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कांग्रेस में अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं जितिन प्रसाद

लोकसभा चुनाव में जहाँ 'सर्जिकल स्ट्राइक' एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, वहीं बीजेपी और कांग्रेस भी एक दूसरे पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' करने में जुटी हुई हैंं। बीजेपी ने कांग्रेस पर सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए कभी 10 जनपद के बहुत क़रीबी रहे टॉम वडक्कन को अपने पाले में ले लिया। वहीं कांग्रेस ने बीजेपी के बाग़ी शत्रुघ्न सिन्हा को अपने आंगन में बुलाकर पिछली बार जीती पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया है। इसके जवाब में बीजेपी ने राहुल गांधी के बेहद खास माने जाने वाले जितिन प्रसाद पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की कोशिश की थी। लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों ने बीजेपी की कोशिश को नाकाम कर दिया। जितिन प्रसाद बीजेपी के सर्जिकल स्ट्राइक से तो बच गए, लेकिन कांग्रेस में अपने भविष्य को लेकर वह बेहद चिंतित हैं।
जितिन प्रसाद से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की पक्की बातचीत हो चुकी थी। शुक्रवार शाम को 4 बजे बीजेपी मुख्यालय पर होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल होने का ऐलान करने वाले थे। अगर ऐसा हो जाता तो कांग्रेस के लिए बड़ी फ़जीहत की बात होती।

ख़बर लीक होने से बिगड़ा खेल

जितिन प्रसाद को कांग्रेस अपनी पहली लिस्ट में धौरहरा सीट से उम्मीदवार घोषित कर चुकी थी। टीवी चैनलों पर ख़बर लीक होने के बाद कांग्रेसी रणनीतिकार सक्रिय हो गए और जितिन को जाने से रोक लिया। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर, प्रदेश के दोनों प्रभारी महासचिवों ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रियंका गाँधी के अलावा राहुल गाँधी ने भी जितिन प्रसाद से बात की। कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल ने जितिन प्रसाद को पार्टी नहीं छोड़ने के लिए राजी किया। अहमद पटेल के बात करने के बाद जितिन के के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। अहमद पटेल जितिन प्रसाद के पिता जीतेंद्र प्रसाद के बेहद करीबी रहे हैं। जितिन भी अहमद पटेल को पूरा सम्मान देते हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के मान मनौव्वल के बाद जितिन प्रसाद अचानक शाम को मीडिया के सामने प्रकट हुए और बीजेपी में शामिल होने की संभावनाओं को गोलमाल तरीके से ख़ारिज किया।

भविष्य को लेकर चिंतित 

जितिन प्रसाद भले ही फ़िलहाल बीजेपी में शामिल होने का विकल्प छोड़कर कांग्रेस में बने रहने को राजी हो गए हैं, लेकिन अपने भविष्य को लेकर वह बेहद चिंतित हैं। कांग्रेस में उन्हें अपना भविष्य नज़र नहीं आ रहा। सूत्रों के मुताबिक़, कांग्रेस आलाकमान की तरफ से जितिन प्रसाद को भरोसा दिया गया है कि लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें प्रदेश की कमान सौंपी जाएगी। साल 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले भी यह चर्चा आम थी कि कांग्रेस ब्राह्मण चेहरे के रूप में जितिन प्रसाद को प्रदेश की कमान सौंप सकती है। लेकिन तब कांग्रेस ने ब्राह्मण चेहरे के रूप में शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था और राज बब्बर को बतौर अध्यक्ष प्रदेश की कमान सौंपी थी। 

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लोकसभा चुनाव हारने का डर

दरअसल धौरहरा सीट से लोकसभा चुनाव हारने का डर जितिन प्रसाद को बीजेपी की तरफ धकेल रहा था। हालांकि जितिन प्रसाद ने 2004 में शाहजहांपुर से लोकसभा चुनाव  जीता था। साल 2008 में हुए परिसीमन में शाहजहाँपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई थी। तब 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जितिन को बगल की धौरहरा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था। जितिन ने धमाकेदार जीत दर्ज की थी और पूरे 5 साल केंद्र की सरकार में मंत्री भी रहे। लेकिन 2014 में वह बुरी तरह हार गए थे। पिछले चुनाव में यहां बीजेपी की रेखा वर्मा 3,60,000 से ज्यादा वोट पाकर जीती थींं, जितिन प्रसाद मात्र 1,71,000 वोटों के साथ चौथे नंबर पर रह गए थे। बीएसपी और समाजवादी पार्टी 2 लाख 34,000 वोट पाकर दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे थे। उसके बाद 2017 में जितिन प्रसाद ने शाहजहाँपुर की तिलहर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा। यहां वह 5,000 वोटों से बीएसपी के रोशन लाल वर्मा से चुनाव हार गए थे।

2014 में लोकसभा चुनाव और 2017 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद जितिन प्रसाद धौरहरा सीट से ही लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। उनकी इन्हीं तैयारियों को देखते हुए कांग्रेस ने पहली लिस्ट में ही उनका नाम भी घोषित किया था। लेकिन इस सीट पर इस बार वह ख़तरे में हैंं। इसकी वजह है बीएसपी के उम्मीदवार अरशद इलियास आज़मी का अचानक मैदान में कूदना। अरशद आज़मी शाहाबाद लोकसभा सीट से दो बार सांसद रहे इलियास आज़मी के बेटे हैं। 2009 से पहले धौरहरा सीट का बड़ा इल़ाका शाहाबाद लोकसभा सीट में आता था। इलियास आज़मी यहां से 1996 और 2004 में बीएसपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते थे। इस बार उन्होंने अपने बेटे को टिकट दिलवा दिया है। आज़मी के चुनाव मैदान में आने से यहां चुनाव बीजेपी और बीएसपी के बीच सीधी टक्कर वाला बन गया है। जितिन प्रसाद को इस बात का डर है कि बीजेपी और बीएसपी की सीधी लड़ाई में कहीं वह पिछले चुनाव की तरह चौथे या पांचवें नंबर पर न सिमट जाएँ। अगर ऐसा हुआ तो उनका राजनीति कैरियर यहीं ख़त्म हो जाएगा।

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सीट बदलना चाहते थे जितिन

जितिन प्रसाद के करीबी सूत्रों के मुताबिक़, धौरहरा सीट पर बीएसपी के उम्मीदवार के रूप में अरशद इलियास आजमी के आने के बाद सीट बदलना चाहते थे। 

जितिन की पहली पसंद लखनऊ थी, चर्चा थी कि शायद गृहमंत्री राजनाथ सिंह इस बार लखनऊ के बजाय किसी और से जगह से लड़ें, इस स्थिति में जितिन प्रसाद लखनऊ से टिकट चाह रहे थे। लेकिन कांग्रेस उनकी सीट बदलने को राजी नहीं थी। अब लखनऊ सीट से राजनाथ सिंह की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद जितिन प्रसाद लखनऊ नहीं जाना चाहते।

सभी क़रीबी बीजेपी में

जितिन प्रसाद की एक मुश्किल यह भी है कि उनके तमाम क़रीबी नेता पहले ही बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। जिनके कंधों पर जितिन प्रसाद की जीत का दारोमदार रहता है, वे सभी सेनापति पहले ही बीजेपी की शरण में जा चुके हैं। उन सबकी तरफ से भी जितिन पर बीजेपी में शामिल होने का दबाव रहा है। कभी शाहजहाँपुर में कांग्रेस के ज़िलाध्यक्ष रहे मानवेंद्र सिंह 2017 में बीजेपी चले गए थे और वह विधायक हैं। चेतराम सिंह भी बीजेपी से विधायक विधायक हो गए हैं। चेतराम के पिता 3 बार कांग्रेस से विधायक रहे हैं। प्रिंस के नाम से मशहूर एक और नेता बीजेपी का बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। उनके पिता भी तीन बार कांग्रेस से विधायक रहे हैं। कांग्रेस से एमएलसी रहे जितेन के चचेरे भाई जयेश प्रसाद सपत्नीक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। उनकी पत्नी नीलिमा प्रसाद बीजेपी के टिकट पर नगर पालिका का चुनाव जीत चुकी हैं। अपने तमाम क़रीबी नेताओं के बीजेपी में जाने की वजह से जितिन प्रसाद अकेले और कमज़ोर पड़ गए हैं। उन पर पारिवारिक और मित्रों का बीजेपी में शामिल होने का जबरदस्त दबाव है। यह दबाव वह कितने दिनों तक झेल पाएंगे यह कहना बड़ा मुश्किल है।

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ग़लत है अनदेखी का आरोप

जितिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने की चर्चा जब चली थी तो यह भी कहा गया कि वह पार्टी में अपनी अनदेखी से नाखुश है। लेकिन पार्टी में उनकी अनदेखी के आरोप बेबुनियाद हैंं। ग़ौरतलब है कि जितिन प्रसाद के पिता जीतेंद्र प्रसाद ने 2000 में सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था और हार गए थे। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी को खुली चुनौती दी थी। इसके कुछ समय बाद ही उनका देहांत हो गया था। जीतेंद्र प्रसाद की इस बग़ावत को भुलाकर सोनिया गांधी ने जितिन के साथ कोई भेदभाव नहीं किया। 2014 में ही उन्हें शाहजहाँपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा। पहली बार सांसद बने जितिन प्रसाद को 2008 में राज्य मंत्री बनाया गया। साल 2009 में दोबारा जीतने पर उन्हें फिर मंत्री बनाया गया। मनमोहन सिंह की कैबिनेट में वो सड़क और परिवहन, पेट्रोलियम और मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे। इस बार भी कांग्रेस की पहली लिस्ट में जितिन प्रसाद का नाम सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नाम के साथ ही आया। इन तथ्यों के आधार पर यह पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है कि जितिन प्रसाद या उनके करीबियों का आरोप सरासर ग़लत है कि उनकी पार्टी में उनकी अनदेखी हुई है।

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यूसुफ़ अंसारी

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