पहले केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और उसके बाद आरएसएस के मुखपत्र पाँचजन्य ने जिस तरह इन्फ़ोसिस और टाटा समूह पर हमला किया है, उससे उद्योग जगत बेहद परेशान है।
अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े पर बहस के बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि मुसलिम समुदाय के समझदार मुसलिम नेताओं को अतिवाद का विरोध करना चाहिए।
आरएसएस की तालिबान से तुलना करने वाली गीतकार जावेद अख़्तर की टिप्पणी के बाद शिवसेना आरएसएस के बचाव में आ गई है। अपने मुखपत्र सामना में संपादकीय लिखकर शिवसेना ने जावेद अख़्तर की धर्मनिरपेक्षता की तो तारीफ़ की है, लेकिन उनकी तालिबान से तुलना को ग़लत बताया है। पढ़िए सामना के संपादकीय में क्या लिखा है-
मध्य प्रदेश में एमबीबीएस के छात्रों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार पढ़ाए जाएँगे। भावी डॉक्टरों को क्या इसकी ज़रूरत है?
आरएसएस के मुखपत्र 'पाँचजन्य' में कहा गया था कि इन्फ़ोसिस के ज़रिए राष्ट्रविरोधी ताक़तें देश को कमज़ोर कर रही हैं, अब उसने कहा है कि ये लेखक के निजी विचार हैं।
बीजेपी विधायक राम कदम ने हिन्दू राष्ट्रवादियों की तुलना तालिबान से करने के कारण गीतकार व पटकथा लेकर जावेद अख़्तर की फ़िल्मों के बायकॉट का एलान किया है।
राष्ट्रीय स्वंयसेव संघक यानी आरएसएस से जुड़ा किसान संगठन भारतीय किसान संघ भी अब कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ खड़ा हो रहा है। इसने 8 सितंबर को पूरे देश में एक दिन के धरने का कार्यक्रम रखा है।
आरएसएस राजनीतिक विरोधियों से गले मिलने की तैयारी कर रहा है ताकि यह भरोसा दिलाया जा सके कि संघ किसी विरोधी विचारधारा के ख़िलाफ़ नहीं है। आरएसएस हाईकमान देश के तमाम राज्यों के ग़ैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों से मुलाक़ात शुरू करेगा।
क्या है आरएसएस के मुसलमानों से नज़दीकी के मायने? देखिये वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी की ख़ास बातचीत संघ विचारक दिलीप देवधर और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष से द विजय त्रिवेदी शो में
चित्रकूट में संघ यूपी चुनाव के लिए क्या कर रहा है? योगी राज को बचाने की वह क्या रणनीति बना रहा है? डॉ. मुकेश कुमार के साथ चर्चा में शामिल हैं संतोष भारतीय, अंबरीश कुमार, सतीश के सिंह, प्रो. रविकांत और सिद्धार्थ कलहंस
आपातकाल को उन लोगों ने भी बढ-चढकर याद किया, जो अपनी गिरफ़्तारी के चंद दिनों बाद ही माफ़ीनामा लिखकर जेल से बाहर आ गए थे, ठीक उसी तरह, जिस तरह विनायक दामोदर सावरकर अंग्रेजों से माफ़ी माँग कर जेल से बाहर आए थे।