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बिहार: बीजेपी के दागी नेताओं पर चुप क्यों हैं मोदी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में विपक्ष के पास 'किडनैपिंग इंडस्ट्री का कॉपीराइट' बताते समय अपने उन 22 मंत्रियों को क्यों बिसरा बैठे जिन्होंने अपने आपराधिक रिकॉर्ड का हलफनामा दिया है। इनमें से 16 मंत्री तो जघन्य मामलों में फंसे हैं। लोकसभा में जिस बीजेपी संसदीय दल के नेता मोदी हैं, उनमें से 116 सांसदों की पृष्ठभूमि आपराधिक है। लोकसभा में बीजेपी के कुल सांसदों में 39% फीसदी तथा सहयोगी जेडीयू के 13 लोकसभा सदस्यों की पृष्ठभूमि आपराधिक है। इनमें से जेडीयू के आठ सांसदों पर तो जघन्य मामले दर्ज हैं। 

प्रधानमंत्री के चहेते गृह मंत्री अमित शाह तथा केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे, प्रताप चंद्र सारंगी, बाबुल सुप्रियो और प्रहलाद जोशी सहित छह मंत्रियों ने चुनावी हलफनामे में खुद पर धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, आवास और भाषा के आधार पर सामुदायिक वैमनस्य फैलाने के आपराधिक मामले कबूल किए हैं। 

अश्विनी चौबे, गिरिराज सिंह और नितिन गडकरी पर तो चुनाव में अवैध भुगतान, रिश्वतखोरी और चुनाव को अनावश्यक रूप से प्रभावित करने के प्रयास के मामले भी हैं। 

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लोकतंत्र की पौधशाला बिहार में प्रधानमंत्री मोदी जब महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव पर फिरौतीबाजों से सांठगांठ की तोहमत जड़ रहे थे, उसी समय बीजेपी के आपराधिक पृष्ठभूमि के 14 उम्मीदवारों के लिए वोट पड़ रहे थे। इसके साथ ही जेडीयू के भी पहले दौर के 11 उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। 

मोदी ने एनडीए के कुल 25 आपराधिक उम्मीदवारों के लिए तो मात्र पहले दौर के मतदान में जनता से वोट मांगे हैं। दूसरे और तीसरे दौर के एनडीए उम्मीदवारों में ऐसे आपराधिक मामले वालों की संख्या और भी अधिक है।

एलजेपी के उम्मीदवार भी दागी

इनके अलावा केंद्र में बीजेपी की एनडीए सहयोगी एलजेपी के 13 उम्मीदवार भी पहले दौर के आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों में शामिल रहे हैं। इनमें से भी 22 फीसदी पर हत्या, हत्या की कोशिश, सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने, अपहरण एवं महिलाओं से ज्यादती जैसे जघन्य अपराध दर्ज हैं। यह बात दीगर है कि एलजेपी मुखिया चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव में एनडीए के ही मुख्यमंत्री उम्मीदवार नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलकर चुनाव बाद बीजेपी के साथ सरकार बनाने का शोर मचा रखा है। 

चिराग ने चुन-चुन कर जेडीयू प्रत्याशियों के ख़िलाफ़ एलजेपी के उम्मीदवार खड़े किए हैं जिनमें अनेक बीजेपी और आरएसएस की असरदार शख्सियत रहे हैं। 

बिहार चुनाव पर देखिए, चर्चा- 
सत्ता पाने के लिए बीजेपी आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को देश भर में गले लगा रही है। यूपी में भी 2017 में जीते बीजेपी के 312 विधायकों में 37 फ़ीसद यानी 114 की पृष्ठभूमि आपराधिक है।

योगी, मौर्य पर भी मुक़दमे

इनमें कुलदीप सेंगर, बृजेश सिंह, संगीत सोम ने हत्या के प्रयास, दंगा भड़काने अथवा बलात्कार के आरोपों सहित 83 विधायकों ने खुद पर जघन्य अपराधों का हलफनामा दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं उपमुख्यमंत्री केशव चंद्र मौर्य सहित बीजेपी के 20 मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज रहे हैं। 

मौर्य तो हत्या के प्रयास जैसे जघन्य मामले में आरोपित हैं। ताज्जुब है कि यही योगी, यूपी में अपने राज में बलात्कार तथा महिलाओं एवं दलितों पर बेतहाशा अत्याचारों के बावजूद बिहार को जंगलराज का हौव्वा दिखाते नहीं थक रहे। 

योगी ने तो नेताओं पर दर्ज 20,000 केस निरस्त करने के लिए विधानसभा में बाकायदा विधेयक पेश किया है। दिल्ली में फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवारों में 39 फीसदी दागी रहे हैं।  

Why Modi silent on criminal politicians in bjp - Satya Hindi

कर्नाटक में बीजेपी नेताओं पर उन्हीं की येदियुरप्पा सरकार ने 60 से अधिक आपराधिक मामले निरस्त किए हैं। इस तरह बिहार में भी प्रधानमंत्री बीजेपी के कम से कम 45 फीसदी आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों के लिए वोट मांग रहे हैं। 

बीजेपी ने साल 2005 के बाद से विभिन्न चुनावों में कुल उम्मीदवारों में 59 फीसदी टिकट आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को दिए हैं। सहयोगी जेडीयू ने भी 2005 से जिन्हें चुनाव लड़ाया है, उनमें 50 फीसद की पृष्ठभूमि आपराधिक है। 

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फिर भी लालू यादव के ​कथित जंगल राज के लिए मोदी उन तेजस्वी यादव पर आरोप जड़ रहे हैं जो 1990 से 2005 के बीच घुटनों के बल चलने से लेकर स्कूल तक ही पहुंच पाए थे। फिर भी प्रधानमंत्री कहते हैं, “सरकारी नौकरी तो छोड़िए इन लोगों के आने का मतलब है नौकरी देने वाली प्राइवेट कंपनियां भी यहां से नौ दो ग्यारह हो जाएंगी। रंगदारी दी तब बचोगे नहीं तो किडनैपिंग इंडस्ट्री का कॉपीराइट तो उन लोगों के पास ही है। इसलिए इनसे सावधान रहना। इन दलों की राजनीति झूठ, फरेब और भ्रम पर आधारित है।” 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन तेजस्वी यादव को ''जंगल राज का युवराज'' बता रहे हैं उन्हीं के पिता लालू यादव के समर्थन से बनी नीतीश की साझा सरकार में तेजस्वी यादव पौने दो साल तक उपमुख्यमंत्री रहे हैं।

बीजेपी को बढ़त दिलाने की कोशिश

साल 2017 में महागठबंधन को झटका देकर मोदी और बीजेपी की गोद में बैठने वाले नीतीश हैं मगर प्रधानमंत्री सवाल तेजस्वी और विपक्ष की विश्वसनीयता पर जड़ रहे हैं! इस बौखलाहट के जरिए मोदी एक तीर से दो शिकार कर रहे हैं। ऐसे बयानों से नीतीश को चेता करके वो तेजस्वी को भी खबरदार करना चाह रहे हैं। उनके बयान बिहार में परिवर्तन की बयार बहने के भी प्रतीक हैं। इसलिए मोदी, बीजेपी की अधिक से अधिक सीट निकालने की फिराक में हैं। 

विज्ञापन में लौटे नीतीश 

कोविड-19 महामारी के डर को नकार कर पहले चरण में 55.69 फीसदी मतदाताओं द्वारा वोट डाले जाने से सत्ता छूटने का इशारा भी एनडीए नेताओं के सुर बदल रहा है। मोदी के बयानों में तेजस्वी के बिहार में लालू की जगह आने का डर भी सुनाई दे रहा है। इसीलिए दूसरे-तीसरे चरण में बीजेपी और जेडीयू में बेहतर तालमेल दिखाने को बीजेपी ने अपने विज्ञापनों में नीतीश को फिर जगह दी है। 

नीतीश को हाशिये पर धकेलने से खुद के लिए गहरी हो रही खाई का अनुमान शायद बीजेपी को लग गया। नए विज्ञापन में मोदी के साथ नीतीश कुमार और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी की भी तसवीर है। 

बीजेपी द्वारा नीतीश को फिर अहमियत देने के पीछे दूसरे चरण के मतदान से पहले नीतीश के द्वारा जातियों को आबादी के हिसाब से आरक्षण देने के दांव की कामयाबी मानी जा रही है।

नीतीश का आरक्षण वाला दांव

नीतीश के पिछड़ों को लुभाने के इस दांव से जाहिर है कि अगड़े यानी सवर्ण नाराज़ होकर बीजेपी से छिटकेंगे क्योंकि जेडीयू उसकी गठबंधन सहयोगी है। यूं भी नीतीश ने अपना जनाधार आरक्षण के बूते ही बनाया है। अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में अति पिछड़ी जातियों के लिए उन्होंने अलग कोटा तय करके उनका समर्थन जीता है। इसी तरह महादलित को उभार कर नीतीश ने उनका भी समर्थन जुटाया है। इसीलिए, उन्होंने जीतनराम मांझी को अपने कोटे की 122 सीटों में से सात सीट दी हैं। 

करीब 125 अति पिछड़ी जातियों में नीतीश का पचपनिया समीकरण कायम है जिसे उन्होंने पंचायत स्तर पर चुनाव में अति पिछड़ों को आरक्षण देकर मजबूत किया है। 

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फिसड्डी रहा बिहार 

उधर, समावेशी विकास में बिहार के फिसड्डी साबित होने से रोजगार और विकास का श्रेय लेने में जुटे नीतीश और मोदी की साख को बट्टा लगना तय है। इसकी घोषणा पब्लिक अफेयर्स सेंटर ने समान हिस्सेदारी, आर्थिक वृद्धि और समावेशी विकास के पैमानों पर बिहार को आंक कर की है। 

समावेशी विकास में केरल अव्वल और बिहार सबसे फिसड्डी घोषित हुआ है। यह जानकारी  सेंटर के अध्यक्ष एवं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व मुखिया के. कस्तूरीरंगन ने दी है।  

इन तथ्यों के उजागर होने और बेरोजगारी बढ़ने के आरोपों के जवाब में नीतीश ने आखिर अपने 15 साल के शासन में छह लाख रोजगार देने का एलान किया है। उनका बयान चुनाव पर बेरोजगारी और विकास का मुद्दा छा जाने की गवाही दे रहा है। 

तेजस्वी ने किया मजबूर

तेजस्वी के 10 लाख सरकारी नौकरियां देने के वायदे से बना यह माहौल एनडीए के गले का फंदा बन गया। मतदाताओं को भटकाने के लिए सुशील मोदी और नीतीश ने पैसा नहीं होने की बिना पर इसे झूठा वायदा साबित करना चाहा मगर बीजेपी ने खुद 19 लाख रोजगार देने का वायदा करके इसे तूल दे दिया। इससे साफ है कि अन्य मुद्दों में नाकाम मुख्यमंत्री और बीजेपी तेजस्वी की पिच पर खेलने को मजबूर हो गए हैं।

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अनन्त मित्तल

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