म्याँमार में सैन्य शासन ख़त्म करने और लोकतंत्र की बहाली की माँग कर रहे लोगों पर शनिवार को गोलीबारी में 100 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं। इनमें बच्चे भी शामिल है।
म्यांमार में उथल-पुथल मची हुई है। सैन्य हुकूमत की तानाशाही के ख़िलाफ़ आंदोलनकारियों ने सड़कों को पाट रखा है। उन पर गोलियाँ चलाई जा रही हैं। डेढ़ सौ मारे जा चुके हैं। भारत से कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं है?
महामारी का ख़तरा उन लोगों के लिए भी उतना ही है, लेकिन जिस तरह से म्याँमार यानी बर्मा में सेना ने चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर सत्ता पर कब्जा किया है, जनता तमाम ख़तरों को नजरंदाज करते हुए सड़कों पर निकल आई है।
म्यांमार में तख्तापलट हो गया है। एक नन घुटनों पर झुके हाथ फैलाए बीच सड़क पर हैं। सामने हथियारों से लैस पुलिस है। नन के पीछे लोकतंत्र के समर्थक प्रदर्शनकारी। वह बंदूकें ताने हुए सैनिकों से कहती हैं कि 'बच्चों को छोड़ दें और बदले में मेरी जान ले लें।'
एक फ़रवरी को तख्ता पलटने के बाद से म्यांमार के फौजी शासकों ने बर्मी जनता का जो दमन शुरू किया था, उसकी तीव्रता बढ़ती जा रही है और वह अधिक हिंसक होता जा रहा है।
म्यांमार में फिर से तब सैन्य तख्तापलट की आशंकाएँ छा गईं जब देश की नेता आंग सान सू ची और सत्ताधारी पार्टी के दूसरे नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। कई दिनों से सरकार और शक्तिशाली सेना के बीच तनाव चला आ रहा है।