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बिहार: बीजेपी के ‘असंतुष्टों’ को टिकट देकर नीतीश को हराने की तैयारी में चिराग पासवान

राजनीति के गलियारों में चर्चा है कि एलजेपी जितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, उसके उम्मीदवारों की अच्छी संख्या बीजेपी में रह चुके नेताओं से जुड़ी होगी। एलजेपी कह चुकी है कि वह बीजेपी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार खड़े नहीं करेगी लेकिन हर उस सीट पर उसका प्रत्याशी होगा जहां जेडीयू चुनाव लड़ रही होगी।
समी अहमद

बीजेपी और जेडीयू के बीच सीट बंटवारे वाले दिन एलजेपी ने बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया। सिंह ने 2015 में बीजेपी के टिकट पर दिनारा सीट से चुनाव लड़ा था और उस समय वह महागठबंधन में शामिल जेडीयू के उम्मीदवार जय कुमार सिंह से महज 2691 वोटों से हार गये थे।

इस बार जैसे ही उन्हें यह बात मालूम हुई कि बीजेपी उन्हें टिकट नहीं देगी, सिंह ने चिराग पासवान के हाथों दिल्ली में एलजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। हाथों-हाथ चिराग पासवान ने उन्हें एलजेपी का सिंबल भी दे दिया। सवाल यह है कि क्या यह रातों-रात संभव हो सकता है? इस सवाल का जवाब इस बात से मिलता है कि वे अकेले बीजेपी नेता नहीं हैं जो एलजेपी में शामिल हुए या हो रहे हैं।

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उनकी ही तरह बीजेपी महिला मोर्चा की प्रदेश प्रवक्ता श्वेता सिंह और वरिष्ठ बीजेपी नेता रामनरेश चौरसिया टिकट नहीं मिलने की ख़बर पर पार्टी से इस्तीफा देकर एलजेपी में शामिल हो गये। रांची के वरिष्ठ पत्रकार अशोक वर्मा कहते हैं कि लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में अपनी सेवा देने वाले राजेन्द्र सिंह झारखंड में बीजेपी के संगठन मंत्री थे। यह पद आरएसएस के मंझे हुए लोगों को ही दिया जाता है।

वर्मा की राय है कि राजेन्द्र सिंह एलजेपी के टिकट पर दिनारा से चुनाव लड़ेंगे तो आरएसएस का कुनबा उनके साथ होगा। भले ही बीजेपी गठबंधन धर्म का पालन करते हुए दिखने के लिए जेडीयू के समर्थन में कुछ सभाएं कर दे या बयान दे दे। वे कहते हैं कि इस बार राजेन्द्र सिंह के जीतने की संभावना इसलिए है क्योंकि 2015 में जेडीयू के उम्मीदवार को मिले आरजेडी के वोट इस बार उसे नहीं मिलेंगे। यह सवाल जरूर है कि बीजेपी के वोट जेडीयू के उम्मीदवार को मिलेंगे या आरएसएस के राजेन्द्र सिंह को।

राजनीति के गलियारों में चर्चा है कि एलजेपी जितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, उसके उम्मीदवारों की अच्छी संख्या बीजेपी में रह चुके नेताओं से जुड़ी होगी। एलजेपी कह चुकी है कि वह बीजेपी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार खड़े नहीं करेगी लेकिन हर उस सीट पर उसका प्रत्याशी होगा जहां जेडीयू चुनाव लड़ रही होगी।

यह लगभग वही रणनीति है, जैसी 2005 फरवरी में हुए चुनाव में एलजेपी ने आरजेडी के ख़िलाफ़ उम्मीदवार देकर अपनायी थी। तब एलजेपी 29 सीट लायी थी और इसके तत्कालीन अध्यक्ष राम विलास पासवान कहते थे कि चाभी तो उनके पास है। उन्होंने किसी भी गठबंधन को समर्थन नहीं दिया और बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था।

एलजेपी की रणनीति

इस संदर्भ में यह जानना ज़रूरी है कि 2015 में बीजेपी ने बिहार में 157 उम्मीदवार उतारे थे। इस बार उसे 121 सीटें मिली हैं और इनमें से कुछ सीटें मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी को जानी हैं। इस तरह बीजेपी को अपने कम के कम 42 उम्मीदवारों को बेटिकट करना होगा। बेटिकट हुए ये उम्मीदवार एलजेपी का दामन थामने की कोशिश कर सकते हैं या एलजेपी उन्हें ऑफ़र दे सकती है। ऐसे कितने बीजेपी नेता वास्तव में एलजेपी के उम्मीदवार बनते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।

दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि एलजेपी लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपना हक़ जता रही है। वह उनकी और उनके कार्यक्रमों की प्रशंसा करती है लेकिन नीतीश कुमार की तीखी आलोचना करती है।

ऐसी चर्चा है कि नीतीश कुमार इसे लेकर अपनी नाराजगी बीजेपी नेतृत्व से व्यक्त कर चुके थे। संभवतः इसी नारागजी को दूर करने के लिए मंगलवार को आयोजित सीट बंटवारे की प्रेस कॉन्फ्रेन्स में बीजेपी नेता और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को दो बातें स्पष्ट करनी पड़ीं। 

बिहार विधानसभा चुनाव पर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और चुनाव विश्लेषक संजय कुमार की बातचीत। 

पहली बात यह है कि बिहार में एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगा और जीत मिलने पर वे ही मुख्यमंत्री होंगे। दूसरी बात यह कि बीजेपी की कोशिश होगी कि एनडीए के चार दलों के अलावा कोई अन्य दल अपने चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री की तसवीर को इस्तेमाल नहीं करे। एलजेपी के प्रवक्ता संजय सिंह ने इसका भी जवाब दिया और दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारे लिए विकास का माॅडल हैं। 

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नीतीश की कुर्सी को ख़तरा

राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं एलजेपी में बीजेपी के लोगों को टिकट देने का असर चुनाव से पहले तो होगा ही, इसका असली असर रिजल्ट आने के बाद देखा जाएगा जब नीतिगत निर्णय लेने की बारी आएगी। बीजेपी से एलजेपी में गये उन सदस्यों पर अधिक नजर रहेगी जो आरएसएस से जुड़े होंगे और जीत हासिल करेंगे। अभी बीजेपी की ओर से ‘नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे’ का जो दावा किया जा रहा है, उसकी असली परीक्षा चुनाव परिणाम के बाद ही होगी।

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