loader

मोदी नहीं ‘गली बॉय’ सिखाती है, अच्छे दिन कैसे आएँगे

2018 है, देश को ख़तरा है

हर तरफ़ आग है, तुम आग के बीच हो 

जोर से चिल्ला लो 

सबको डरा दो

अपनी ज़हरीली बीन बजा के 

सबका ध्यान खींच लो 

जिंगोस्तान जिंदाबाद  - 

फ़िल्म ‘गली बॉय’ का यह रैप गीत एक राजनीतिक बयान भी है, जो पिछले कुछ सालों से देश में बन रहे माहौल की एक झलक दिखलाता है। एक तरफ़ देश की युवा पीढ़ी है जो ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’, जैसे नारों के बीच उम्मीद की किरण तलाश कर रही है और दूसरी तरफ़ सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताएँ हैं जो अंदर ही अंदर खलबली मचा रही हैं। 

निर्देशक ज़ोया अख़्तर की फ़िल्म ‘गली बॉय’ इस मामले में शानदार है कि वह समाज के सबसे निचले आर्थिक पायदान पर खड़े समुदाय के सपने, संघर्ष, वर्जना, पलायन और उम्मीद सबको सामने लाती है।

मंज़िल की तलाश बनाती है रैपर 

फ़िल्म का हीरो रणवीर सिंह एक साधारण मुसलमान परिवार का सदस्य है जिसके ड्राइवर पिता उसे अपनी तरह ड्राइवर या मामूली नौकरी करने वाला इंसान बनाना चाहते हैं। लेकिन रणवीर के सपने बड़े हैं और मंजिल की तलाश में वह रैपर बन जाता है। तमाम वर्जनाओं को तोड़कर वह कामयाबी की तरफ़ क़दम बढ़ाता है। लेकिन यह फ़िल्म अत्यंत ग़रीब के अमीर यानी ‘रैग्स टू रिचेज़’ बन जाने की कहानी नहीं है। 

  • फ़िल्म में रणवीर का पहला संघर्ष अपने पिता से है, जो उसके बड़े सपने देखने के ख़िलाफ़ हैं। पर ड्राइवर की मामूली नौकरी करने के बावजूद उन्हें ख़ुद दूसरी शादी करने से एतराज़ नहीं है। फ़िल्म की हीरोइन आलिया भट्ट भी मुसलिम परिवार से है। आलिया के परिवार को उसकी डॉक्टरी की पढ़ाई से एतराज़ नहीं है, लेकिन घर की लड़की का किसी युवक से मेल-जोल करना उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाता है।

बढ़ती जा रही हैं वर्जनाएँ 

फ़िल्म में सब साधारण पात्र हैं जो हमारे आस-पास हर कहीं दिखाई देते हैं। फ़िल्म में अपने परिवार और समाज से संघर्ष भी हमारे आस-पास के संघर्ष से मिलता-जुलता है। यह संघर्ष हमारे देश में क़रीब 100 सालों से चल रहा है। लेकिन समाज की वर्जनाएँ टूट नहीं रही हैं, बल्कि बढ़ती जा रही हैं। 

समाज में बढ़ रही वर्जनाओं के लिए ज़िम्मेदार हैं हमारे आज के राजनीतिज्ञ, जिनकी पुरज़ोर कोशिश है कि समाज में धार्मिक उन्माद बढ़े, जातिवाद बढ़े, छद्म राष्ट्रवाद बढ़े, ताकि उनकी राजनीति तो चमकती रहे।
  • समाज में बड़े बदलाव हर क़दम पीछे झाँकने वाली राजनीति को चुनौती देते हैं। भारत के नेता इससे डरते हैं। ‘गली बॉय’ कोई राजनीतिक फ़िल्म नहीं है, इसलिए वह कहीं व्यवस्था को सीधी चुनौती नहीं देती। लेकिन बिना कुछ कहे भी कह जाती है कि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ का नारा देने वाले नेता लोगों की जिंदगी नहीं बदल सकते।

सपने और संघर्ष को दिखाती है फ़िल्म 

यह फ़िल्म एक व्यक्ति के सपने और संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमती है। उसका यह संघर्ष अपने अंदर भी है और बाहर भी। पूरा परिवार और समाज ख़िलाफ़ हो तो एक व्यक्ति का अपने बड़े सपने के साथ खड़ा रहना मुश्किल हो जाता है, वह अंदर से टूटने लगता है। सामाजिक के साथ आर्थिक दबाव हों तो साधारण मुश्किलें भी मुसीबत बनने लगती हैं। लेकिन अंदर के संघर्ष से निकलकर जब आदमी बाहर आता है तो उसकी मंज़िल क़रीब आने लगती है। 

मुंबई की झोपड़-पट्टी धारावी की ज़मीन से उपजी यह फ़िल्म अपने सामाजिक सरोकारों को पीछे नहीं छोड़ती है। फ़िल्म यह साफ़ कर जाती है कि जीत के लिए परिवार, समाज और ख़ुद से लड़ना एक ज़रूरी क़दम है।

यह फ़िल्म 2018 में बनी है तो 2018 के माहौल को भी एक हद तक सामने लाती है। मुख्य किरदार यानी हीरो एक मुसलमान है तो वह मुसलिम परिवार की घुटन और व्यवस्था को भी सामने लाता है। 

रूढ़ियों में घसीट रही राजनीति

राजनीति का एक प्रधान लक्ष्य होता है - एक समाज को अपनी रूढ़ियों और जकड़नों से बाहर लाना। दुर्भाग्य से पिछले कुछ वर्षों से ऐसी राजनीति चल रही है जो हमें तीन-चार सौ साल पुराने दौर में घसीटने की कोशिश कर रही है। ऐसी पिछलगामी कोशिशें समाज को आगे नहीं ले जा सकती हैं। लेकिन व्यक्ति की कोशिशें उसे व्यक्तिगत कामयाबी की तरफ़ क़दम बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती हैं। 

आजकल की राजनीति दोधारी हो गई है। जब एक नेता कहते हैं ‘सबका साथ सबका विकास’ तो उनकी एक धार सामने आती है, लेकिन जब उनका ही धार्मिक अजेंडा विकास को पीछे छोड़ देता है तो दूसरी धार सामने आती है। दु:ख इस बात का है कि दूसरी धार ही अब मुख्य धारा हो गई है। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
शैलेश

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें