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मोदी जी, पीएम बनने के बाद भी आप क्यों नहीं रोक पाए आतंकी हमले?

जब भी आतंकवादी हमला होता है, जवानों, नागरिकों की जानें जाती हैं तो देश में ग़ुस्से का उबाल आना स्वाभाविक है। इस ग़ुस्से में पाकिस्तान को सबक़ सिखाने की बातें होती हैं और ऐसा लगता है कि बस तुरंत पाकिस्तान पर हमला कर उसे नेस्तनाबूद कर दिया जाना चाहिए। 
पुलवामा हमले के बाद उठ रहा देशभक्ति का ज्वार अकारण नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि देशभक्ति में क्या होश भी खो देना चाहिए और वह सवाल नहीं पूछ जाने चाहिए जिनकी वजह से आतंकवादी हमले होते हैं, जवानों की जानें जाती हैं?
  • अटल बिहारी वाजपेयी जब भारत के प्रधानमंत्री थे तब भारत पर करगिल युद्ध थोपा गया था। एक ओर वाजपेयी भारत-पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता में मशगूल थे, वहीं दूसरी ओर सर्दियों के मौसम में पाकिस्तान ने बड़े पैमाने पर सैन्य टुकड़ियाँ घुसपैठियों के रूप में करगिल भेज दीं। 

भाँपने में फ़ेल रही वाजपेयी सरकार

3 मई 1999 को भेड़ चराने वाले स्थानीय नागरिकों से जानकारी मिली कि करगिल में कुछ लोग घुस आए हैं। पाकिस्तान की सेना ऊँचाई पर थी। भारत को अनुमान भी नहीं था कि यह मसला कितना गंभीर है। भारतीय वायुसेना ने अभियान शुरू किया तो घुसपैठियों ने पहले दिन ही मिग-21 और मिग-27 मार गिराए। दूसरे दिन वायुसेना का एमआई-17 पाकिस्तानी सेना ने मार गिराया, जिसमें 4 अधिकारी मारे गए। 
  • अपनी ही ज़मीन से घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए सेना को 2 महीने लंबा अभियान चलाना पड़ा। वाजपेयी सरकार ने इसे देश के सामने करगिल विजय के रूप में पेश किया। फ़िल्मी सितारों के बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित कराए गए। इसी तरह के एक कार्यक्रम में मक़बूल फ़िदा हुसैन ने पेंटिंग बनाई थी और उस प्रोग्राम का लाइव प्रसारण हुआ। पेंटिंग की नीलामी से जो पैसे मिले, उसे हुसैन ने सैनिक कल्याण कोष में दान कर दिया था। उस समय सब कुछ भुला दिया गया कि भारतीय सेना, ख़ुफ़िया तंत्र द्वारा ऐसी क्या चूक हुई, जिसकी वजह से सैनिकों को जान गंवानी पड़ी। 

तब बड़ी-बड़ी बातें, अब क्या? 

एक बार फिर देश में युद्ध के उन्माद जैसी स्थिति है। जब मनमोहन सिंह की सरकार के समय में भारतीय जवान हेमराज का सिर पाकिस्तानी सेना के जवान काट कर ले गए थे तो बीजेपी ने एक सिर के बदले 10 सिर लाने की बात की थी। सुषमा स्वराज ने सरकार को ललकारा था। इसके अलावा आज शहादत पर राजनीति न करने की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय मनमोहन सरकार से 5 अहम सवाल पूछे थे। मोदी उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मोदी के सवाल थे -

  • आतंकवादियों के पास शस्त्र व बारूद कहाँ से आता है? वह तो विदेश से आता है। सीमाएँ संपूर्ण रूप से आपके क़ब्जे में हैं, सीमा सुरक्षा बल आपके कब्जे में है? ऐसा कैसे हो जाता है।
  • आतंकवादियों के पास बाहर से धन आता है। पूरा मनी ट्रांजेक्शन का कारोबार भारत सरकार के अंडर में है, आरबीआई के अंडर में है, बैंकों के माध्यम से होता है, क्या प्रधानमंत्री आप इतनी भी निगरानी नहीं रख सकते? ये जो धन आतंकवादियों के पास विदेश से आता है, उसे रोकना आपके हाथ में है, आप उसे क्यों नहीं रोकते?
  • विदेश से घुसपैठिए आते हैं। घुसपैठिए आतंकवादियों के रूप में आते हैं, आतंकवादी घटनाएँ करते हैं और भाग जाते हैं। प्रधानमंत्री जी, आप मुझे बताइए, सीमाएँ आपके हाथ में हैं, कोस्टल सिक्योरिटी आपके हाथ में है। बीएसएफ़, सेना सब आपके हाथ में है, नेवी आपके हाथ में है, ये विदेशी घुसपैठिए कैसे घुस जाते हैं?
  • सारा कम्युनिकेशन भारत सरकार के अंडर में है। कोई अगर टेलीफ़ोन करता है, ई-मेल भेजता है, भारत सरकार उसे इंटरप्ट कर सकती है। इससे सरकार जान सकती है कि आतंकवादी गतिविधि के अंदर कौन सा कम्युनिकेशन चल रहा है और आप उसे रोक सकते हैं। मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूँ कि इस विषय में आपने क्या किया है?
  • जो आतंकवादी विदेश भाग चुके हैं, वहाँ बैठकर आतंकवाद की घटनाएँ कर रहे हैं। उनको  प्रत्यारोपण के द्वारा हिंदुस्तान लाने का अधिकार होता है। उसे क्यों नहीं लाया जा रहा है?
प्रधानमंत्री मोदी ने उस समय जो सवाल पूछे थे, उन्हें आप नीचे सुन सकते हैं। 
  • मोदी के मुताबिक़, अगर इन 5 बिंदुओं पर काम किया जाए तो आतंकवाद जड़ से उखड़ जाएगा। मोदी ने यह भी साफ़ किया था कि मनमोहन सिंह सरकार इन विषयों पर कोई काम नहीं कर रही है। मोदी ने कहा था कि ऐसा करने के लिए 56 इंच के सीने की ज़रूरत होती है।
मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। इसके बावजूद देश में आतंकी हमले हो रहे हैं। वह भी ऐसे हमले, जब सेना के हज़ारों जवानों के काफिले में एक आतंकवादी विस्फोटकों से भरा चौपहिया वाहन लेकर घुस गया और उसने सीआरपीएफ़ का ट्रक उड़ा दिया।

