वैश्विक कोरोना आपदा से सबसे अधिक प्रभावित ग़रीब और लाचार ही रहे हैं, लेकिन जब ऐसी लाचारी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री के परिवार के साथ आ गई है।
क्या लॉकडाउन ग़लत तरह से लागू हुआ? कोरोना मरा नहीं, अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी। आशुतोष के साथ चर्चा में गोपाल अग्रवाल, अभय दुबे, घनश्याम तिवारी और आलोक जोशी।
24 मार्च के आसपास रोज़ 50-60 नए मरीज़ों का पता चल रहा था तो लॉकडाउन किया गया था और अब जब 8 हज़ार से ज़्यादा नए मरीज़ रोज़ मिल रहे हैं तो लॉकडाउन क्यों खोला जा रहा है?
देश जब दिक्कतों का सामना कर रहा हो, जनता या तो घरों में बंद हो या सड़कों पर पैदल चल रही हो, आपदा प्रबंधन के तहत सारी शक्तियाँ कुछ व्यक्ति-समूहों में केंद्रित हो गई हों, उस स्थिति में अदालतों, विपक्ष और मीडिया को क्या काम करने चाहिए?
लॉकडाउन बढ़ने या छूट देने की घोषणा करने अब प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर नहीं आ रहे हैं। कोरोना का सामाजिक संक्रमण शुरू हो गया है। शैलेश की रिपोर्ट में देखिए मोदी की बोलती क्यों बंद है।
सरकार द्वारा 29 लाख लोगों को कोरोना संक्रमित होने से बचाने और 78 हज़ार लोगों को मौत के मुँह में जाने से रोकने वाले दावे पर सवाल उठ रहे हैं। मैथेमैटिकल मॉडलिंग के विशेषज्ञ और इंस्टीच्यूट ऑफ मैथेमैटिकल साइसेंज के प्रोफ़ेसर गौतम मेनन ने कहा है कि सरकार का यह निष्कर्ष उस मॉडल पर आधारित है जो पारदर्शी नहीं है और देश से कहा जा रहा है कि वह इसे बग़ैर सवाल किए पूरी तरह स्वीकार कर ले। Satya Hindi
आज 1 जून से लॉकडाउन ख़त्म होने की उलटी गिनती शुरू हो रही है। सरकार ने इसे अनलॉक-1 का नाम दिया है जो 30 जून तक चलेगा। पॉजिटिव मामले बढ़ रहे हैं तो अनलॉक की घोषणा क्यों?
सुपर हिट फ़िल्म ‘हेराफेरी’ की याद मुझे आज 68 दिनों के लॉकडाउन खुलने के बाद हुए अनलॉक के पहले दिन आ रही है। देश भर में कुल मिलाकर हर जगह फ़िल्म ‘हेराफेरी’ जैसा सीन महसूस किया जा सकता है।
श्रमिकों ने सोचा कि सड़कों पर मारे-मारे फिरे तो सचमुच कोरोना से मर जाएँगे। किसी तरह घर पहुँच गए तो शायद ज़िंदा रह जाएँ अन्यथा मरण तो पक्का है। दोनों सूरतों में अगर मरना ही है तो क्यों न अपनी माटी में जाकर मिट्टी में मिल जाएँ।