बुलंदशहर में जब भगवा दल के लोग गोरक्षा के नाम पर उपद्रव कर रहे थे, लगभग उसी समय पड़ोस के ग़ाज़ियाबाद-नोएडा में किसानों का एक संगठन गाँवों में आवारा पशुओं के आतंक के ख़िलाफ़ आंदोलन की तैयारी में जुटा था। ये आवारा पशु और कोई नहीं हैं बल्कि बूढ़ी गायों और बैलों का समूह है जो रात में किसानों की फ़सल तबाह कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के महामंत्री युद्धवीर सिंह ने एक बयान में कहा है कि दो साल से उत्तर प्रदेश और राजस्थान में जो हालात बने हैं, उनके चलते गाँव में आवारा पशुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है और गाय और बैल का कोई ख़रीदार नहीं है। मजबूर किसान उन्हें आवारा छोड़ दे रहे हैं और अब वे झुंड बना कर खड़ी खेती को नष्ट कर रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान अब खेत जोतने या फिर खेती के अन्य कामों के लिए बैल का शायद ही कभी इस्तेमाल करते हैं। बीस साल पहले तक बैल खेती की रीढ़ की तरह थे लेकिन अब स्थिति बदल गई है। बैलों की जगह अब ट्रैक्टर आ गए हैं तो ज़ाहिर है कि किसान बैल पालना नहीं चाहते हैं। इसी तरह गायें जब दूध देना बंद कर देती हैं तो वे किसान के किसी काम की नहीं रह जाती हैं। अनुपयोगी जानवरों को पालना किसानों के वश में नहीं है क्योंकि एक जानवर को खिलाने पर हर महीने 2.5 से 3 हज़ार रुपया तक का ख़र्च आता है। खेती पर निर्भर आम किसान के लिए इतना ख़र्च उठाना असंभव है।
सिर्फ़ गोवंश की चिंता क्यों?
दो साल पहले तक यानी उत्तर प्रदेश में BJP की सरकार आने से पहले तक ये किसान अनुपयोगी जानवरों को बेच कर कुछ कमाई कर लेते थे। आज इन अनुपयोगी जानवरों का कोई ख़रीदार नहीं है। गोवंश की रक्षा के नाम पर हिंसक प्रदर्शन करने वाले भगवा ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं को किसानों की चिंता बिलकुल नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि गोरक्षा के नाम पर चलने वाले ज़्यादातर प्रदर्शन सियासी हैं। उनका मक़सद राजनीतिक है। जगह-जगह गोरक्षक के नाम पर अराजक लोगों की फ़ौज खड़ी हो रही है जिसका मूल मक़सद स्थानीय स्तर पर भी आतंक का दबदबा खड़ा करना है। दुर्भाग्य की बात यह है कि राज्य सरकार इस ओर से आँख मूँद कर बैठी है।
गाय को माता का दर्ज़ा क्यों?
बैल को हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिन्दू शास्त्रों में गाय को माता का दर्ज़ा दिया गया है। भारत में गाय को पूजने की परंपरा क़रीब चार-पाँच हज़ार साल पुरानी है। विशुद्ध तर्क के आधार पर परखा जाए तो इसके कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं। पहला कारण तो गाय का दूध है जो मनुष्य के लिए सबसे अच्छे पोषक तत्वों में से एक है। दूसरा कारण है बैल। गाय की संतान बैल भारत में ही खेती का मुख्य आधार रहा है। क़रीब बीस-पच्चीस साल पहले तक हमारी खेती बैल पर आधारित थी। ये खेत जोतने से लेकर फ़सल को खलिहान में पहुँचाने, इसकी साफ़-सफ़ाई के बाद उसे खाने लायक बनाने और मंडी तक पहुँचाने के लिए बैल आवश्यक थे। अब यही काम ट्रैक्टर और ट्रक करने लगे हैं। गाँवों में भी अब बैलगाड़ी दिखाई नहीं देती है। बैलगाड़ी कभी गाँव में सवारी ढोने का मुख्य ज़रिया हुआ करती थी। अब गाँवों में भी मोटर गाड़ियाँ आ गई हैं। एक समय था जब किसान की हैसियत उसके द्वारा पाले गए बैलों की संख्या से आँकी जाती थी। अब स्थिति बदल गई है। गाय से ज़्यादा दूध भैंस देती है। गाय और भैंस के दूध में गुणवत्ता के आधार पर कोई ख़ास फ़र्क नहीं है। जो बैल हज़ारों साल से किसानों के जीवन में ये सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखते थे, आज वे बेकार हो गए हैं।
किसान की मुसीबत कौन समझेगा?
भगवा ब्रिगेड गोवंश की रक्षा की हज़ारों साल पुरानी परंपरा को तो जीवित रखना चाहता है लेकिन किसान की मुसीबत को समझना नहीं चाहता। किसान गाय और गोवंश को लेकर सचमुच संकट में है। पचीस साल पहले तक बैल किसान की आमदनी का एक महत्वपूर्ण ज़रिया था। आज बैल किसान पर बोझ बन गया है। उत्तर प्रदेश राजस्थान व हरियाणा और पंजाब से लेकर बिहार तक में भी हालात ऐसे बन गए हैं कि मरी हुई गायों और बैलों को उठाने के लिए भी कोई तैयार नहीं है। कुछ साल पहले तक चमड़े का काम करने वाले लोग मरे हुए पशुओं को ले जाते थे। अब डर से उन्होंने भी यह काम बंद कर दिया है।
आवारा गाय और बैल नया संकट
इन सभी राज्यों में नीलगाय के नाम से प्रचलित एक अन्य जानवर खेती के लिए लंबे समय से आतंक बना हुआ था। पिछले कुछ वर्षों में कई राज्य सरकारों ने क़ानून बनाकर नीलगायों को मारने की अनुमति दी जिससे यह संकट कुछ कम हुआ। पर अब आवारा गाय और बैल नया संकट बन गए हैं। भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। गोशाला खोलकर इस समस्या के हल की बात कर रही है। लेकिन मध्य प्रदेश और कई राज्यों में गोशालाओं की जो धाँधली सामने आई है, उससे तो लगता है कि गोशाला भी कुछ लोगों के लिए कमाई का नया कारोबार है। सत्ता से जुड़े लोग और कुछ दलाल गोशाला के नाम पर सरकारों से अनुदान उठा कर हड़प कर जाते हैं और गोशालाओं में गाय और बैलों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।उपज की सही क़ीमत नहीं मिलने से परेशान किसान के लिए इस नई मुसीबत को झेलना बहुत मुश्किल है। भगवा ब्रिगेड चाहे जितना आतंक मचा ले, ट्रैक्टर के युग में आज बैल को पुराना सम्मान नहीं मिल सकता। बैल की उपयोगिता ख़त्म होती जा रही है इसीलिए बैल किसान के जीवन का हिस्सा नहीं है। आवारा पशुओं को लेकर जो आवाज़ ग़ाज़ियाबाद-नोएडा से अब उठ रही है, वह देश भर की आवाज़ है। हर राज्य में किसान को आवारा गाय और बैलों की समस्या से जूझना पड़ रहा है। धर्म और धार्मिक प्रतीकों को नशे की तरह इस्तेमाल करने वाले भगवा ब्रिगेड और उनको घोषित-अघोषित रूप से संरक्षण देने वाले सत्ताधारियों को आने वाले समय में इसका जवाब देना होगा।
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