आज भी काफी लोकप्रिय है और इसी के जरिये चीन ने जापान, कोरिया और वियतनाम में अपने सांस्कृतिक प्रभाव का विस्तार किया।

लेकिन आज की आधुनिक दुनिया में चीन ने कन्फ्यूसियस का अपने देश के हितों के संवर्द्धन के लिए इस्तेमाल करने की रणनीति अपनाई है। चीन के बाकी दुनिया के साथ बढ़ते व्यापारिक रिश्तों के मद्देनजर सभी देशों में चीनी भाषा और संस्कृति सीखने की ललक पैदा हुई है। 

व्यापारिक कम्पनियां चीन के साथ अपने आर्थिक रिश्तों को गहरा करने के लिए चीनी भाषा में काम करने की क्षमता को अपना मजबूत पक्ष मानती हैं जिसके बल पर वे आसानी से चीन से व्यापारिक रिश्ते गहरे करने की कामना करती हैं।

पिछले कुछ सालों में भारत और चीन के बीच गहराते राजनीतिक और आर्थिक रिश्तों की पृष्ठभूमि में भारत में भी चीनी कन्फ्यूसियस संस्थानों ने अपना विस्तार करने में कामयाबी पा ली थी।

झुका ड्रैगन

भारत ने यह ताज़ा कदम इसलिए उठाया क्योंकि पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों में चीनी घुसपैठ से भारत में चीन विरोधी हवा बहने लगी है। भारत के इस ताज़ा कदम के खिलाफ चीन ने कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि भारत से भावनात्मक अपील की है। चीन ने भारत से आग्रह किया है कि भारत के शिक्षण संस्थानों में चीनी भाषा की पढ़ाई जारी रखे और सामान्य रिश्तों का राजनीतिकरण करने से बचे।

चीनी दूतावास की प्रवक्ता ची रोंग ने एक बयान में उम्मीद जाहिर की कि कन्फ्यूसियस संस्थानों और  भारत-चीन उच्च शिक्षा सहयोग के साथ निष्पक्ष व्यवहार किया जाएगा। चीनी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि जनता के स्तर पर भारत-चीन सम्बन्ध और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का स्वस्थ और स्थिर विकास जारी रखा जाना चाहिये।

गौरतलब है कि भारत के शिक्षा मंत्रालय ने अपने हाल के आदेश में कहा है कि शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई जाने वाली विदेशी भाषा में चीनी भाषा को हटाकर कोरियाई भाषा को शामिल कर लिया गया है।

इसे संज्ञान में लेते हुए चीनी दूतावास ने कहा है कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि सरकार ने चीन के कनफ्यूसियस संस्थानों और सात भारतीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के साथ सहयोग के समझौते की समीक्षा करने को कहा है। इसके अलावा चीनी भाषा की पढ़ाई के लिए अंतर स्कूल सहयोग पर भी 54  समझौते किए गए हैं।

चीनी दूतावास के प्रवक्ता के मुताबिक़, भारत और चीन के बीच तेजी से बढ़ते आर्थिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बीच भारत में चीनी भाषा की मांग बढ़ती जा रही है और कन्फ्यूसियस संस्थानों को लेकर भारत-चीन सहयोग गत दस सालों से चल रहा है। 

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प्रवक्ता ने कहा कि कन्फ्यूसियस संस्थानों की स्थापना भारत और चीन के शिक्षण संस्थानों के बीच वैधानिक तरीके से दस्तखत किये गए सहयोग समझौतों के तहत की गई है। यह परस्पर सम्मान, दोस्ताना विचार-विमर्श, समानता और आपसी लाभ के अलावा इस आधार पर की गई है कि भारतीय पक्ष ने स्वेच्छा से इन संस्थानों के संचालन के लिए पहल की है।

चीनी प्रवक्ता ने कहा कि स्कूलों में कन्फ्यूसियस संस्थानों की स्थापना इस आधार पर की गई कि विदेशी पक्ष प्रबंध करेगा, चीनी पक्ष सहयोग करेगा और दोनों पक्ष मिल कर कोष इकट्ठा करेंगे। 

चीनी प्रवक्ता ने कहा कि बीते सालों में कन्फ्यूसियस संस्थानों ने भारत में चीनी भाषा की पढ़ाई में अहम योगदान दिया है। इससे जनता के स्तर पर सम्बन्धों को बढ़ावा मिलता है और आम तौर पर इसे भारतीय शैक्षणिक समुदाय ने स्वीकार किया है।
साफ है कि पिछले दशक से भारत-चीन के बीच गहराती दोस्ती के बहाने चीन के शिक्षा मंत्रालय ने भारत के विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग समझौता कर कन्फ्यूसियस संस्थान खोलने में कामयाबी पाई है। लेकिन एक झटके में भारत के द्वारा जनता के स्तर पर गहराते रिश्तों की इस गांठ को तोड़ने के फ़ैसले से चीन चिंतित दिख रहा है।
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