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मुसलमान बनाने से ज़्यादा ज़रूरी है एक अच्छा इन्सान बनना-बनाना

जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों का समय नज़दीक आता जा रहा है, देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रयास भी तेज़ कर दिए गए हैं। कहीं धर्म विशेष के व्यक्ति के साथ मॉब लिंचिंग की घटना घटित हो रही है तो कहीं किसी को तस्करी के आरोप में फँसाया जा जा रहा है। कहीं गौ तस्करी या गौ हत्या के प्रयास के नाम पर हिंसा की जा रही है, कहीं किसी की दाढ़ी जबरन काटी जा रही है तो कहीं मस्जिदें ढहाई जा रही हैं। गोया देश में सोची-समझी रणनीति के तहत नफ़रत का माहौल बनाया जा रहा है और कोरोना के भयावह परिणामों से क्षुब्ध जनता को एक बार फिर अपने पक्ष में संगठित किया जा सके।

सत्ता के इन प्रयासों को प्रचारित कर घर-घर पहुँचाने का काम भी बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से मीडिया विशेषकर अधिकांश बिकाऊ टीवी चैनलों द्वारा किया जा रहा है। पिछले दिनों इसी तरह का एक और ज्वलंत मुद्दा सरकार व गोदी मीडिया के हाथ लगा जिसे 'धर्म परिवर्तन रैकेट' का नाम दिया जा रहा है। इस सिलसिले में मोहम्मद उमर गौतम और मुफ़्ती काज़ी जहांगीर आलम क़ासमी नामक दो व्यक्तियों को गिरफ़्तार करने के बाद आनन-फ़ानन में कई गंभीर इलज़ाम भी लगाए जा चुके हैं। जैसे कि उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुसार ये धर्मगुरु एक बड़ी साज़िश के तहत पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के अतिरिक्त अन्य कई देशों से धर्म परिवर्तन करने हेतु पैसे लिया करते थे।

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आरोप ये लगा कि इन धर्मगुरुओं ने अनेक हिंदू लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाया तथा उनकी शादियाँ करवाई हैं। पुलिस के अनुसार ऐसी 100 से अधिक लड़कियों की जानकारी प्राप्त हुई है जिनका धर्म परिवर्तन करवाया गया है। इन धर्मगुरुओं पर यह भी आरोप है कि ये लोग मूक-बधिर छात्रों के अलावा ग़रीब लोगों को भी पैसों, नौकरी व शादी का लोभ देकर उनका धर्म परिवर्तन करा मुसलमान बना रहे थे। इन सबसे गंभीर आरोप यह भी है कि ये धर्मगुरु मूक-बधिर छात्रों का धर्म परिवर्तन करने के बाद कथित तौर पर इन बच्चों का इस्तेमाल आतंकवादी हमलों में मानव बम के रूप में भी करते थे।

निश्चित रूप से सुनने में ये सभी आरोप प्रथम दृष्टया बेहद संगीन प्रतीत होते हैं। और अगर ये या इनमें से कुछ भी आरोप सही हैं तो ये गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं। और ऐसे अपराधों की कड़ी से कड़ी सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए।

परन्तु गत लगभग तीन दशकों से यही देखा जा रहा है कि धर्म परिवर्तन या गौकशी अथवा आतंकवाद या आतंकी को संरक्षण देने जैसे अपराधों के नाम पर पकड़े गए दर्जनों लोगों को देश की अनेक अदालतों द्वारा सिर्फ़ इसलिए बाइज़्ज़त बरी किया जा चुका है क्योंकि पुलिस ने गिरफ़्तारी के समय तो उनके विरुद्ध आरोप ज़रूर मढ़ दिये परन्तु वही पुलिस इनके विरुद्ध अदालत में न तो मज़बूत साक्ष्य पेश कर सकी न ही गवाहियाँ। 

नतीजतन कई कई वर्षों तक जेल की सलाख़ों के पीछे रहने व मानसिक रूप से प्रताड़ित होने के बाद इनमें से अनेक लोग रिहा कर दिए गए।

