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अब असम में बीजेपी को क्यों दिख रहा है ‘लव जिहाद’ का भूत?

असम को सांप्रदायिक सौहार्द्र वाला राज्य माना जाता है। राज्य में भूमि और जातीय पहचान को लेकर समय-समय पर भले ही हिंसक संघर्ष होते रहे हैं, लेकिन सांप्रदायिक आधार पर संघर्ष का कोई इतिहास नहीं रहा है। असम में संघ परिवार ने देर से उग्र हिन्दुत्व का प्रचार-प्रसार शुरू किया और 'बांग्लादेशी मुसलमानों' के नाम पर सभी मुसलमानों के ख़िलाफ़ स्थानीय हिंदुओं की भावना को भड़काने का खेल शुरू हो गया।
दिनकर कुमार

बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे विकास के मुद्दों पर आम जनता से वोट नहीं माँग सकती। चुनाव जीतने के लिए उसके पास एक ही ब्रह्मास्त्र है- सांप्रदायिक ध्रुवीकरण। असम में इसी तरह की राजनीति करते हुए 2016 में बीजेपी ने सत्ता हासिल की थी। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बिसात बिछाते हुए बीजेपी ने एक बार फिर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू कर दिया है।

असम के शिक्षा, स्वास्थ्य और वित्त मंत्री हिमन्त विश्व शर्मा ने कहा है कि बीजेपी 2021 में विधानसभा चुनाव से पहले ‘लव जिहाद’ मामलों के ख़िलाफ़ एक अभियान शुरू करेगी। डिब्रूगढ़ में पार्टी की महिला मोर्चा की एक बैठक में शर्मा ने दावा किया कि सोशल मीडिया ‘नया फंदा’ है और असमिया लड़कियाँ ‘लव जिहाद’ का शिकार हो रही हैं।

शर्मा ने कहा, ‘सोशल मीडिया नया ख़तरा है, क्योंकि यह लव जिहाद को बढ़ावा देने में मदद कर रहा है। सोशल मीडिया के माध्यम से असमिया लड़कियाँ लव जिहाद का शिकार हो रही हैं। यह हमारे समाज पर एक सांस्कृतिक आक्रमण है और बाद में इन लड़कियों को तलाक़ का सामना करना पड़ सकता है।’ 

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मंत्री ने कहा, ‘जब बीजेपी वापस सत्ता में आएगी तो हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अगर किसी असमिया लड़की को परेशान किया जाता है या लव जिहाद का शिकार बनाया जाता है और सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाता है, तो हम उन्हें जेल में डाल देंगे।’

शर्मा ने यह भी आरोप लगाया कि असम में ‘लव जिहाद के पीछे अजमल की संस्कृति के लोग (एआईयूडीएफ़ लोकसभा सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल का संदर्भ) काम कर रहे हैं।’ अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ़ (ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) को लोअर असम में बंगाली मुसलमानों का व्यापक समर्थन है, जिन्हें अक्सर बांग्लादेश से आए अवैध अप्रवासी के रूप में देखा जाता है।

शर्मा ने कहा, ‘500 या 600 साल पहले राष्ट्र औरंगज़ेब और बाबर का सामना कर रहा था। अब हमारे सामने उसी तरह की चुनौती है। इस आधुनिक युग में हमारे पास अजमल जैसी समस्या है। हमारे (असमिया) समाज को अजमल की संस्कृति से ख़तरा है। लोअर और मिडिल असम में असमिया सत्र (वैष्णव आराधना गृह) की संस्कृति नष्ट हो गई है।’

अजमल के लोगों ने अपना अतिक्रमण अभियान शुरू किया और ऊपरी असम में प्रवेश करने की भी कोशिश की। इस पृष्ठभूमि के ख़िलाफ़ हमने (मुख्यमंत्री सर्बानंद) सोनोवाल के नेतृत्व में सत्ता संभाली।


हिमन्त विश्व शर्मा, असम में मंत्री और बीजेपी नेता

शर्मा ने यहाँ तक ​​आरोप लगाया कि काजीरंगा में एक सींग वाले गैंडों की हत्या के पीछे बंगाली मुसलमानों का हाथ रहा है। उन्होंने दावा किया कि पिछले कुछ वर्षों में ऐसे आरोपों में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया।

यह दावा करते हुए कि राज्य की 65 प्रतिशत आबादी, ‘जो भारतीय मूल की है’, 35 प्रतिशत वाली ‘अजमल की संस्कृति को हराएगी’, शर्मा ने यह भी कहा कि ‘सराईघाट की लड़ाई ख़त्म नहीं हुई है’। सराईघाट की लड़ाई 1671 में मुगल और आहोम सेना के बीच लड़ी गई थी, जिसमें आहोम सेना की जीत हुई थी।

2016 में बीजेपी का नारा

बीजेपी ने 2016 के चुनाव में भी सराईघाट युद्ध का नारा बुलंद कर मुसलमानों के ख़िलाफ़ ध्रुवीकरण का वातावरण बनाया था।

शर्मा ने कहा, ‘सराईघाट की लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है। यह केवल अजमल की संस्कृति के हर एक व्यक्ति को राजनीतिक रूप से उखाड़ फेंकने के बाद ख़त्म होगी।’

इससे पहले एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा, ‘मुगलों का आक्रमण अभी भी जारी है। यह बहुत स्पष्ट है। असम की धरती के बेटे अभी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। असम केवल तभी सुरक्षित रहेगा जब हम सभी आने वाले दिनों में विदेशियों के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ेंगे।’

जब से कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ ने विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने की घोषणा की है, बीजेपी के सबसे बड़े कद्दावर नेता विश्व शर्मा बदरुद्दीन अजमल पर खुलकर हमला कर रहे हैं।

असम को सांप्रदायिक सौहार्द्र वाला राज्य माना जाता है और इस राज्य में सर्व धर्म समभाव की लंबी परंपरा रही है। इस राज्य में भूमि और जातीय पहचान को लेकर समय-समय पर भले ही हिंसक संघर्ष होते रहे हैं, लेकिन सांप्रदायिक आधार पर संघर्ष का कोई इतिहास नहीं रहा है। अस्सी के दशक में हुए नेल्ली नरसंहार के पीछे भी दक्षिणपंथियों का हाथ था, जब भारी संख्या में अल्पसंख्यकों की हत्या की गई थी। जिस समय बाबरी मसजिद को ध्वस्त किया गया था उस समय भी असम में कोई हिंसक तनाव नहीं देखा गया था। असम में संघ परिवार ने देर से उग्र हिन्दुत्व का प्रचार-प्रसार शुरू किया और 'बांग्लादेशी मुसलमानों' के नाम पर सभी मुसलमानों के ख़िलाफ़ स्थानीय हिंदुओं की भावना को भड़काने का खेल शुरू हो गया।

2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद असम में अचानक सांप्रदायिक झड़पों की घटनाएँ शुरू हो गईं। 2015 में राज्य में इस तरह की 70 घटनाएँ हुईं। इसी उग्र हिन्दुत्व की राजनीति को ईंधन बनाकर असम में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। राज्य में गोमांस को मुद्दा बनाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू हो गया। उसके बाद एनआरसी की प्रक्रिया के ज़रिये मुसलमानों का दमन किया गया।
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