loader

वक़्त ने किया क्या हसीं सितम...

पार्टी की ओर से हर महीने मिलने वाले 75 रूपए में गुज़र बसर बहुत मुश्किल थी, इसलिए कैफ़ी ने अख़बार में कालम लिखना शुरू कर दिया। किसी बड़ी ख़बर पर यह बग़ावती शायर व्यंग में टिप्पणी करता था। साथ ही वे इप्टा के लिए नाटक भी लिखने लगे। 
इक़बाल रिज़वी

कहते हैं, 'जहां ना पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि।' यह बात हर कवि पर भले ही लागू ना हो लेकिन कैफ़ी आज़मी पर यह कहावत सोलह आने सच साबित होती है। 14 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ के मिज़वा गांव में कैफ़ी आज़मी का जन्म हुआ। वे बचपन में ही तब से बाग़ी होने लगे थे जब उन्होंने सामंतवादी आत्याचारों को अपने परिवेश में होते देखा।

फिर चाहे सामप्रदायिकता हो या किसान मज़दूरों और महिलाओं के हक़ की बात। रोमांटिक गीत हों, नाटक और व्यंग। कैफ़ी ने सब पर कलम चलाई। 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए पहले युद्ध के दौरान ऐसी घटनाएं भी हुईं, जो नजरअंदाज़ हो गईं। जैसे विभाजन के बाद कई ऐसे मुसलिम  परिवार बँट गए, जिनके कुछ सदस्य आजादी से पहले भारतीय सेना में थे। आज़ादी के बाद एक ही परिवार के कुछ सैनिक भारत तो कुछ पाकिस्तानी सेना में तैनात थे। 65 की जंग में कई मोर्चों पर दोनो आमने सामने थे। दोनो के लिये बेहद संकट का कड़ा समय था। दोनो को अपनी अपनी वफ़ादारी साबित करनी थी। इस परिस्थिति को कौरव पांडव युद्ध के संदर्भ में श्री कृष्ण के संदेश से सहायता लेते हुए कैफी ने एक नज्म 'फ़र्ज़' लिखी –

जंग रहमत है कि लानत, ये सवाल अब न उठा

न कोई भाई न बेटा न भतीजा न गुरु

एक ही शक्‍ल उभरती है हर आईने में

आत्‍मा मरती नहीं जिस्‍म बदल लेती है

धड़कन इस सीने की जा छुपती है उस सीने में

जिस्‍म लेते हैं जनम जिस्‍म फ़ना होते हैं

और जो इक रोज़ फ़ना होगा वह पैदा होगा

इक कड़ी टूटती है दूसरी बन जाती है

ख़त्‍म ये सिलसिल-ए-ज़ीस्‍त भला क्‍या होगा

ज़िन्‍दगी सिर्फ़ अमल सिर्फ़ अमल सिर्फ़ अमल

और ये बेदर्द अमल सुलह भी है जंग भी है

अम्‍न की मोहनी तस्‍वीर में हैं जितने रंग

उन्‍हीं रंगों में छुपा खून का इक रंग भी है

जंग रहमत है कि लानत, ये सवाल अब न उठा

जंग जब आ ही गयी सर पे तो रहमत होगी

ज़ख़्म खा, ज़ख़्म लगा ज़ख़्म हैं किस गिनती में

फ़र्ज़ ज़ख़्मों को भी चुन लेता है फूलों की तरह

ख़ौफ़ के रूप कई होते हैं अन्‍दाज़ कई

प्‍यार समझा है जिसे खौफ़ है वो प्‍यार नहीं

उंगलियां और गड़ा और पकड़ और पकड़

आज महबूब का बाजू है यह तलवार नहीं

साथियों दोस्‍तों हम आज के अर्जुन ही तो हैं

इसके अलावा कई ऐतिहासिक अवसरों पर उनकी लेखनी से कालजयी रचनाओं ने जन्म लिया। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मसजिद विध्वंस और उसके बाद हुई क्रूरतम हिंसा भी ऐसा ही एक अवसर था, जिसे क़ैफी ने भगवान राम के हवाले से इस तरह कलमबंद किया।

छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनबास मुझे

याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए

रक़्स-ए-दीवानगी आँगन में जो देखा होगा

छह दिसम्बर को श्री राम ने सोचा होगा

इतने दीवाने कहाँ से मिरे घर में आए

जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशाँ

प्यार की काहकशाँ लेती थी अंगड़ाई जहाँ

मोड़ नफ़रत के उसी राहगुज़र में आए

धर्म क्या उन का था, क्या ज़ात थी, ये जानता कौन

घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन

घर जलाने को मिरा लोग जो घर में आए

शाकाहारी थे मेरे दोस्त तुम्हारे ख़ंजर

तुम ने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर

है मिरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आए

पाँव सरजू में अभी राम ने धोए भी न थे

कि नज़र आए वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे

पाँव धोए बिना सरजू के किनारे से उठे

राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे

राजधानी की फ़ज़ा आई नहीं रास मुझे

छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनबास मुझे।

बग़ावत के शायर

'वक़्त ने किया क्या हसीं सितम - तुम रहे ना तुम हम रहे ना हम' (काग़ज़ के फूल), 'जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें - राख तो ढेर में' शोला है ना चिंगारी है (शोला और शबनम-1961), 'मिलो ना तुम तो हम घबराएं – मिलो तो आंख चुराएं हमें क्या हो गया है' और 'ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं' (हीर रांझा-1970), 'आज सोचा तो आंसू भर आए – मुद्दतें हो गयीं मुस्कुराए' और 'तुम जो मिल गए हो ते ये लगता है के जहां मिल गया।' (हँसते ज़ख्म),' है तेरे साथ मेरी वफ़ा मैं नहीं तो क्या' (हिंदुस्तान की कसम), 'झुकी झुकी सी नज'र बेक़रार है के नहीं – दबा दबा सा सही दिल में प्यार है के नहीं।' (अर्थ) कितने गीतों को याद कीजिएगा, किस किस गीत के मुखड़े पर सिर धुनिएगा। 

दिल की गहराइयों से उठने वाली रोमांस की भावनाओं को खूबसूरत शब्दों के साथ असर अंदाज़ ढंग से पेश करने में इस शायर का कोई जवाब नहीं था लेकिन हैरत की बात है कि ये शायर जिसका नाम कैफ़ी आज़मी था वो मूलत: रोमांस का नहीं बग़ावत का शायर था। इस शायर के जन्म को इस साल 100 बरस हो रहे हैं। 14 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ के मिज़वा गांव में कैफ़ी आज़मी का जन्म हुआ। उनका नाम रखा गया अतहर अब्बास रिज़वी। बड़े होने पर उन्होंने शायरी के लिये अपना उप नाम 'कैफ़ी' रख लिया। कैफ़ी बचपन में ही तब से बाग़ी होने लगे थे जब उन्होंने सामंतवादी आत्याचारों को अपने परिवेश में होते देखा। 

कैफ़ी की पहली बग़ावत

उन्हें धार्मिक शिक्षा के लिये परिवार वालों ने लखनऊ के एक मदरसे में भेजा। वहां हो रहे छात्रों के शोषण के ख़िलाफ़ कैफ़ी ने पहली बार बग़ावत की शुरूआत की और मदरसे में हड़ताल करवा दी। इसी हड़ताल के दौरान उनकी मुलाक़ात कई ऐसे शायरों और लेखकों से हुई जो कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए थे और उनका सपना ग़ुलाम भारत को एक आज़ाद समाजवादी भारत के रूप में देखना था।  

कैफ़ीआज़मी को कम्युनिस्ट विचारधार पसंद आई और वे इसके सदस्य बन गए। पार्टी के निर्देश पर वे पहले कानपुर, फिर मुंबई में मज़दूरों के बीच काम करने कैफ़ी ने शायरी तो 11 साल की उम्र से ही करना शुरू कर दी थी लेकिन मज़दूरों और मेहनतकशों के बीच काम करते हुए कैफ़ी की शायरी के तेवर और स्वर उर्दू की परंपरागत शायरी से अलग होने लगे। अपने हालाता को बदलने के लिए ललकारने वाली उनकी नज़्में केवल पढ़े लिखे वर्ग में ही नहीं मज़दूरों के बीच भी लोकप्रिय होने लगीं। 'आज की रात बड़ी तेज़ हवा चलती है – 'आज की रात ना फुटपाथ पे नींद आएगी सब उठें मैं भी उठूं तुम भी उठो तुम भी उठो –कोई खिड़की यहीं फुटपाथ पे खुल जाएगी।' या फिर इनकी ये नज़्म – 'प्यार का जश्न नए ढंग से मनाना होगा – ग़म किसी दिल में सही ग़म को मिटाना होगा।'

on birth centenary of urdu poet kaifi azmi - Satya Hindi

अख़बारों में लिखे व्यंग

कैफ़ी मुंबई में रहने लगे। इत्तेफाक़ से हैदराबाद के एक मुशायरे में शौकत आज़मी ने उन्हें देखा, सुना और दिल दे दिया। नतीजा यह निकला कि दोनो ने शादी करली। लेकिन पार्टी की ओर से हर महीने मिलने वाले 75 रूपए में गुज़र बसर बहुत मुश्किल थी इसलिए कैफ़ी ने अखबार में कालम लिखना शुरू कर दिया। किसी बड़ी ख़बर पर यह बग़ावती शायर व्यंग में टिप्पणी करता था। साथ ही वे इप्टा के लिएये नाटक भी लिखने लगे। कई स्तर पर उनकी कलम चल रही थी लेकिन इलाज के अभाव में जब उनके बेटे की कुछ ही महीनो में मौत हो गयी तो कैफ़ी को पैसों की कमी का शिद्दत से एहसास हुआ। अधिक पैसे मिल जाएं इसी भावना के तहत उन्होंने फिल्मों का रूख़ किया। 

