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नीतीश कुमार।

क्या ललन सिंह आरसीपी सिंह का काम लगा देंगे?

ललन सिंह का जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना क़तई अप्रत्याशित नहीं था। हालाँकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस फ़ैसले ने बहुत सारे लोगों को चौंकाया। सियासी पंडित के सारे कयास धरे रह गए थे। मीडिया का आकलन भी फ़ेल हो गया और जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने आम राय से ललन सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया। 

सात महीने पहले भी नीतीश कुमार ने चौंकाया था। तब उन्होंने खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को त्यागा था और एक तरह से सियासत के लिए नए आरसीपी सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना डाला था। उनके फ़ैसले पर किसी ने एतराज़ भले न जताया हो लेकिन आरसीपी सिंह की पृष्ठभूमि की वजह से लंबे अरसे से सियासत कर रहे जदयू नेताओं को यह फ़ैसला सही नहीं लगा था। अब नीतीश कुमार ने अपने उस फ़ैसले को सही कर लिया है। सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा है कि आरसीपी सिंह ने बीजेपी नेताओं से बातचीत में पार्टी के किसी दूसरे सांसद का नाम देने की बजाय खुद का नाम दिया और मंत्री बन गए। ललन सिंह मंत्री बनने की रेस में सबसे आगे थे। वे आरसीपी सिंह की वजह से इस रेस में पिछड़ गए। जाहिर है कि ललन सिंह इससे आहत हुए थे और नीतीश कुमार भी सकते में थे। इसके बाद ही नीतीश कुमार ने ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का मन बना लिया था। ललन सिंह के नाम का औपचारिक एलान भले 31 जुलाई को हुआ हो, लेकिन इसकी पटकथा तो सात जुलाई को ही लिखी गई।

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बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद यह कह कर छोड़ा कि पार्टी में एक व्यक्ति एक पद का फ़ॉर्मूला चलेगा तो उनकी नज़र भविष्य की सियासत को साधने पर थी। विधानसभा चुनाव के नतीजों ने नीतीश कुमार को परेशान किया था। बीजेपी के बड़े नेता उन्हें भाव नहीं दे रहे थे। भूपेंद्र यादव जैसे नेताओं को उनसे बात करने के लिए लगा दिया गया था। नीतीश कुमार को यह बात पसंद नहीं आ रही थी। लेकिन वे मजबूर थे। बीजेपी नेताओं से लगातार बातचीत करना ज़रूरी था। उन्हें लगा कि बीजेपी से बात करने के लिए वे वही खेल करें जो बीजेपी ने किया था। यानी भूपेंद्र यादव की काट में पार्टी के अंदर से ही दूसरे नेता को अधिकृत करना। भले ही तब उन्होंने अपने सबसे क़रीबी आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना डाला। लेकिन इसी के साथ यह तय हो गया कि केंद्र में मंत्रिमंडल का विस्तार होगा तो जदयू कोटे से मंत्री के तौर पर आरसीपी सिंह मंत्री नहीं बनेंगे।
ऐसे में मंत्री पद के लिए पहले दावेदार ललन सिंह थे जो जदयू संसदीय दल के नेता भी थे। लेकिन जब केंद्र के मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तो बीजेपी से बातचीत के लिए अधिकृत आरसीपी सिंह ने अपना ही नाम मंत्री पद के लिए बढ़ा दिया। नीतीश को यह बात ठीक तो नहीं लगी लेकिन वे चुप रहे।
दरअसल, विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद नीतीश कुमार भविष्य की राजनीति देख रहे हैं। उनके एजेंडे पर अपना जनाधार बढ़ाना तो है ही, सियासी दुश्मनों को सबक़ भी सिखाना है जिनकी वजह से चुनाव में जदयू 43 सीटों पर सिमट कर रह गया था।

लेकिन आरसीपी सिंह की वजह से नीतीश की परेशानी बढ़ गई थी। जदयू नेताओं का ही कहना है कि अपने गृह ज़िले के एक स्वजातीय को केंद्र में मंत्री बना कर नीतीश को कोई सियासी लाभ तो मिलता नहीं। आरसीपी सिंह कोई जनाधार वाले नेता भी नहीं हैं जिससे पार्टी का जनाधार बढ़ता, लेकिन आरसीपी सिंह ने खेल किया तो बारी नीतीश कुमार की थी।

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ललन सिंह।

ललन सिंह के नाराज़ होने का भी ख़तरा था क्योंकि सियासी प्रबंधन में ललन सिंह माहिर माने जाते हैं। ललन सिंह को नीतीश कुमार नाराज़ करना नहीं चाहते थे। सात जुलाई को ललन सिंह नीतीश कुमार से उनके आवास पर मिले थे। कहा जा रहा है कि आरसीपी सिंह के मंत्री बनाए जाने से नाराज़ ललन सिंह ने कई दिनों तक नीतीश कुमार का फोन नहीं उठाया। काफी मनुहार के बाद वे सात जुलाई को नीतीश कुमार से मिले और उसी दिन उनका राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय हो गया था।

ललन सिंह के लिए हालाँकि राह आसान नहीं होगी। वे संगठन बनाने वाले नेता नहीं माने जाते हैं। उनकी अलग पहचान रही है। वैसे यह भी सही है कि जदयू का संगठन तो नीतीश कुमार की मर्जी से ही आकार लेगा। ललन सिंह के ज़िम्मे जो काम पहले से था वे वह काम करते रहेंगे। यानी दूसरी पार्टियों को निशाना बनाने से लेकर बीजेपी को साधने का। 

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वैसे, अब एक दूसरा काम भी उन्हें करना पड़ सकता है। सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा है कि ललन सिंह के ज़िम्मे अब आरसीपी सिंह को ठिकाने लगाने का काम भी होगा। सबसे पहले संगठन में उन्हें किनारे लगाने का काम शुरू होगा जो आरसीपी सिंह के क़रीबी माने जाते हैं। अभी का हाल ये है कि जदयू के प्रदेश कार्यालय में हर आदमी वही है जो आरसीपी सिंह का क़रीबी है। उन्हें चुन-चुन कर हाशिए से भी बाहर कर दिया जाएगा। यानी आरसीपी सिंह ने जो अपना सिस्टम बनाया था, ललन सिंह को उसे ध्वस्त कर नया सिस्टम बनाना होगा और ऐसा वह नीतीश कुमार के इशारे पर ही करेंगे।

इन सबके बीच ही सबसे बड़ा सवाल यह है कि आरसीपी सिंह का क्या होगा। वे राज्यसभा सांसद हैं और अगले साल उनका कार्यकाल ख़त्म हो रहा है। जदयू उन्हें दो बार राज्यसभा में भेज चुका है। क्या तीसरी बार भी उन्हें नीतीश कुमार राज्यसभा भेजेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा।

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फ़ज़ल इमाम मल्लिक

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