जम्मू-कश्मीर के प्रतिष्ठित पत्रकार और ‘राइजिंग कश्मीर’ के प्रधान संपादक शुजात बुखारी की हत्या को दो साल हो चुके हैं लेकिन अब तक उनके हत्यारों का पता नहीं चल सका है।
सन् 2020 में आई कोरोना महामारी के दौरान देश के करोड़ों मज़दूरों और उनके परिजनों की यंत्रणा, बेहाली और तकलीफ़ के बारे में जब कभी याद किया जायेगा, सत्ताधारियों की ‘हिन्दुत्व-वैचारिकी’ पर भी सवाल उठेंगे।
प्रधानमंत्री ने रात के ठीक नौ बजे अपने-अपने घरों की लाइट नौ मिनट बुझाने और बालकनी या घर के बाहर खड़े होकर दीया, मोमबत्ती या टॉर्च आदि जलाने की अपील की! जिनकी छत के साथ बालकनी नहीं होगी या जिनके पास छत ही नहीं होगी, वे क्या करेंगे?
19 मार्च को जिस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी कोविड-19 के गंभीर ख़तरे पर राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे, अपने देश में कोरोना वायरस से संक्रमित कुल मामले 173 से ऊपर हो चुके थे। लेकिन इससे मरने वालों की संख्यी अभी तक सिर्फ़ 5 बताई गई है।
मोदी सरकार 28 सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। इनमें बीपीसीएल भी है। लेकिन एक बड़े लाभकारी उपक्रम को सरकार निजी हाथों में क्यों सौंप रही है?
चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की कई मुद्दों पर आलोचना की गई है। नफ़रत की राजनीति बीजेपी ने की तो हिंदुत्व के लिए केजरीवाल निशाने पर क्यों?
एक छोटे और अधूरे राज्य के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जिस स्तर तक जा कर चुनाव प्रचार किया और एग़्जिट पोल के जो नतीजे आए हैं, उससे सत्तारूढ़ दल पर कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
सीएए-एनपीआर-एनआरसी के विरोध में चल रहे आंदोलनों में शामिल लोगों को इसे व्यापक तो बनाना ही चाहिए, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह अहिंसक और लोकतांत्रिक हो।
सरकार के इस काले क़ानून और क्रूर क़दमों के ख़िलाफ़ जो लोग आज आवाज़ उठा रहे हैं, वे किसी एक समुदाय, जाति या बिरादरी की आवाज़ नहीं है, वह पूरे राष्ट्र और हर आम भारतीय नागरिक की आवाज़ है!
इस बार 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा के चुनाव में मोदी-शाह ने झारखंड के लिए ‘65-पार’ का नारा दिया था। पर झारखंड की अवाम ने बीजेपी को महज 25 पर सीमित कर दिया।