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शरणार्थियों के लिए बने क़ानून से भारत के मुसलमानों में डर क्यों?

एक महत्वपूर्ण सवाल है - अगर राष्ट्रीय स्तर पर असम की तरह का नागरिक रजिस्टर बनेगा तो उसमें जो लोग छूटेंगे, वे तो हिंदू भी हो सकते हैं और मुसलमान भी, ईसाई भी हो सकते हैं, पारसी भी। तो फिर केवल मुसलमान ही उस राष्ट्रीय रजिस्टर से क्यों डरे हुए हैं? यहीं पर नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) की भूमिका आती है जिसका अभी विरोध हो रहा है।
नीरेंद्र नागर

नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) पर मंगलवार को गृह मंत्रालय ने एक बयान जारी कर सारे सवालों के जवाब दिए हैं। इसके द्वारा उसने यह समझाने की कोशिश की है कि नागरिकता संशोधन क़ानून का मक़सद तीन पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देना है और यह आशंका निराधार है कि इस क़ानून की वजह से किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता छिन जाएगी। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने भी यही बात कही थी और इस क़ानून का विरोध करने वाले भारतीयों (पढ़ें मुसलमानों) से आग्रह किया था कि वे अफ़वाहों के चक्कर में न पड़ें।

गृह मंत्री और उनके मंत्रालय का कहना है - यह क़ानून भारतीयों के लिए है ही नहीं, यह तो उन पाकिस्तानी, अफ़ग़ान और बांग्लादेशी नागरिकों के लिए है जो वहाँ धार्मिक कारणों से सताए जा रहे थे और इस कारण से पिछले पाँच या अधिक सालों से भारत में शरण लिए हुए हैं। ऐसे सताए हुए लोगों के लिए ही मानवीय आधार पर यह क़ानून बनाया गया है। चूँकि ये देश मुसलिम-बहुल हैं और वहाँ मुसलमानों के सताए जाने का कोई कारण ही नहीं है, इसलिए इस क़ानून में उनको कवर नहीं किया गया है। इस क़ानून का मौजूदा भारतीय नागरिकों से - चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान - कोई लेना-देना नहीं है।

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तकनीकी तौर पर गृह मंत्री और गृह मंत्रालय की बात सही है। अब अगर उनका कहना सही है तो देश के मुसलमान इतना डरे हुए क्यों हैं? क्यों उनको लग रहा है कि निकट भविष्य में उनकी नागरिकता छिन सकती है? क्यों मज़हबी नेता उनको कह रहे हैं कि वे अपने पहचान पत्रों को दुरुस्त करवा लें और उनकी मदद के लिए कैंप लगवाए जा रहे हैं?

बात दरअसल यह है कि मुसलमान विरोध चाहे नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) का कर रहे हैं लेकिन वे इस क़ानून से नहीं, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से डर रहे हैं जो अभी बना तो नहीं है लेकिन उसकी आहट सुनाई दे रही है। इसे यूँ समझिए कि आपको जंगल में बाघ के पदचिह्न दिखें और आप सोचें कि बाघ कहीं आसपास ही है और इस कारण आप सावधान और सतर्क हो जाएँ! नागरिकता क़ानून (CAA) वही बाघ के पैरों के निशान हैं जो नागरिक रजिस्टर (NRC) रूपी बाघ के आसपास ही होने का संकेत दे रहा है।

अब अगला प्रश्न। ठीक है, मुसलमान नागरिकता क़ानून से नहीं, नागरिक रजिस्टर से डर रहे हैं। लेकिन क्यों? वे इस रजिस्टर को बाघ क्यों समझ रहे हैं? नागरिक रजिस्टर (NRC) तो केवल भारतीय नागरिकों की एक महासूची होगी जैसी चुनाव आयोग की होती है। इससे तो हर भारतीय नागरिक - हिंदू-मुसलमान-सिख-ईसाई-पारसी-जैन - को ख़ुश होना चाहिए कि एक बार इस रजिस्टर में नाम दर्ज हो जाने के बाद नागरिकता का पक्का सबूत उनको मिल जाएगा। जो भी भारत का नागरिक है, उसे इससे क्या घबराना?

