दिल्ली पुलिस फरवरी में राजधानी में हुए दंगों में लोगों को फँसाना चाहती है, यह इससे साफ है कि इसने दंगों की साजिश के पीछे जो कहानी गढ़ी, उसका बड़ा झूठ पकड़ा गया। इस झूठ के पकड़े जाने के बाद दिल्ल पुलिस ने एक दूसरी चार्जशीट दाख़िल की, जिसमें उस ग़लती को दुरुस्त कर दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद चार्जशीट में कई गड़बड़ियाँ रह गई हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस की मंशा दंगों की जाँच कर इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को दंड दिलाना नहीं, बल्कि दूसरे लोगों को फँसाना है।
8 जनवरी को रची थी साजिश?
‘द वायर‘ की एक ख़बर के अनुसार, दिल्ली पुलिस का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के दिल्ली दौरे के समय हिंसा फैला कर भारत सरकार को बदनाम करने के लिए दंगों की साजिश रची गई थी। पहले दायर चार्ज शीट, जिसमें एफ़आईआर 65/2020 का हवाला दिया गया है, उसमें कहा गया है कि 8 जनवरी, 2020 की एक बैठक में दंगा करने साजिश रची गई ताकि ट्रंप की यात्रा के समय ही बवाल हो सके।
पुलिस के अनुसार, 8 जनवरी की बैठक में 'यह साजिश रची गई थी कि सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर ज़बरदस्त विरोध किया जाए, जिससे हिेंसा फैले और दंगा हो ताकि केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम किया जा सके।' पहले की चार्ज शीट में कहा गया है कि इस बैठक में जएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद और आम आदमी पार्टी के कौंसिलर ताहिर हुसैन मौजूद थे और उन्होंने ही यह साजिश रची थी।
साजिश का झूठ?
लेकिन सच तो यह है कि उस तारीख़ तक अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत आने की कोई योजना नहीं बनी थी। उनके भारत आने की पहली खबर 13 जनवरी को समाचार माध्यमों पर चली थी। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगों की जो दूसरी चार्ज शीट दायर की है, उसमें दंगों का क्रमवार ब्यौरा दिया है, जिसमें कई जगह बदलाव किए गए हैं और जो पहले के ब्यौरे से अलग है।
'द वायर' के अनुसार, चार्जशीट के मुताबिक़ 16-17 फरवरी की रात दो बजे मुस्तफ़ाबाद के चाँद बाग में साजिशकर्ताओं की बैठक हुई, जिसमें यह तय हुआ कि डोनल्ड ट्रंप की दिल्ली यात्रा के समय उत्तर पूर्व दिल्ली की अलग-अलग जगहों पर दिन भर चक्का जाम किया जाए और सभी प्रदर्शनकारी ऐसे उपाय करें, जिनसे हिंसा फैले।
पुलिस का झूठ
लेकिन दिल्ली पुलिस यह अभी भी कहती है कि 8 जनवरी को ही शाहीन बाग स्थित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के दफ़्तर में उमर खालिद, ताहिर हुसैन और शैफी की बैठक हुई, जिसमें हिंसा की योजना बनाई गई। यही बात बीजेपी की आईटी सेल और उसके पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने पहले कही थी।
चार्ज शीट में यह भी कहा गया है कि दो टीवी चैनलों ने उमर खालिद के लंबे भाषण का एडिट किया हुआ हिस्सा चलाया था। लेकिन उन्होंंने यह भी कहा था कि उसके रिपोर्टर के पास इसका वीडियो नहीं है और यह उसे बीजेपी की आईटी सेल ने दी थी।
कपिल मिश्रा
दिल्ली दंगों की चार्ज शीट में पुलिस ने उमर खालिद के इस बयान को दंगा भड़काने की कोशिश क़रार दिया है, पर वह बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के बयान को भड़काऊ नहीं मानती, जिसमें वह पुलिस अफ़सर की मौजूदगी में तीन दिन अल्टीमेटम देते हुए कहता है कि उसके बाद वह सड़कों पर आ जाएगा।
कपिल मिश्रा लोगों को एकत्रित करता है और पुलिस की मौजूदगी में कहता है कि यदि सीएए-विरोधी प्रदर्शन कारियों को नहीं हटाया गया तो वह खुद हटाएगा।
पूरक चार्ज शीट में तो सीपीआईएम के सीताराम येचुरी, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और योगेंद्र यादव के भी नाम हैं, हालांकि उन्हें अभियुक्त नहीं बनाया गया है। देखें वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का वीडियो।
लेकिन 23 फरवरी को सोशल मीडिया पर चले एक वीडियो में साफ दिखता है कि कपिल मिश्रा ने मौजपुर में एक सीएए-समर्थक रैली में भाषण दिया। उनके बगल में डीसीपी (नॉर्थ) वेद प्रकाश सूर्य खड़े हैं और मिश्रा कह रहे हैं, 'वे प्रदर्शकारी दिल्ली में उप्रदव करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने रास्ता बंद कर दिया है। इसलिए उन्होंने दंगे जैसी स्थिति पैदा कर दी है हमने पत्थर नहीं फेंका है।'
वह आगे कहते हैं, मेरे बगल में डीसीपी खड़े हैं और मैं आपकी ओर से कह देना चाहता हूं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भारत में हैं, हम शांत हैं। इसके बाद यदि रास्ता नहीं खुला तो हम आपकी बात नहीं सुनेंगे, हमें सड़क पर उतरना ही होगा।'
दिल्ली पुलिस का भोलापन!
