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तो अब 'ऑपरेशन कमल’ के लिए फिर से महाराष्ट्र की बारी है!

महाराष्ट्र में महाविकास अघाडी यानी शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार का एक साल पूरा हो गया है। एक साल पूरा होने के साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि यह सरकार अब आगे कितने दिन तक रह पाएगी? यह सवाल महाराष्ट्र के बीजेपी नेताओं के उन बयानों से खड़ा हुआ है, जिसमें उन्होंने कहा है कि आने वाले कुछ दिनों में बीजेपी महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी। 

दूसरी ओर, इस मौके पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी बेहद तल्ख अंदाज में अपनी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने वालों को शिव सेना की ओर से जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है।

शपथ दिलाने में कोश्यारी की फुर्ती

एक साल पहले मुंबई में गजब का खेल हुआ था। देर रात से लेकर सुबह सूरज निकलने तक चले नाटकीय घटनाक्रम में राष्ट्रपति ने राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश भी कर दी थी। इसके फौरन बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बहुमत के दावे का परीक्षण किए बगैर ही तड़के बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी के नेता अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। हालांकि चंद घंटों के भीतर ही एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अपने भतीजे की अगुवाई में हुई बगावत को फेल कर दिया था।

एक साल पुराने उसी नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम को याद करते हुए बीजेपी के पूर्व ‘सूबेदार’ देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि वे जल्द ही फिर सरकार बनाएंगे। उन्होंने जोर देकर कहा है कि इस बार शपथ रात के अंधेरे में नहीं बल्कि सही समय पर होगी।

जिस दिन फडणवीस का यह बयान आया, उसी दिन केंद्रीय मंत्री राव साहेब दानवे ने भी एलान किया कि महाराष्ट्र में अगले दो-तीन महीने में बीजेपी की सरकार बन जाएगी। 

सूबे में बीजेपी के दोनों शीर्ष नेताओं के बयान इस बात का संकेत हैं कि महाराष्ट्र में एक बार फिर ‘ऑपरेशन कमल’ की तैयारी चल रही है, जिसकी कामयाबी को लेकर ये नेता आश्वस्त हैं। ‘आपरेशन कमल’ का मतलब है किसी भी तरह से विपक्ष की सरकार नहीं रहने देना और बीजेपी की सरकार बनाना। 

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दोनों ओर है खलबली

हालांकि महाराष्ट्र में बीजेपी के भीतर भी बहुत कलह मची हुई है। पिछले दिनों पार्टी के कद्दावर नेता एकनाथ खडसे एनसीपी में शामिल हो गये। दूसरी ओर, महाविकास अघाडी में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कांग्रेस के कई नेता मंत्री न पाने की वजह से दुखी हैं तो जो मंत्री बने हुए हैं, वे कुछ अन्य कारणों से असंतुष्ट हैं। इसलिए महाराष्ट्र के बीजेपी नेता जिस उलटफेर के होने का दावा कर रहे हैं, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। 

Rumbling of operation lotus in maharashtra - Satya Hindi

हालांकि महाराष्ट्र विधानसभा में विभिन्न दलों का संख्या बल ऐसा है कि वहां मध्य प्रदेश या कर्नाटक की तरह खेल होना आसान नहीं है। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 145 है, जबकि बीजेपी के पास अपने सिर्फ 105 विधायक हैं। अगर वह 13 निर्दलीय और कुछ अन्य छोटी पार्टियों के इक्का-दुक्का विधायकों का समर्थन भी हासिल कर लेती है तो उसकी यह संख्या 125 से आगे नहीं पहुंचती है। 

इस संख्याबल के सहारे वह तभी सरकार बना सकती है जब सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल दलों के 25-30 विधायक विधानसभा से इस्तीफा दे दें, जैसा कि मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हुआ था। ऐसा होना असंभव तो नहीं, मगर मुश्किल ज़रूर है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जिस तरह की राजनीति करते हैं, उसके चलते यह बहुत मुश्किल भी नहीं है। दूसरी सूरत में उलटफेर तब हो सकता है, जब गठबंधन ही बदल जाए। यानी शिव सेना और एनसीपी में से कोई एक पार्टी बीजेपी के साथ आ जाए।

मध्य प्रदेश में सरकार गिराई 

जो भी हो, महाराष्ट्र के दो शीर्ष बीजेपी नेताओं ने अगर उद्धव ठाकरे सरकार की विदाई का गीत गुनगुनाया है तो उसे अनसुना नहीं किया जा सकता। इस गीत के मुखड़े को दिल्ली में शीर्ष स्तर पर किसी ने लिख कर अपने सूबे के साजिंदों को थमाया है। इसे लिखने की प्रेरणा भी निश्चित ही मध्य प्रदेश के 'ऑपरेशन कमल’ की ऐतिहासिक कामयाबी से ही मिली होगी। 

वहां भी 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से प्रादेशिक नेताओं तक ने कहना शुरू कर दिया था कि वे जिस दिन चाहेंगे, उस दिन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिरा देंगे। उन्होंने जो कहा था, उसे महज 15 महीने बाद ही सचमुच करके दिखा भी दिया। 

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सिंधिया ने की थी बग़ावत

गौरतलब है कि इसी साल मार्च महीने में एक चौंकाने वाले घटनाक्रम के तहत पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से अपना 18 साल पुराना नाता तोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए थे। उनके समर्थन में कांग्रेस के 19 विधायकों ने भी कांग्रेस पार्टी और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था।

बीजेपी का दोबारा सत्ता हासिल करने का सपना सिर्फ 15 महीने बाद ही साकार हो गया। कांग्रेस सत्ता से रुखसत हो गई। विधानसभा की कुल 28 सीटें खाली हो गईं, जिन पर पिछले दिनों उपचुनाव हुए। बीजेपी को 230 सदस्यों की विधानसभा में बहुमत के लिए महज आठ विधायकों की ज़रूरत थी लेकिन वह उपचुनाव वाली 28 में से 19 सीटें जीतने में कामयाब रही और उसे आरामदायक बहुमत हासिल हो गया। 

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कई राज्यों में गिराई सरकारें

‘ऑपरेशन कमल’ के भविष्य के लिहाज से मध्य प्रदेश के उपचुनाव के नतीजे बेहद महत्वपूर्ण हैं। अब तक बीजेपी ने ‘ऑपरेशन कमल’ के तहत विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों के विधायकों और सांसदों के इस्तीफ़े कराए हैं और फिर उन्हें अपनी पार्टी से चुनाव लड़ाकर विधायक या सांसद बनाया है। इसी रणनीति के सहारे उसने कर्नाटक, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर आदि राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें गिराकर या उन्हें सरकार बनाने से रोक कर अपनी सरकारें बनाई हैं और इसी रणनीति से राज्यसभा में भी अपनी ताकत में जबरदस्त इजाफा किया है। 

मध्य प्रदेश में ‘ऑपरेशन कमल’ की असल परीक्षा उपचुनाव में ही होनी थी, जो हो चुकी है। कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में आए ज्यादातर पूर्व विधायक उपचुनाव जीत गए हैं, लिहाजा माना जा सकता है कि वहां उसका यह ऑपरेशन बहुत हद तक कामयाब रहा।

मध्य प्रदेश ने दिखाया रास्ता

हालांकि राजस्थान और महाराष्ट्र में भी बीजेपी एक-एक बार तो इस सिलसिले में कोशिश कर चुकी है, लेकिन उसमें उसे कामयाबी नहीं मिली। लेकिन मध्य प्रदेश की कामयाबी से दूसरे राज्यों में इसे आजमाने का रास्ता खुल गया है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के 'विपक्ष-मुक्त भारत’ अभियान के तहत ऐसा होना स्वाभाविक भी है। महाराष्ट्र में तो इसे जल्द आजमाने का संकेत वहां के शीर्ष बीजेपी नेता दे ही चुके हैं। 

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झारखंड, हरियाणा भी निशाने पर

महाराष्ट्र के अलावा झारखंड, हरियाणा तथा एक बार फिर राजस्थान में भी बीजेपी इस ऑपरेशन को आजमा सकती है। ख़बर है कि हरियाणा में कांग्रेस के कुछ विधायकों को मध्य प्रदेश की तर्ज पर विधानसभा से इस्तीफा दिलवाकर बीजेपी में शामिल होने और उसके टिकट पर उपचुनाव लड़ने का प्रस्ताव मिल चुका है। झारखंड में भी कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायकों के सामने यह प्रस्ताव लंबित है।

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इन राज्यों में तमाम दूसरी पार्टियों के विधायकों की नज़र भी मध्य प्रदेश के उपचुनावों पर टिकी हुई थी। अगर कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में आए ज्यादातर पूर्व विधायक चुनाव नहीं जीत पाते तो ऐसी स्थिति मे ‘ऑपरेशन कमल’ पर ब्रेक लग सकता था। क्योंकि कोई भी विधायक अपनी विधानसभा की सदस्यता को खतरे में डालने का जोखिम मोल नहीं ले सकता, खासकर ऐसे राज्यों में जहां विधान परिषद नहीं है। 

महाराष्ट्र में विधान परिषद है। वहां अगर बीजेपी ‘ऑपरेशन कमल’ के जरिए अपनी सरकार बना लेती है तो वह विधानसभा चुनाव हारने वाले को उच्च सदन यानी विधान परिषद में भेज सकती है। लेकिन राजस्थान, हरियाणा और झारखंड में यह सुविधा यानी विधान परिषद नहीं है। 

बहरहाल आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि महाराष्ट्र में बीजेपी ‘ऑपरेशन कमल’ को किस तरह अंजाम देती है और कैसे वहां अपनी सरकार बनाती है।

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अनिल जैन

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