पिछले साल फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों की जाँच को लेकर विवादों में घिर चुकी दिल्ली पुलिस की तीखी आलोचना अब अदालत भी कर रही है। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अभियुक्त के कथित कबूलनामे के लीक होने की जाँच रिपोर्ट पर पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि यह 'आधा-अधूरा और बेकार काग़ज़ का टुकड़ा है।'
उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा का एक साल: क्या पीड़ितों को मिला न्याय?कपिल मिश्रा फिर से क्या दोहराना चाहते है? देखिए वरिष्ठ पत्रकार नीलू व्यास की दिल्ली दंगे को लेकर ये रिपोर्ट-
दिल्ली दंगे के एक साल हो गए। देश इसे एक बुरे सपने की तरह शायद भूलने की कोशिश में है, लेकिन बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने एक ताज़ा विवादित बयान देकर उन घटनाक्रमों की पीड़ा को फिर से ताज़ा कर दिया!
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे के एक साल बाद जाँच कहाँ पहुँची और क्या दंगा पीड़ितों को न्याय मिला? दंगे में 53 लोगों की जानें गई थीं और गई बेघर हुए थे। भारी नुक़सान पहुँचा था।
बीते साल फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर और जाफ़राबाद समेत कुछ और इलाक़ों में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।
दिल्ली दंगों के मुसलमान अभियुक्तों की पैरवी कर रहे महमूद प्राचा के दफ़्तर पर छापा मारने की पुलिस की कार्रवाई किस तरह दोषपूर्ण, एकतरफा और भेदभाव पर आधारित थी, यह अब खुल कर सामने आ रहा है।
दिल्ली दंगों में मुस्लमानों के वकील महमूद प्राचा के आफिस पर पुलिस ने 15 घंटे छापा मारा । आशुतोष से उन्होने कहा कि दंगों के तार बहुत ऊपर तक है । पुलिस उन्हीं सबूतों को लेने ज़बरन आयी थी ।
क्या मशहूर वकील महमूद प्राचा को दिल्ली पुलिस इसलिए निशाना बना रही है कि वे दिल्ली दंगों में मुसलमानों की पैरवी कर रहे हैं? क्या वे गृह मंत्रालय के निशाने पर इसलिए हैं कि उन्होंने 22 आरएसएस कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ सबूत पेश कर उन्हें गिरफ़्तार करवाया था?
दिल्ली दंगों की जाँच कर रही पुलिस जिस तरह छात्रों और एक्टिविस्ट के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है, उससे भारतीय राज्य उत्पीड़न की अंधेरी रात में प्रवेश कर रहा है।
इस साल फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर और जाफ़राबाद समेत कुछ इलाक़ों में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।
दिल्ली पुलिस फरवरी में राजधानी में हुए दंगों में लोगों को फँसाना चाहती है, यह इससे साफ है कि इसने दंगों की साजिश के पीछे जो कहानी गढ़ी, उसका बड़ा झूठ पकड़ा गया। इस झूठ के पकड़े जाने के बाद दिल्ल पुलिस ने एक दूसरी चार्जशीट दाख़िल की।
क्या दिल्ली पुलिस इस साल फरवरी में राजधानी में हुए दंगों के असली दोषियों तक पहुँचना ही नहीं चाहती है? क्या वह दंगाइयों को बचाने के लिए दंगे की असली वजह की तलाश करने के बजाय इधर-उधर की बात कर रही है?
दिल्ली दंगे के छह महीने बाद भी सभी पीड़ितों को राहत नहीं मिल पाई है। दिल्ली सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि प्रभावित परिवारों को राहत मिलने में देरी हुई, हर्जाना कम मिला है, हर्जाने की माँग वाले कई आवेदनों को ग़लत तरीक़े से खारिज़ किए गए हैं।
दिल्ली दंगों की जाँच पर जूलियो रिबेरो का करारा जवाब! मुंबई के सुपरकॉप ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को दोबारा चिट्ठी लिखी। गोडसे के दौर में गांधी के साथ खड़े पूर्व पुलिस अफ़सर!