सुप्रीम कोर्ट में दो महिला पत्रकारों-पेट्रीसिया मुखिम और अनुराधा भसीन ने राजद्रोह क़ानून के ख़िलाफ़ याचिक दायर कर कहा है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार की पूर्ण प्राप्ति को बाधित करता है।
क्या राजद्रोह कानून के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनेगी सरकार? क्या सुप्रीम कोर्ट सरकार को इसके लिए बाध्य कर सकता है? डॉ. मुकेश कुमार बात कर रहे हैं सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष दुष्यंत दवे से
सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी है। पहले ही दिन कोर्ट ने यह सवाल उठा दिया है कि क्या अंग्रेज़ी हुकूमत में अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोंटने के लिए बनाए गए इस क़ानून की आज कोई ज़रूरत है?
Satya Hindi News Bulletin। सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन। SC : अंग्रेज़ों के देशद्रोह के क़ानून की क्या 75 साल बाद भी ज़रूरत? The Supreme court asks- is it still necessary to continue sedition law which was used by britishers to suppress our freedom movement.
दिल्ली की एक अदालत ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण फ़ैसला दिया है। अदालत ने कहा है कि ‘शांति व क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए राजद्रोह का क़ानून बहुत ही कारगर हथियार है, पर समाज-विरोधियों को दबाने के नाम पर असहमति की आवाज़ को चुप नहीं कराया जा सकता है।’
सरकार की नीतियों और फ़ैसलों के लोकतांत्रिक व शांतिपूर्ण विरोध को भी कुचलने का हथियार बन चुके राजद्रोह क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर ने चिंता जता कर इस पर नए सिरे से बहस छेड़ दी है।
गृह मंत्री अमित शाह ने यह कह कर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि राष्ट्रविरोधी नारे लगाने वालों को सीधे जेल भेज दिया जाएगा। प्रश्न यह है कि क्या नारा लगाने मात्र से ही किसी को जेल की सज़ा हो सकती है?
फ़िल्म अभिनेत्री और निर्देशक अपर्णा सेन ने खुद पर लगाए गए राजद्रोह के मामले पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि परेशान किया जा रहा है, लोकतंत्र की जगह सिकुड़ती जा रही है।
पिछले कुछ सालों में जिस तरह राजद्रोह से संबंधित धारा 124A का दुरुपयोग हुआ है उससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या हमें इसके बारे में फिर से विचार करने की ज़रूरत है।