राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे की बात तय बतायी जा रही है। सीटों की संख्या पर आरजेडी ने अपने कोटे की सीटों में नरमी दिखायी तो महागठबंधन के घटक दल भी साथ चुनाव लड़ने की बात पर राजी हो गये हैं। समझा जाता है कि यह रजामंदी फाइनल है।
आरजेडी सूत्रों के अनुसार, पहले राजद अपने लिए 160 सीटें चाहता था, लेकिन अब 140-142 सीट पर तैयार है। इस नरमी से कांग्रेस को अब 65 सीटों के आसपास सीटें मिलने की संभावना है। इसी तरह भाकपा-माले के हिस्से में कमोबेश 20 सीट जाने की बात है। दो अन्य कम्युनिस्ट पार्टियों- सीपीआई और सीपीआईएम के लिए 10 सीटों की व्यवस्था की बात बतायी गयी है।
राजद की नरमी से राह आसान
उत्तर बिहार के लिए महत्वपूर्ण माने जा रही मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को महागठबंधन के फ़ॉर्मूले के अनसार 8 के आसपास सीटें मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा और एनसीपी के लिए कुछ सीटें निकालने की कोशिश भी अंतिम चरण में है।2015 के महागठबंधन से नीतीश कुमार के निकल जाने के बाद इस बार जनता दल यूनाइटेड के हिस्से की 101 सीटें बंटवारे के लिए बची थीं। पिछली बार आरजेडी और जदयू 101-101 सीट पर और कांग्रेस ने 41 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे।
महागठबंधन में चुनाव की घोषणा से कुछ पहले तक सीट बंटवारे पर काफी जिच चल रही थी। इसका कारणा उस समय महागठबंधन के दो अन्य घटक दल भी थे- जीतन राम मांझी का हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा सेक्युलर और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी।
जीतन राम माझी
’हम‘ और रालोसपा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में शामिल हुए लेकिन दोनों दल 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए इससे अलग हो गये। मांझी ने नीतीश कुमार के साथ समझौते की बात कर एनडीए में शामिल होने का ऐलान कर दिया।
उपेन्द्र कुशवाहा के एनडीए में जाने की काफी चर्चा थी। ऐसा बताया गया था कि उनकी बात बीजेपी के साथ चल रही थी, लेकिन समझा जाता है कि नीतीश कुमार की असहमति के कारण उपेन्द्र कुशवाहा की एनडीए में दोबारा एंट्री नहीं हो सकी। अब उपेन्द्र कुशवाहा ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन बनाने का एलान किया है और उनके बीच सीट बंटवारे का समझौता हो गया बताया जा रहा है। इस समझौते के तहत 153 सीट पर रालोसपा के और शेष 90 सीटों पर बसपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे।
महागठबंधन की चुनौतियाँ
महागठबंधन में सीटों की संख्या के साथ-साथ नाम पर भी सहमति की बात अंतिम दौर में है। भाकपा माले को सबसे अधिक सीटें पटना और भोजपुर में मिली हैं। इन दोनों जगहों को माले नेता अपनी पार्टी का संघर्ष क्षेत्र मानते हैं। कांग्रेस को 2015 की तुलना में जो 20 अतिरिक्त सीटें मिलने की बात है, उनके नामों पर भी आरजेडी और अन्य दल लगभग सहमत बताये जा रहे हैं।
2015 के महागठबंधन के सीट बंटवारे में आरजेडी ने 101 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़कर 80 सीटों पर कामयाबी हासिल की थी। कांग्रेस ने 41 सीटों पर उम्मीदवार दिये और उसके 27 सदस्य जीते। तब जदयू 101 सीटों से 71 सीट जीता था।
इस बार इन 71 सीटों पर महागठबंधन को कितनी जीत मिलती है, यह अगली सरकार के बनने-बिगड़ने पर काफी असर डाल सकता है। आरजेडी के लिए भी 2020 के समझौते के अुनसार मिलने वाली लगभग 140 सीटों में से कम से कम 80 की कामयाबी दोहराना चुनौती होगी।
आरजेडी को कम्युनिस्टों से फ़ायदा?
आरजेडी को 2015 में मिले जदयू के हिस्से के वोटों का नुकसान होगा, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टियों और मुकेश सहनी के वोट का कुछ न कुछ लाभ मिलने की उम्मीद है। इसके साथ ही कांग्रेस ने पिछली बार जो सीटें जीती थीं, उसके अलावा उसे लगभग बीस सीटों में जीत के लिए तैयारी करनी होगी। उसकी जीत पर भी महागठबंधन की सरकारी बनाने की कोशिश निर्भर करेगी।आरजेडी के लिए 2010 का चुनाव सबसे खराब माना जाता है जब उसे महज 22 सीटें मिली थीं और बीजेपी-जदयू ने 200 से अधिक सीट लाकर एनडीए की धाक जमा दी थी। वैसे, अब तक सीट बंटवारे के मामले में महागठबंधन फिलहाल एनडीए जैसी जिच से आगे निकला हुआ नजर आता है।
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