जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल तो हो गए, पर वे क्या जेएनयू के सवालों को वहां उठाते रहेंगे या वे सवाल अब हाशिए पर चले जाएंगे?
एक साल में भी नहीं मिल पाया टुकड़े टुकड़े गैंग? तमाम तस्वीरों और गवाहों के बावजूद मामला ठंडे बस्ते में क्यों? न कोई चार्जशीट, न गिरफ़्तारी? गृहमंत्री अमित शाह की दिल्ली पुलिस आख़िर कर क्या रही है?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा बुनियादी सवाल खड़ा कर दिया।
जिन शिक्षण संस्थानों पर मीडिया और सरकार द्वारा देशद्रोह की गतिविधियों का अड्डा होने के आरोप लगाए जाते हैं उनका शिक्षा के लिए नंबर वन आना क्या संकेत देता है?
जिनको देश विरोधियों का अड्डा बताया जाता है उन विश्वविद्यालयों को ही देश के शीर्ष 10 विश्वविद्यालयों में शामिल किया गया है। सरकार की ओर से जारी रैंकिंग में जेएनयू ने लगातार चौथी बार दूसरा स्थान हासिल किया है। Satya Hindi
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के दलित पी. एचडी. स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के 4 साल बाद क्या देश में दलितों की स्थिति में कोई सुधार हुआ है? क्या उच्च शिक्षा संस्थानी स्थिति बेहतर हुई है?
जेएनयू पर हमले के 6 दिन बाद भी किसी की गिरफ़्तारी नहीं होने से आलोचना की शिकार दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि उसने वॉट्सऐप ग्रुप के 60 में से 37 लोगों की पहचान कर ली है। इनमें से 10 लोग बाहरी हैं, यानी जेएनयू के नहीं हैं।
विभूति नारायण राय हिंदी के ख्यात लेखक हैं। तमाम कहानियाँ, उपन्यास और लेख उन्होंने लिखे हैं। वह उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अफ़सर रहे और हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति भी रहे। जब गुजरात में दंगे हुए थे तब उन्होंने आईपीएस कैडर के अफ़सरों को पत्र लिखकर संविधान का पालन करने की अपील की थी। जेएनयू के मसले पर उनसे सवाल कर रहे हैं शीतल पी सिंह।
जेएनयू हिंसा पर पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में क्यों है? क्यों पुलिस का बयान बार-बार बदल रहा है? पुलिस की एफ़आईआर में है कि लिखित में पुलिस को जेएनयू कैंपस में घुसने के लिए 3:45 बजे ही अनुमति मिल गई थी, फिर वह हिंसा को रोक क्यों नहीं पायी? पुलिस की एफ़आईआर और पुलिस के बयान में अंतर्विरोध क्यों है? क्या पुलिस झूठ बोल रही है? देखिए आशुतोष की बात।
जेएनयू हिंसा पर तथ्यों की पड़ताल में अब जो मामले सामने आ रहे हैं, वह क्या इशारा करते हैं? एबीवीपी पर जो ऊँगली उठाई जा रही है, वह कितना सच है? हिंसा के लिए ज़िम्मेदार कौन? छात्रों को चुन-चुन कर विशेष तौर पर हमला क्यों किया गया? देखिए शीतल के सवाल में वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष के साथ चर्चा।
जेएनयू में फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन पर समझौते के लिए एक फ़ॉर्मूला तैयार कर लिया गया, बातचीत हुई, सभी राजी हो गए। फिर क्या हुआ कि सबकुछ ख़त्म हो गया?