घबराने का कारण है। कारण है हाल ही में असम में बना नागरिक रजिस्टर। यह रजिस्टर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बना था। असम में रहने वाले हर व्यक्ति से फ़ार्म भरवाने के बाद उसके द्वारा दिए गए दस्तावेज़ों के आधार पर जो आख़िरी सूची जारी हुई, उसमें 19 लाख लोगों को घुसपैठिया ठहरा दिया गया जिसमें 11 लाख हिंदू थे। उसमें ऐसे लोग भी थे जो भारतीय सेना में नौकरी कर चुके थे या जो बीसियों साल से असम में रह रहे थे।

अब ऐसा क्यों हुआ कि भारत में सालों से रह रहे नागरिक असम के नागरिक रजिस्टर से बाहर रह गए? कारण यह कि ऐसे लाखों ग़रीब लोग हैं जो देश में रहते हैं लेकिन उनके पास नागरिकता साबित करने के लिए कोई उचित दस्तावेज़ नहीं है; या अगर है तो उसमें नाम की स्पेलिंग या पिता का नाम या पता मैच नहीं करता।

अब कोई भिखारी है, कोई रिक्शावाला है, कोई मज़दूर है - क्या हम इनसे उम्मीद कर सकते हैं कि उन सबके पास नागरिकता को साबित करने वाला बिल्कुल शत-प्रतिशत पक्का सबूत होगा।

असम के नागरिक रजिस्टर के अनुभव से कहा जा सकता है कि अगर इसी तरह का रजिस्टर देश भर में बना तो इसमें भी ऐसे करोड़ों लोग छूट जाएँगे और उनको  विदेशी या घुसपैठिया ठहराते हुए निवारक केंद्रों में रख दिया जाएगा जहाँ का हाल-चाल शरणार्थी शिविरों से भी बुरा होता है।

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सिर्फ़ मुसलमानों में ही डर क्यों?

अब यहाँ एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है -  अगर राष्ट्रीय स्तर पर असम की तरह का नागरिक रजिस्टर बनेगा तो उसमें जो लोग छूटेंगे, वे तो हिंदू भी हो सकते हैं और मुसलमान भी, ईसाई भी हो सकते हैं, पारसी भी। तो फिर केवल मुसलमान ही उस राष्ट्रीय रजिस्टर से क्यों डरे हुए हैं?

यहीं पर नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) की भूमिका आती है जिसका अभी विरोध हो रहा है। यह क़ानून कहता है कि मुसलमानों के अलावा किसी भी अन्य धर्म का व्यक्ति जो भारत में पाँच या अधिक साल से रह रहा है, वह यह कहकर भारत की नागरिकता पा सकता है कि वह पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफ़ग़ानिस्तान से भागकर आया है। उससे उन देशों में उसके निवास के बारे में कोई सबूत नहीं माँगा जाएगा।

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कहने का अर्थ यह कि अगर दस्तावेज़ न होने के कारण भारत का कोई हिंदू, ईसाई, सिख, जैन या पारसी नागरिक राष्ट्रीय रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करने से रह जाता है तो वह यह कहकर अपनी नागरिकता सुरक्षित रख सकता है कि मैं तो पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान या बांग्लादेश से आया हूँ। ऐसा दावा करने पर उससे कोई दस्तावेज़ नहीं माँगा जाएगा कि क्या तुम वाक़ई इन पड़ोसी देशों से आए हो। इस तरह इन लोगों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। लेकिन यदि कोई मुसलमान नागरिक काग़ज़ात न होने के कारण राष्ट्रीय रजिस्टर में नाम दर्ज़ होने से छूट जाता है, तो उसके पास बचाव का कोई उपाय नहीं है। उसे सीधे डिटेंशन केंद्र में भेज दिया जाएगा।
नागरिकता संशोधन क़ानून बनने का असर यह होगा कि जो 11 लाख हिंदू असम के नागरिक रजिस्टर में दर्ज होने से रह गए हैं, वे इस क़ानून का लाभ उठाकर अब भारत के नागरिक बने रह सकते हैं लेकिन जो 8 लाख मुसलमान इस रजिस्टर में आने से रह गए हैं, उनके लिए कोई रास्ता नहीं है।

यही कारण है कि देश का आम हिंदू न तो इस क़ानून से डर रहा है न ही उसका विरोध कर रहा है क्योंकि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) में उसका नाम न भी आया तो वह कह देगा कि मैं तो पाकिस्तान या बांग्लादेश से आया हूँ और उसकी नागरिकता बच जाएगी।

लेकिन मुसलमानों को डर है कि कहीं राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) में उनका नाम आने से रह गया तो उनको डिटेंशन केंद्र में न भेज दिया जाए। इसी डर से देश के मुसलमान इस क़ानून का विरोध कर रहे हैं और उनका साथ वे सारे लोग दे रहे हैं जो धर्म के आधार पर इस भेदभाव के विरुद्ध हैं।

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