अलग-अलग दौर में यात्रा के रूट पर विस्फोट हुए हैं। जानमाल का नुक़सान भी हुआ। पर यात्रा तब भी नहीं रोकी गई। इस बार अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण माहौल के बावजूद यात्रा रोकी जा रही है। क्यों?
देश का लगभग आधा हिस्सा विभाजन, नफ़रत और दमन की राजनीति में पिचका जा रहा है। मॉब लिंचिंग, सांप्रदायिक विद्वेष और जातीय-टकराव के 90% से ज़्यादा मामले उत्तर या मध्य भारत में क्यों?
बीते कुछ दिनों में बैंगलुरू, मुंबई, गोवा और दिल्ली में जो कुछ घटित हुआ, वह हमारे शासन-तंत्र, संवैधानिक व्यवस्था और विधायिका की दृष्टि से बहुत चिंताजनक है।
बजट भाषण भी अच्छा दिया-धारा प्रवाह अंग्रेज़ी में। वित्त मंत्री के ‘प्रभावशाली बजट भाषण’ सुनने के बाद मैं बजटीय प्रावधान के ज़रूरी आँकड़ों का इंतज़ार करने लगा। आँकड़े कहाँ हैं?
सरकारें, दल, नेता और डॉक्टरों का बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं की असल समस्या को लोगों को नहीं बता रहा है। वे इन सबको भटकाकर एक नकली लड़ाई लड़ना और लड़ाना चाहते हैं!
क्या पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस लोकसभा चुनाव में भी सपा-बसपा को चलाने वाले दोनों ‘परिवार’ कहीं न कहीं केंद्र के निज़ाम और सत्ताधारी दल के शीर्ष नेतृत्व से डरे-सहमे थे?
अगर जनता ने मोदी-शाह की बीजेपी को सिरे से खारिज कर दिया और सत्ता में बने रहने की संभावना को भी ख़त्म कर दिया तो संघ-बीजेपी भी अपना नेतृत्व बदलने को तैयार होंगे।
लोकसभा चुनाव के बीच ही केंद्र की मौजूदा सरकार के एक महत्वपूर्ण हुक़्मरान अमिताभ कांत ने भारत में मतदान को क़ानूनी रूप से अनिवार्य करने की ज़रूरत पर बहस छेड़ने की कोशिश की है। क्या उन्हें इसके नुक़सान का अंदाज़ा है?