भारत में एक पुरानी कहावत है- “कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी”। यानी कोस-कोस पर पानी बदल जाता है और हर चार कोस पर वाणी यानी भाषा बादल जाती है। होली उत्सव मनाने की प्रक्रिया और इसके प्रचलित क़िस्से भी कई हैं।
कोरोना वायरस और दिल्ली दंगे का खौफ़ कितना ज़्यादा है? इसका अंदाज़ा होली जैसे उत्सव के माहौल से लगाया जा सकता है। होली जो देश में खुशियों के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है।
कौन से स्वार्थ उठ खडे होते हैं कि लोग ख़ून ख़राबे पर उतर आते हैं ? क्या वे ही ये लोग हैं जो आज के दिन ढफ ढोल बजाकर फागें गा रहे थे, क्या वे ही लोग जो हर एक दरबाजे पर जाकर फगुआ ले रहे थे?
किसी भी शताब्दी के शायर हों सभी शायरों ने अवाम को सबसे ऊपर रखा और लोक संस्कृति को बनाए, बचाए रखने की जमकर पैरोकारी भी की। ख़ुद भी रंगे और जमाने को भी रंग दिया।
स्त्रियों की दुनिया में धार्मिक भ्रम जाल हैं। शताब्दियों से उन्हें भरमा कर रखा गया है और हम हैं कि जाले साफ़ ही नहीं करते और न उन भ्रम जालों से जवाब माँगते हैं।