अपने दोस्त, इप्टा के साथी और मशहूर लेखिका इस्मत चुग़ताई के पति शाहिद लतीफ़ की फिल्म 'बुज़दिल' में उन्हें पहली बार गीत लिखने का मौका मिला। इसके बाद धीरे धीरे कैफ़ी के गीत हिंदी सिनेमा की धरोहर बनने लगे।

कैफ़ी के लाज़वाब गाने

आज़ादी के बाद युद्ध पर आधारित फिल्म 'हकीक़त' 1963 में रिलीज़ हुई और तब से आज तक करीब 56 साल बीतने के बाद भी पूरे देश में राष्ट्रीय उत्सवों के मौके पर हर साल यह गीत अनिवार्य रूप से बजता है। 'कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों - अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'। कैफ़ी के लिखे हकीकत के अन्य गीत भी लाज़वाब हैं। 

on birth centenary of urdu poet kaifi azmi - Satya Hindi

 'ग़र्म हवा'

व्यंग का कालम और इप्टा के लिए नाटक लिखने वाले कैफ़ी ने ये साबित कर दिया था कि वे गद्य में भी दखल रखते हैं और जब उन्हें फिल्मों में पटकथा लिखने का मौका मिला तो कैलजयी फिल्में सामने आयीं। 'ग़र्म हवा' विभाजन पर बनी अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है जिसकी पटकथा कैफ़ी ने लिखी। हिंदी सिनेमा के इतिहास में 'हीर रांझा' इकलौती ऐसी फिल्म है जिसके संवाद काव्य में लिखे गए हैं। ऐसा नहीं हैं कि फिल्मी दुनिया में व्यस्त होने के बाद कैफ़ी ने अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं से मुंह मोड़ लिया हो। वे कम्युनिस्ट पार्टी, मेहनतकशों और इप्टा के लिए काम भी करते रहे। 
ऐसा नहीं हैं कि फिल्मी दुनिया में व्यस्त होने के बाद कैफ़ी ने अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं से मुंह मोड़ लिया हो। वे कम्युनिस्ट पार्टी, मेहनतकशों और इप्टा के लिए काम भी करते रहे। साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ उनकी कलम भी चलती रही और सामप्रदायिक विरोधी गतिविधियों में उनकी सक्रिय भागीदारी भी बना रही।

महिलाओं के हक़ के लिए लिखा 

कैफ़ी जो लिखते थे मरते दम तक उसे जीते भी रहे और यहीं पर वे साहित्यकार बिरादरी में अलग नजर आते हैं। 'खेत उसके जो उसे जोते' इस विचार के तहत प्रगतिशील लेखकों ने बहुत कुछ लिखा है लेकिन कैफ़ी ने अपने हिस्से में आई पारिवारिक भूमि  को उन्हें सौंप दिया जो उस ज़मीन पर खेती करते थे। उर्दू के शायरों में यह काम कैफ़ी के सिवा संभवत: केवल वामिक जौनपुरी ने किया। कैफ़ी ने औरतों के हक में खूब लिखा उनकी एक नज़्म 'उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे' आज भी याद की जाती है। इस नज़्म को व्यवहारिक रूप में देखना हो तो कैफ़ी की पत्नी शौकत और बेटी शबाना के जीवन को देखा जा सकता है। 1973 में कैफ़ी पर फ़ालिज़ का असर हुआ और उनके शरीर का एक हिस्सा निष्क्रिय हो गया। लेकिन फिर भी कैफ़ी ने खुद को निष्क्रिय नहीं होने दिया। व्हील चेयर पर सवार होकर वे तमाम गतिविधियो में हिस्सा लेते रहे। हां इतना जरूर हुआ कि कैफ़ी ने फिल्मों में लिखना लगभग बंद कर दिया। अपने समकालीन गीतकारो के मुक़ाबले उन्होंने कम फ़िल्मी गीत लिखे लेकिन उनके लिखे अधिकतर गीत यादगार बन गए। बार-बार यह दोहराने वाले कैफ़ी कि 'मैं गुलाम भारत में पैदा हुआ, आजाद भारत में रह रहा हूं और समाजवादी भारत में मरूंगा' जब 2001 में दुनिया को अलविदा कह गए तब भारत वैसा ही था जैसा आज है। कैफ़ी का समाजवादी भारत का सपना अभी तक अधूरा है

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
इक़बाल रिज़वी

अपनी राय बतायें

श्रद्धांजलि से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें