5 अप्रैल 2020 और 9 सितंबर 2020 की दो तारीख़ें ऐतिहासिक रहीं और रहेंगी। दोनों ही अवसरों पर रात 9 बजकर 9 मिनट पर समान तरह का एक्शन देखने को मिला। यह एक्शन था अपने-अपने घरों की बत्ती बुझाना यानी अंधेरा करना, फिर दीये जलाना यानी रोशनी करना। एक का आह्वान प्रधानमंत्री ने किया था, दूसरे का आह्वान आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने। एक दीपोत्सव का घोषित मक़सद कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में एकजुटता का इज़हार था तो दूसरे दीपोत्सव का मक़सद रहा बेरोज़गारों की लड़ाई में एकजुटता का इज़हार।
अप्रैल में जो दीये जले थे वो बीजेपी के स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर जले थे। ये वो दौर था जब कोरोना का ठीकरा तब्लीग़ी जमात पर फोड़ा जा रहा था। जमातियों को ‘कोरोना बम’ और ‘गजवा-ए-हिंद’ का आग़ाज़ करने वाला बताया जा रहा था। एक के बाद एक फर्जी वीडियो बगैर ज़िम्मेदारी लिए मीडिया चला रहा था। कई वीडियो फ़ेक साबित भी हुए। मगर, उन्हीं फर्जी वीडियो के आधार पर नफ़रत के बीज बो दिए गये। बहुत देर हो चुकी थी जब प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि बीमारी से लड़ा जाए, बीमार से नहीं।
9 सितंबर को जो दीये जले हैं वे बिहार से लेकर यूपी तक और पूरे देश में भी रोशनी करते दिखे हैं। बेरोज़गारी का अंधेरा दूर करना है और रोज़गार की रोशनी पैदा करनी है- इसी जज्बे के साथ 9 बजकर 9 मिनट पर रोशनी की गयी। इस ‘दीपांदोलन’ की पृष्ठभूमि है 45 साल में चरम पर पहुँची बेरोज़गारी के बाद इससे उबरने की विफल कोशिश के बीच कोरोना काल में नौकरियों का छिन जाना।
नौकरी छिन जाने का रिकॉर्ड बना
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई के ताज़ा आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि कोरोनाकाल में नौकरी छिन जाने की घटनाओं ने ऐसा नकारात्मक रिकॉर्ड बनाया है जो अगर कभी नहीं टूटे तो वही देशहित में होगा। अगस्त आते-आते सैलरी वाली नौकरी 8.6 करोड़ से घटकर 6.5 करोड़ के स्तर पर आ चुकी थी। यानी कोरोना काल में सैलरी पाने वाले 2.1 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। सिर्फ़ जुलाई में 48 लाख और अगस्त में 33 लाख लोगों की नौकरी छिन गयी। सैलरी वाली नौकरियाँ देश में कुल नौकरियों का 21-22 प्रतिशत है।
2019-20 में खेती से जीविकोपार्जन कर रहे लोगों की तादाद 11 करोड़ 10 लाख थी। अब यह बढ़कर 14 करोड़ हो चुकी है। अपने-अपने उद्यमों में लगे लोगों की संख्या 70 लाख से बढ़कर 78 लाख हो चुकी है।
देश में 12 करोड़ 10 लाख दैनिक मज़दूरों में से 9 करोड़ 10 लाख ने अपनी नौकरी खो दी। अगस्त महीने तक इसकी भरपाई हुई है। लोग काम पर लौटे हैं। फिर भी क़रीब 1 करोड़ 10 लाख लोगों को अब भी नौकरी नहीं मिली है।
4 दिन में 2 बड़े विरोध प्रदर्शन
4 दिन के भीतर देश के युवाओं ने दो विशाल प्रदर्शन किए। सबसे पहले शिक्षक दिवस पर बेरोज़गारों ने 5 बजे 5 मिनट तक ताली-थाली बजाकर फर्जी रोज़गार परीक्षाओं पर आक्रोश जताया। नतीजे लटकाकर रखने और सिर्फ़ परीक्षा लेकर करोड़ों की कमाई करने को मुद्दा बनाया। बेरोज़गारी के सामने सरकार की बेबसी पर ग़ुस्सा दिखाया। स्वत: स्फूर्त छात्रों के इस आंदोलन ने राजनीतिक दलों की जमीर को भी ललकारा। तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव और कांग्रेस भी बेरोज़गारी के सवाल पर कूद पड़े।
बेरोज़गार अब ग़ुस्सा छिपा नहीं रहे, दिखा रहे हैं
‘9 बजे 9 मिनट’ का हैशटैग 10 लाख से ज़्यादा बार ट्वीट हुआ। छात्रों के भीतर का ग़ुस्सा पहली बार तब दिखा जब प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ को भारतीय जनता पार्टी के यू-ट्यूब चैनल पर लाइव स्ट्रीम दिखाया गया। इस वीडियो को 75 लाख से ज़्यादा लोगों ने देखा, जबकि 12 लाख से ज़्यादा लोगों ने डिसलाइक किया। मतलब यह कि लगभग हर छठे व्यक्ति ने प्रधानमंत्री को नापसंद किया। JEE-NEET के परीक्षार्थियों ने परीक्षा रद्द करने की माँग को लेकर आंदोलन किए, लेकिन सरकार ने एक न सुनी।
परीक्षार्थियों को जान हथेली पर रखकर परीक्षा देने के लिए बाध्य होना पड़ा। छात्रों और युवा बेरोज़गारों के ग़ुस्से के इज़हार की पृष्ठभूमि न तो एक दिन में तैयार हुई है और न ही यह बगैर ठोस नतीजे के ख़त्म होने वाली दिखती है।
नौकरी माँगते छात्रों को ‘अच्छे दिन’ का इंतज़ार
बिहार और यूपी यानी कोरोना काल के सबसे बड़े भुक्तभोगियों में दो प्रमुख राज्य के छात्रों-नौजवानों ने देश के एक ऐसे मुद्दे को नेतृत्व देने का काम किया है जिसका दर्द करोड़ों बेरोज़गार और नौकरी गँवा बैठे लोग तो भुगत ही रहे हैं, परीक्षा देकर नतीजे के इंतज़ार में बैठे छात्र भी भुगत रहे हैं। अखिलेश यादव और प्रियंका गाँधी के लिए यह चुनौती की घड़ी है लेकिन उससे पहले राजनीतिक परीक्षा तेजस्वी यादव को देनी है।
अगर तेजस्वी बेरोज़गारी को मुद्दा बनाने में और रोज़गार देने का रोडमैप दिखाकर जनता का विश्वास पाने में सफल रहते हैं तो वह देश के बाक़ी राज्यों और राजनीतिज्ञों को भी लालटेन दिखा रहे होंगे।
मनरेगा भूख से बचाता है मगर नौकरी भी तो चाहिए
उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही प्रांतों में 32-32 लाख प्रवासी मज़दूरों के लौटने का दावा आधिकारिक रूप से किया गया। ये 64 लाख मज़दूर सीधे तौर पर नौकरी से बेदखल होकर अपने प्रांतों में लौटे हैं। बिहार सरकार के दावे को मानें तो 29 लाख मज़दूरों के खातों में एक-एक हज़ार रुपये डाले जा चुके हैं। वहीं, यूपी सरकार का दावा है कि उसने 57 लाख से ज़्यादा लोगों के लिए मनरेगा में रोज़गार सुनिश्चित कर राजस्थान को पीछे छोड़ दिया है। हालाँकि मनरेगा का महत्व पेट की आग मिटाने के लिए बहुत है मगर रोज़गार की निरंतरता के लिहाज़ से मनरेगा कभी विकल्प नहीं हो सकता। और, न ही हज़ार रुपये के मुआवज़े से नौकरी गँवा बैठे बेरोज़गारों या फिर पहले से मौजूद बेरोज़गारों की स्थिति में कोई फर्क आने वाला है।
अर्थव्यवस्था 2014 के स्तर पर पहुँचेगी?
राष्ट्रीय स्तर पर सीएमआईई के आँकड़ों के अनुसार देश में बेरोज़गारी की दर अगस्त महीने में 8.35 हो चुकी है। जुलाई के महीने में 7.4 प्रतिशत थी। चालू वर्ष की पहली तिमाही में 23.9 फ़ीसदी नकारात्मक जीडीपी विकास दर कोई उम्मीद पैदा नहीं करती। इस बात की आशंका बढ़ गयी है कि हमारे देश की इकॉनमी कहीं 2014 के स्तर पर न पहुँच जाए। तब यह 2 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा ऊपर थी।
ट्रंप की तरह नरेंद्र मोदी मानेंगे ग़लती?
आंदोलनकारियों और नेताओं में ग़ुस्सा इस बात का है कि देश की अर्थव्यवस्था को ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ का नतीजा मान लिया गया है जबकि कोरोना काल का लॉकडाउन हो या फिर इससे पहले 2016 की नोटबंदी और उससे आगे 2017 में जीएसटी लागू करना रहा हो, इससे देश की अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी। मगर, कभी ग़लती नहीं मानी गयी। ताज़ा ख़बर यह है कि डोनल्ड ट्रंप ने भी अपनी ग़लती मान ली है कि उन्होंने कोरोना की महामारी को हल्के में लिया। हल्के में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लिया, लेकिन वो मानते नहीं। कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी की ओर से फ़रवरी महीने की शुरुआत में ही आगाह कर दिए जाने के बावजूद ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे आयोजन हुए। हवाई अड्डों की निगरानी के तमाम दावे झूठे निकले और कोरोना फैलता चला गया। ऐसा फैला कि भारत दुनिया में एक दिन में सबसे ज़्यादा कोरोना वाला देश बन चुका है और अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है।
बेरोज़गारी पर फूटा ग़ुस्सा अगर ‘दीपांदोलन’ से आगे बढ़ता हुआ जनांदोलन बन जाता है तो यह निश्चित रूप से भारत की राजनीति की दिशा बदलने वाला होगा। अगर लोगों की नाराज़गी को दूर करना है तो प्रधानमंत्री को जनता के साथ संवाद करना होगा और उन्हें अपनी ग़लती भी माननी होगी। तभी जनता का विश्वास दोबारा बहाल हो सकता है।
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