ऐसे अनेक लोग रिहाई के बाद जब अपने घरों को पहुँचे तो उनकी दुनिया ही उजड़ चुकी थी। किसी का बाप मर चुका था तो किसी की माँ नहीं रही। किसी की नौकरी व कारोबार चला गया तो आतंकवाद का लांछन लगने के चलते कोई समाज की उपेक्षा का शिकार है। कोई जवान होकर जेल गया था तो बेगुनाही के साथ बूढ़ा होकर जेल से बाहर निकला। ऐसे लोगों की भरपाई करने के लिए न ही सरकार के पास कोई योजना है न ही सामर्थ्य। इन पिछली अनेक गिरफ़्तारियों व इनकी बेगुनाही के साथ हुई रिहाई के बाद पिछले दिनों धर्म परिवर्तन रैकेट के नाम पर गिरफ़्तार किए गए लोगों के प्रति संदेह पैदा होना भी स्वभाविक है। परन्तु प्रचार तंत्र की वर्तमान प्रचार शैली व मीडिया ट्रायल के द्वारा तो इन्हें एक तरह से दोषी ठहराया ही जा चुका है।

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बहरहाल, कथित तौर पर धर्म परिवर्तन कराए जाने विशेषकर ग़ैर मुस्लिम लोगों को मुसलमान बनाए जाने के इन आरोपों के बीच इस विषय से संबंधित कुछ बिंदुओं पर चर्चा करना ज़रूरी है। एक तो यह कि किसी भी धर्म का कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार तथा बिना किसी लालच या दबाव के किसी भी धर्म में शामिल हो सकता है। यह उसका निजी मामला है तथा वह इसके लिए पूर्णतयः स्वतंत्र है। 

ठीक इसके विपरीत किसी को लालच या भय दिखाकर अथवा धोखा देकर धर्म परिवर्तन कराना न केवल अपराध है बल्कि यह नैतिक व धार्मिक दृष्टिकोण से भी पूरी तरह ग़लत है।

इस्लाम तो इस बात की इजाज़त ही नहीं देता कि किसी को जबरन या भय दिखाकर इस्लाम की दावत दी जाए। और जो लोग विशेषकर जो मुस्लिम धर्मगुरु इस लालच से यह काम करते भी हैं कि किसी को मुसलमान बनाने से उनकी जन्नत की सीट पक्की हो जाएगी तो कम से कम ऐसे लोगों को इस्लाम और मुसलमानों की वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिगड़ती हुई छवि पर तो ज़रूर नज़र डालनी चाहिए। आज मुसलमान कितने वर्गों में विभाजित है? एक अल्लाह, एक रसूल और एक क़ुरान होने के बावजूद अधिकांश मुस्लिम देश हिंसा व उथल-पुथल का शिकार हैं। पूरे विश्व में एक मुस्लिम समुदाय ही स्वयं को मुस्लिम कहने वाले अन्य वर्ग के प्रति हिंसा व नफ़रत के लिए उतारू है। दुनिया का मुस्लिम विरोधी एक बड़ा वर्ग शांति समानता व सद्भाव की बात करने वाले इस धर्म का मज़ाक़ उड़ाने लगा है।

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ऐसे में मेरे विचार से इस्लामी दावत केंद्र संचालित करने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के मुसलमान सर्वप्रथम अपने आपसी मतभेदों को भुलाने की कोशिश करें। ईरान और अरब के मध्य के विवाद जो शिया सुन्नी विवाद की शक्ल में पूरे विश्व में फैल चुके हैं, पहले उन्हें मिटाने की कोशिश करें। यदि कोई धर्मगुरु या कोई मिशन यह सोचता है कि वह दूसरे धर्म-विश्वास के लोगों को इस्लाम धर्म में शामिल कर पुण्य अर्जित कर रहा है और उसी समय वही धर्मगुरु या वही मिशन मुसलमानों के ही किसी वर्ग से नफ़रत करता है या उन्हें नीचा दिखाने पर आमादा है तो उसकी सारी क़वायद बेमानी है।

इस्लाम धर्म मुस्लिम जगत की एकता से स्वयं प्रसारित हो सकता है। बशर्ते कि इस्लामी धर्मगुरु कम से कम अपनी ही क़ौम के लोगों के साथ अच्छे आचरण व अपने सद्भावपूर्ण बर्ताव के साथ तो पेश आयें? गोया किसी दूसरे धर्म के लोगों को मुसलमान बनाने से ज़्यादा ज़रूरी है मुसलमानों को ही एक अच्छा इन्सान बनाना।

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तनवीर जाफ़री

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