चार्ज शीट के अनुसार, पुलिस ने मिश्रा से पूछा कि क्या इसका क्या अर्थ है।
चार्ज शीट के मुताबिक़, मिश्रा ने कहा कि उनके कहने का मतलब यह था कि रास्ता न खुलने की स्थिति में वह भी वहीं धरने पर बैठ जाएंगे, इसलिए हमारी विनती है कि चाँद बाग खाली करवा दीजिए। दिल्ली पुलिस ने बीजेपी नेता की इस सफाई को मान लिया।
कई ख़ामियाँ
दिल्ली पुलिस की कहानी में कई खामियाँ हैं, जो उसकी ही चार्ज शीट से साफ है। चार्ज शीट में कहा गया है कि फ़िल्मकार राहुल राय सड़क जाम का मास्टर माइंड थे और उनके वॉट्सग्रुप दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप पर इससे जुड़े चैट हुए। लेकिन पुलिस इन चैट के अलावा कोई दूसरा सबूत नहीं दे पायी, और यह चैट भी अलग-अलग जगहों से लिया गया है। इन चैट्स में भी विरोध प्रदर्शन की अच्छाई-बुराई पर ही बात हो रही है, हिंसा की बात नहीं है।
पुलिस का कहना है कि इस वॉट्सऐप ग्रुप पर ज़्यादातर लोग चक्का जाम का समर्थन करते हैं, पर बनोज्योत्सना लाहिड़ी इस पर सवाल खड़े करती है। पुलिस इसकी तारीफ करती है, पर उसे यह पता नहीं की यह महिला उमर खालिद की ही मित्र है।
हास्यास्पद तर्क
पुलिस ने दंगो की साजिश के पीछे की जो बात कही है, वह भी हास्यास्पद है। पुलिस ने दंगों की चार्ज शीट में कहा है, “2019 के चुनावों का नतीजा जिस दिन निकला उसी दिन से दंगों के साजिश कर्ताओं का हाव भाव बदला हुआ था और उनमें हिंसा का समर्थन करने की प्रवृत्ति दिखने लगी थी।”
इसका मतलब यह हुआ कि कुछ लोग चुनाव के नतीजों को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे और उन्होंने उसी दिन से सरकार के ख़िलाफ़ साजिश रचना शुरू कर दिया था और दंगा उसी वजह से हुआ।
चार्जशीट में इस पर साफ साफ कहा गया है, 'इस मामले में हथियार, पेट्रोल बम वगैरह का इस्तेमाल कर पुलिस कर्मियों को घायल किया गया या उनकी हत्या कर दी गई...इसका मक़सद राज्य और केंद्र सरकार को डराना था और सीएए व एनआरसी को वापस लेने के लिए बाध्य करना था।'
पुलिस सीएए के समर्थन में होने वाले प्रदर्शन की बात को नज़रअंदाज करती है।
पुलिस की किरकिरी
इसके पहले दिल्ली दंगों की जांच को लेकर पूर्व आईपीएस अफ़सर जूलियो रिबेरो ने दिल्ली पुलिस को कटघरे में खड़ा किया है। रिबेरो ने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव को ख़त लिखकर कहा है कि कमिश्नर ने ‘बीजेपी के तीन बड़े नेताओं को लाइसेंस’ दिए जाने की बात का जवाब नहीं दिया है।
रिबेरो ने लिखा था, ‘दिल्ली पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है, लेकिन वह जानबूझकर नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने वालों के ख़िलाफ़ संज्ञेय अपराध दर्ज करने में विफल रही, जिससे पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे भड़क गए।’ रिबेरो को पद्म भूषण अवार्ड भी मिल चुका है और वह रोमानिया में भारत के राजदूत रहे हैं।
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