मोदी सरकार में कई बार हुए आतंकी हमले

18 सितंबर 2016 को उरी के सैन्य कैंप पर हुए हमले में 20 जवान शहीद हो गए। 29 नवंबर 2016 को नगरोटा में सेना की 16वीं कोर पर हुए हमले में सेना के 7 जवान शहीद हो गए। 26 अगस्त 2017 को पुलवामा में हुए हमले में सुरक्षा बल के 8 जवान शहीद हो गए। 10-11 फ़रवरी 2018 को जम्मू ज़िले के सुंजवान सैन्य कैंप पर आतंकियों के हमले में 6 जवान शहीद  हो गए थे। इसके अलावा सेना के मूवमेंट के दौरान राजमार्गों पर भी कई बार आतंकवादियों ने घात लगाकर हमले किए हैं।

देश यह जानना चाहता है कि सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर सेना के लिए फ़ंड बढ़ाने, सैनिकों की पेंशन ठीक करने सहित तमाम दावों के बावजूद आतंकी हमले, विदेश से ट्रांजेक्शन, विदेश की धरती से आतंकवाद का संचालन क्यों नहीं रुक रहा है?

हद तो यह हो गई है कि जिस आतंकवादी को अटल बिहारी वाजपेयी ने कंधार ले जाकर छोड़ा था, उसी ने सीआरपीएफ़ पर कहर बरपाए हैं। जैश-ए- मुहम्मद का प्रमुख वही मौलाना मसूद अजहर है जिसे वाजपेयी सरकार ने कंधार ले जाकर छोड़ा था। 

पठानकोट एयरबेस पर जैश-ए-मुहम्मद के हमले में 6 दिन तक आतंकियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन चलता रहा। इस हमले में 7 जवान शहीद हुए थे। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सरकार से मामला संभल नहीं रहा है और स्थिति पहले से भी बदतर होती जा रही है।
  • आम नागरिक के रूप में भारत सरकार से कुछ अहम सवाल पूछे जा सकते हैं।
  • सेना में जो लोग भर्ती होते हैं, वह किस तरह की पारिवारिक पृष्ठभूमि के लोग हैं? 
  • सेना में जाने वाले सिपाही किन स्कूलों में पढ़े होते हैं? क्या उन्हें उचित शिक्षा मिली होती है, जिससे कि वे कोई और रोज़गार ढूँढ पाएँ?
  • सिपाही के रूप में भर्ती होने वाले लोगों के पास कितनी ज़मीन-जायदाद होती है? क्या उनके पास रोजी-रोटी के कोई और साधन होते हैं?
  • सेना या अर्धसेना में 10-15 साल पहले जान गंवा चुके सैनिकों के परिवारों की आर्थिक स्थिति कैसी है? सिपाही की विधवा का क्या हाल है?
  • सेना में शहीद होने वाले सिपाही के बच्चे किन स्कूलों में पढ़ रहे हैं? क्या वे बेहतर शिक्षा या बेहतर  रोज़गार के अवसर पा रहे हैं?
  • ऊपर लिखे इन सवालों के जवाब चौंकाने वाले आ सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में अगर सामान्य सर्वे किया जाए तो पता चलेगा कि ग़रीब भूमिहीन या मामूली ज़मीन वाले किसानों, ख़ासकर पिछड़े वर्ग के रूप में चिह्नित हो चुके लोगों के बच्चे सेना में जाते हैं। देशभक्ति करने के पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि हमने अपनी देशभक्ति कैसे प्रदर्शित की है? सीमा पर या सीमा के भीतर आतंकी हमलों में शहीद हुए जवानों की हालत क्या है? 
क्या जो नेता सैनिकों के पार्थिव शरीर के प्रति हवाई अड्डे पर पहुँचकर अपनी देशभक्ति साबित कर रहे हैं, उनके बच्चे सेना में मामूली वेतन वाला सिपाही बनकर देश की रक्षा करने जाते हैं? यह सवाल पूछे जाने चाहिए और मरने वाले सैनिकों के परिवार, उनके बच्चों को अधिकतम सुविधाएँ दिलाने की माँग उठाई जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह क्यों नहीं कहा जाना चाहिए कि यह देशभक्ति दिखावटी है और सिर्फ़ राजनीतिक गोटियाँ फ़िट करने के लिए नेताओं की जमात ऐसा कर रही है? 
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प्रीति सिंह

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