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सर्वे: एनडीए की सरकार आने के संकेत लेकिन नीतीश से लोग नाराज़

बिहार में चल रहे चुनावी घमासान को लेकर आया लोकनीति-सीएसडीएस का सर्वे कहता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी जंग में कमजोर पड़ रहे हैं। हालांकि सर्वे के नतीजे एक बार फिर एनडीए की सरकार आने की बात कहते हैं। 

लोकनीति-सीएसडीएस की ओर से यह सर्वे 10 से 17 अक्टूबर के बीच किया गया। इस सर्वे की अहम बातें क्या हैं, आइए जानते हैं। 

सर्वे के मुताबिक़, बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार बन सकती है। एनडीए को 133-143 सीट मिलने की बात कही गई है जबकि महागठबंधन को 88-98। एलजेपी को 2-6 सीटें मिल सकती हैं। 

Lokniti CSDS survey in Bihar election 2020 - Satya Hindi
243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटों की ज़रूरत है। सर्वे कहता है कि बीजेपी का स्ट्राइक रेट जेडीयू से बेहतर रह सकता है। इसके अलावा कई सीटों पर एलजेपी के उम्मीदवार जेडीयू के उम्मीदवारों को नुक़सान पहुंचा रहे हैं, यह बात भी सर्वे में सामने आई है। 
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नुक़सान में एनडीए

सर्वे कहता है कि एनडीए को महागठबंधन से 6 फ़ीसदी वोट ज़्यादा मिल सकते हैं। एनडीए को 38 जबकि महागठबंधन को 32 फ़ीसदी वोट मिलने की बात कही गई है। इस आंकड़े की अगर पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़े से तुलना की जाए तो एनडीए को लगभग 5 फ़ीसदी वोटों का नुक़सान हो रहा है जबकि महागठबंधन को 3.5 फ़ीसदी वोटों का फ़ायदा होता दिख रहा है। 

एनडीए में बीजेपी, जेडीयू के अलावा हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी भी शामिल है। जबकि महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस के अलावा वाम दल शामिल हैं।

जीडीएसएफ़ से मिलेगी मदद

सर्वे के मुताबिक़, ग्रेंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (जीडीएसएफ़) से एनडीए को मदद मिल रही है। इस गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा हैं। गठबंधन में कुशवाहा की आरएलएसपी, मायावती की बीएसपी, असदउद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और कुछ अन्य दल शामिल हैं। 

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सर्वे कहता है कि जीडीएसएफ़ को 7 फ़ीसदी वोट मिल सकते हैं। इसके पीछे कारण एंटी इन्कम्बेन्सी फ़ैक्टर बताया गया है। इसके अलावा एनडीए को चिराग पासवान की एलजेपी से भी मदद मिलने की बात कही गई है। एलजेपी को 6 फ़ीसदी वोट मिलने की उम्मीद जताई गई है। 

सर्वे के मुताबिक़, 24 फ़ीसदी लोग ऐसे हैं जिन्होंने अभी तय नहीं किया है कि वे किसे वोट देंगे या वे इसे जाहिर नहीं करना चाहते। उनका कहना है कि वे वोटिंग वाले दिन अपना मन बदल सकते हैं। 

सर्वे में नीतीश कुमार के लिए चिंताजनक बात यह है कि उनके काम को लेकर कितने फ़ीसदी लोग संतुष्ट हैं, यह आंकड़ा पिछले चुनाव की तुलना में गिरा है।

2015 के विधानसभा चुनाव में 80 फ़ीसदी लोगों ने कहा था कि वे नीतीश के काम से संतुष्ट हैं जबकि 2010 में यह आंकड़ा 77 फ़ीसदी था। लेकिन सर्वे कहता है कि इस बार केवल 52 फ़ीसदी लोगों ने कहा है कि वे नीतीश के काम से संतुष्ट हैं। 

सर्वे के मुताबिक़, 2015 में 18 फ़ीसदी लोग नीतीश के काम से नाख़ुश थे जबकि इस बार यह आंकड़ा 44 हो गया है। 38 फ़ीसदी लोग चाहते हैं कि नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बनें जबकि 43 फ़ीसदी लोग नहीं चाहते कि वह दुबारा सत्ता में लौटें। 

मोदी से ज़्यादा संतुष्ट हैं लोग!

बिहार के लोगों की जेडीयू के काम और केंद्र की मोदी सरकार के काम को लेकर भी राय जुदा है। लोकनीति-सीएसडीएस के अनुसार, 52 फ़ीसदी लोग नीतीश के काम से संतुष्ट हैं जबकि 61 फ़ीसदी लोग मोदी सरकार के काम से। 

तेजस्वी थोड़ा सा पीछे

लोकनीति-सीएसडीएस के मुताबिक़, आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव लोकप्रियता के मामले में नीतीश से बस थोड़ा सा ही पीछे हैं। नीतीश को 31 जबकि तेजस्वी को 27 और चिराग को 5 फ़ीसदी लोग राज्य का मुख्यमंत्री बनता देखना चाहते हैं। 

बिहार के लोगों के लिए कौन सा मुद्दा सबसे अहम है, ये पूछने पर 29 फ़ीसदी लोगों ने विकास, 20 फ़ीसदी लोगों ने बेरोज़गारी, 11 फ़ीसदी लोगों ने महंगाई, 6 फ़ीसदी लोगों ने भुखमरी/ग़रीबी, 7 फ़ीसदी लोगों ने शिक्षा और 25 फ़ीसदी ने अन्य मुद्दों की बात कही। 

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पिछले महीने आए ओपनियन पोल में भी बिहार में एक बार फिर नीतीश के नेतृत्व में एनडीए की वापसी होने की बात कही गई थी। एबीपी न्यूज-सी वोटर ने यह ओपिनियन पोल किया था और इसमें कहा गया था कि कुल 243 सीटों में से एनडीए को 141-161 सीटें, महागठबंधन को 64-84 सीटें और अन्य को 13-23 सीटें मिल सकती हैं। 

पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भी एनडीए को जबरदस्त जीत मिली थी और राज्य की 40 सीटों में से 39 सीटें उसकी झोली में गई थीं। 

बदलेगा चुनावी माहौल?

लेकिन लोकनीति-सीएसडीएस का सर्वे नीतीश कुमार के लिए चिंताजनक तसवीर पेश करता है। क्योंकि उनके काम से असंतुष्ट लोगों का फ़ीसद बढ़ा है और संतुष्ट लोगों का फ़ीसद बहुत ज़्यादा घटा है। इसके अलावा एलजेपी भी उन्हें नुक़सान पहुंचा रही है। 7 नवंबर यानी मतदान की अंतिम तारीख़ तक अभी चुनावी माहौल और बदलेगा, ऐसी उम्मीद है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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