जिस बात की अटकलें लग रही थीं, वही हुआ और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी ने गुरूवार को महागठबंधन से नाता तोड़ लिया। इस बात की जोरदार संभावना है कि मांझी जल्दी ही एनडीए में शामिल हो सकते हैं। मांझी के जाने से महागठबंधन को झटका ज़रूर लगेगा क्योंकि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते मांझी जाना-पहचाना चेहरा हैं और कुछ सीटों पर अच्छा असर रखते हैं।
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) और जब तक हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) इनके साथ थी, ये सभी दल सीटों के बंटवारे से लेकर मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर सर्वसम्मति बनाने को लेकर पिछले दो महीने से को-ऑर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग कर रहे थे। लेकिन यह मामला लटका हुआ था। मांझी पहले भी कह चुके थे कि जल्द कमेटी बने और सीटों के बंटवारे को लेकर बात हो लेकिन आरजेडी इसके लिए बहुत ज़्यादा तैयार नहीं थी।
सीटों को लेकर मची थी रार
हम के साथ ही आरएलएसपी और वीआईपी ने भी ज़्यादा सीटों की मांग को लेकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) पर दबाव बनाया हुआ था। लेकिन बताया जाता है कि आरजेडी किसी भी क़ीमत पर आरएलएसपी को 20 और हम तथा वीआईपी को लिए 10-10 सीटों से ज़्यादा देने के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन हम के चले जाने के बाद अब उसकी बचीं सीटें और किसी और सहयोगी को खोने के डर से आरजेडी वीआईपी और आरएलएसपी को ज़्यादा सीटें दे सकती है।
आरजेडी उन सामाजिक समूहों को पार्टी की विचारधारा से जोड़ने की कोशिश कर रही है, जिनकी नुमाइंदगी उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी करते हैं।
आरजेडी ख़ुद 243 सीटों में से कम से कम 163 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है और कांग्रेस और वाम दलों को ज़्यादा सीटें देने की उसकी मंशा नहीं दिखाई देती।
80 सीट चाहती है कांग्रेस
उधर, विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने यह कह कर सबको सकते में डाल दिया है कि
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कम से कम 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और इससे कम सीटों पर चुनाव मैदान में नहीं जाएगी। उन्होंने अपनी मांग से पार्टी आलाकमान को भी अवगत करा दिया है। हाल में पार्टी के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल के साथ हुई बैठक में भी यह मुद्दा उठाया गया था। अपनी मांग को जायज बताते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है।
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान
जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) भी महागठबंधन की सहयोगी थी, लेकिन इस बार जेडीयू महागठबंधन का हिस्सा नहीं है। कांग्रेस का कहना है कि ऐसे में उसकी हिस्सेदारी वाली सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी बनती है। शक्ति सिंह गोहिल ने भी कहा है कि कांग्रेस सम्मानजनक सीटों की मांग करेगी और उम्मीद है कि आरजेडी या दूसरे सहयोगियों को इससे कोई एतराज नहीं होगा।पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी 81 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं।
तेजस्वी ही होंगे चेहरा: आरजेडी
महागठबंधन में बार-बार यह सवाल उठता रहता है कि अगले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के तौर पर किसे प्रस्तावित किया जाएगा? आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, ‘यह सवाल ही ठीक नहीं है। विधानसभा में विपक्ष का नेता ही मुख्यमंत्री का विकल्प होता है।’ जाहिर है, इसके बाद तेजस्वी यादव के अलावा कोई और नेता मैदान में नहीं दिखता। तिवारी कहते हैं कि तेजस्वी यादव के अलावा किसी दूसरे नाम की चर्चा भी उन्हें मंजूर नहीं है।
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