बीजेपी का लक्ष्य किसी भी क़ीमत पर हर राज्य में अपनी सरकार बनाना है। इसलिए अरुणाचल प्रदेश का घटनाक्रम इस बात का भी संकेत है कि बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में चौंकाने वाली घटनाओं के साथ बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर 'एक देश-एक चुनाव’ यानी सारे चुनाव एक साथ कराने का अपना इरादा जाहिर किया है। वह बार-बार इसे मुद्दे को क्यों छेड़ रहे हैं? चुनाव आयोग पर क्या असर होगा?
बीजेपी के पूर्व ‘सूबेदार’ देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि वे जल्द ही फिर सरकार बनाएंगे। उन्होंने जोर देकर कहा है कि इस बार शपथ रात के अंधेरे में नहीं बल्कि सही समय पर होगी।
पश्चिम बंगाल में कुछ महीनों बाद विधानसभा का चुनाव होना है। इस युद्ध में बीजेपी के सेनापति गृहमंत्री अमित शाह हैं, इसलिए राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने भी ख़ुद को इस युद्ध में झोंक रखा है। क्या राज्यपालों का यही काम है?
आज गोवर्धन पूजा का दिन है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में स्थापित मान्यताओं के प्रति उस पहले विद्रोह का प्रतीक भी है, जो द्वापर युग में देवराज इंद्र की निरंकुश सत्ता-व्यवस्था के ख़िलाफ़ कृष्ण के नेतृत्व में हुआ था।
वैसे तो संसद या विधानमंडल के किसी भी सदन की किसी भी खाली सीट के लिए उपचुनाव होना एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन मध्य प्रदेश की 28 सीटों के लिए हुए उपचुनाव देश के संसदीय लोकतंत्र की एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक घटना है।
वैसे तो पिछले लंबे समय से अर्थव्यवस्था के क्षेत्र से आ रही लगभग सभी ख़बरें निराश करने वाली ही हैं, लेकिन इन दिनों बेरोज़गारी में इजाफ़े के साथ ही सबसे बड़ी और बुरी ख़बर यह है कि आम आदमी को महंगाई से राहत मिलने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं।
बीजेपी- शासित राज्यों में इस तरह की नफ़रत फैलाने में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने भी अहम भूमिका निभाई। विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपील जारी करनी पड़ी कि इस महामारी को किसी धर्म, संप्रदाय और नस्ल विशेष से जोड़ कर न देखा जाए।
भारत में कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में तब्लीग़ी जमात को लेकर ख़ूब शोर मचा था, उसे लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने कहा है कि तब्लीग़ी जमात में विदेश से आए लोगों को 'बलि का बकरा’ बनाया गया।
कृष्ण यानी हज़ारों वर्षों से व्यक्त-अव्यक्त रूप में भारतीय जनमानस में गहरे तक रचा-बसा एक कालजयी चरित्र, एक धीरोदात्त नायक, एक लीला-पुरुष, एक महान तत्वशास्त्री, एक आदर्श प्रेमी और सखा, एक महान विद्रोही, एक युगंधर… युगपुरुष।
स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने अपनी मृत्यु से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्रों में उन्हें गंगा की अवहेलना करने, उसके हितों को हानि पहुंचाने और उसे धोखा देने के साथ ही अपनी संभावित मृत्यु का जिम्मेदार भी ठहराया था।
पिछले कुछ वर्षों से देखने में आ रहा है कि कमोबेश सभी ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों के राज्यपाल राज्य सरकार की सलाह से नहीं बल्कि खुलेआम केंद्र सरकार की सलाह से काम कर रहे हैं।
कोरोना के चलते देश-दुनिया के बाज़ारों में अभूतपूर्व मंदी है लेकिन भारत की राजनीतिक मंडी में जनप्रतिनिधियों की ख़रीद-फ़रोख़्त का क़ारोबार अबाध गति से जारी है।
भारत एक बार फिर चीन के विस्तारवादी इरादों का सामना कर रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा पर ज़बर्दस्त तनाव के हालात बने हुए हैं। 1962 के लिये नेहरू ज़िम्मेदार तो 20 सैनिकों की मौत की ज़िम्मेदारी क्या नरेंद्र मोदी की नहीं है?
बीते कुछ दिनों से देश के कई हिस्सों में भूकंप आ रहे हैं। पृथ्वी को बनने-संवरने में करोड़ों वर्ष लगे लेकिन हमने इसे कुछ ही दशकों में बर्बाद कर दिया। हमारी ये कारगुजारी ही भूकंप आने का कारण है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि नेहरू को अपने जीवनकाल में तो जनता से बेशुमार प्यार और सम्मान मिला लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी लगातार अनदेखी होती गई और उनकी प्रतिष्ठा में कमी आई।
अगर चुनाव आयोग कोरोना के संकट के दौरान महाराष्ट्र में चुनाव कराने का आदेश दे सकता है तो कई राज्यों की राज्यसभा और विधान परिषद की सीटों के चुनाव को क्यों टाला जा रहा है?