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मांझी का लालू के लिए प्यार! बिहार में होगा दूसरा खेला?

सोमवार की सुबह बिहार की राजनीति में एक खेला हुआ। लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान के ख़िलाफ़ बग़ावत से। मगर बिहार में इससे कहीं बड़े खेला की चर्चा चल रही है। यह दूसरा खेला है नीतीश कुमार सरकार के बारे में जो तलवार की धार पर चल रही है।

राजनीति संभावनाओं का खेल माना जाता है और कभी-कभी बिल्कुल अविश्वसनीय संभावनाओं पर भी चर्चा होती है। ऐसी ही चर्चा में यह बात सामने आयी है कि राजद हर हाल में एनडीए की इस सरकार को हटाना चाहती है। आरजेडी की 75, कांग्रेस की 19 और कम्युनिस्ट पार्टियों की 16 सीटों समेत महागठबंधन के पास 110 सीटें हैं। जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी की 4-4 सीटों को जोड़ लें तो यह संख्या 118 तक पहुंचेगी। अलबत्ता एआईएमआईएम के 5 विधायक भी इसमें शामिल हो जाएँ तो यह दूसरा खेला हो सकता है।

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इससे पहले अगर लोजपा में बग़ावत के लिए जदयू की चाल को ज़िम्मेदार माना जा रहा तो दूसरे खेला आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के लिए हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी का उमड़ते हुआ प्यार है।

इन दोनों बातों को इस लिहाज से देखा जा सकता है कि नीतीश कुमार को इससे क्या हासिल हो रहा है। औपचारिक रूप से जदयू कभी इस बात को नहीं मानेगा कि लोजपा में इस बग़ावत के पीछे नीतीश कुमार का हाथ है लेकिन इससे सबसे अधिक खुशी अगर किसी को हुई है तो वह जदयू ही है। दूसरी बात जीतन राम मांझी का लालू के लिए प्यार सरकार गिराने के लिए काफी हो या नहीं हो, भाजपा को दबाव में रखने में तो मददगार होगा ही। 

चुपचाप ही सही नीतीश कुमार ने न सिर्फ़ चिराग पासवान से विधानसभा चुनाव का बदला वसूला बल्कि भारतीय जनता पार्टी को भी एक संदेश दे दिया। यह बात तो सबको पता है कि चिराग पासवान खुद को मोदी जी का हनुमान बताते थे। यह भी सबको पता है कि भाजपा ने उत्तर पूर्व में जदयू को नुक़सान पहुंचाया है।

नीतीश कुमार विधानसभा में कम सीटों के कारण भाजपा के जिस दबाव में आये हुए थे, वह कुछ हद तक पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के हाथों भाजपा की हार से दूर हुआ है। अब वे इसे और कम करने की कोशिश में हैं।

बिहार की राजनीति में इस दूसरे संभावित खेला के पीछे असल दिमाग लालू प्रसाद का माना जा रहा है। लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप की जीतन राम मांझी से मुलाक़ात को इस दूसरे खेला का हिस्सा माना जा रहा है।

nitish kumar plan amid ljp infighting between chirag paswan and pashupati paras - Satya Hindi

हालाँकि लालू और मांझी के इस रिश्ते में कुछ ही दिन पहले खटास भी देखी जा सकती थी जब लालू की बेटी रोहिणी और मांझी के बहू में बहुत ही तीखी ट्विटर जंग हुई थी। लेकिन वह बात पीछे छूट गयी लगती है। मांझी ने 11 जून को ट्विटर पर लालू प्रसाद को जन्मदिन पर बधाई दी और लिखा- आप दीर्घायु हों, सदैव मुस्कुराते रहें, ईश्वर से यही कामना है।

एनडीए से अलग होने के लिए मांझी का मन कैसे डोल रहा है, यह समझने के लिए दो बातों पर ध्यान देना चाहिए। पहली बात यह है कि मांझी और उनकी पार्टी के नेता खुलकर भाजपा से असहमति और विरोध जता रहे हैं। 

जीतन राम मांझी ने एक और ट्वीट में जातिगत जनगणना की मांग की। आमतौर पर समझा जाता है कि भाजपा इस मांग की विरोधी है जबकि लालू प्रसाद अर्से से इसकी मांग करते रहे हैं। इसी तरह पूर्णिया में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा पर मांझी ने बीजेपी से बिल्कुल अलग स्टैंड लिया।

मांझी ने लिखा कि पूर्णिया की घटना के बाद वहां के मुस्लिम समाज के लोगों ने दलित समाज के भाइयों के पक्ष में खड़े होकर बता दिया कि दलित-मुस्लिम एकजुट हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि इस एकता से जिन लोगों के पेट में दर्द हो रहा है, वही बिहार सरकार पर अंगुली उठा रहे हैं। उनका इशारा भाजपा के उन नेताओं की तरफ था जिन्होंने इस मामले में सरकार पर सवाल उठाये थे।

मांझी की पार्टी के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने भाजपा के कुछ नेताओं पर सरकार को अस्थिर करने का भी आरोप लगाया है। 

दूसरी बात यह है कि मांझी ने बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कोऑर्डिनेशन कमिटी की मांग शुरू की थी और आखिर में आरजेडी के महागठबंधन से अलग हो गये थे। हाल ही में मांझी की पार्टी की ओर से एनडीए में कोऑर्डिनेशन कमिटी की मांग की जा रही है और यह भी कहा जा रहा है कि अगर यह कमिटी नहीं बनी तो हालात ख़राब हो सकते हैं। ऐसी राय बन रही है कि कोऑर्डिनेशन कमिटी की अचानक मांग वास्तव में एनडीए से अलग होने का बहाना बनाने के लिए है।

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बिहार में सरकार चलाने के लिए कम से कम 122 विधायक चाहिए। बीजेपी के पास 75 विधायक हैं और जदयू के पास 43 और 2 अन्य यानी 45। ये दो में एक तो बसपा से विधायक चुने गये जमां खान हैं और दूसरे लोजपा से विधायक बने राजकुमार सिंह। दोनों बाद में जदयू में शामिल हुए। इस तरह जदयू और बीजेपी को मिलाकर 120 विधायक हैं। ऐसे में जीतन राम मांझी के 4 विधायक और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के 4 विधायक का रोल किंगमेकर का बना हुआ है। यही वजह है कि नीतीश कुमार की सरकार को तलवार की धार पर चलता हुआ माना जाता है।

‘वीआईपी’ के मुकेश सहनी ने भी अपनी मांग इस ढंग से रखी है जिससे यह समझा जाता है कि वे सरकार पर दबाव बनाने या उससे अलग होने की राह खोज रहे हैं। उन्होंने चुनाव के समय 19 लाख रोजगार देने की मांग की है। माना यह जा रहा है कि लालू प्रसाद अपनी राजनीतिक सूझबूझ से सहनी को पाला बदलने को तैयार करा लें तो आश्चर्य नहीं हो।

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समी अहमद

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