निज़ामुद्दीन मरकज़ फिर चर्चा में है। यह चर्चा कुंभ मेले के संदर्भ में तो है ही, लेकिन एक दूसरी वजह भी है। यह वजह है रमज़ान के दौरान निज़ामुद्दीन मरकज़ में नमाज अदा करने को लेकर केंद्र सरकार का रवैया। केंद्र ने एक दिन पहले ही अदालत में लोगों को मरकज़ में जाने की सशर्त इजाजत देने पर सहमति जताई थी, लेकिन मंगलवार को इसने कह दिया कि राजधानी में नए आपदा प्रबंधन नियमों के तहत सभी धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या ऐसा आपदा प्रबंधन का नियम कुंभ मेले पर लागू नहीं होता?
सरकार की ओर से इस पर क्या दलील दी गई, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर निज़ामुद्दीन मरकज़ पर विवाद क्यों है।
दिल्ली के निज़ामुद्दीन का यह वही मरकज़ है जो पिछले साल मार्च से बंद है। इस पर पिछले साल तबलीग़ी जमात को लेकर विवाद हुआ था। तब देश में कोरोना संक्रमण फैलना शुरू ही हुआ था और इस बीच मरकज़ में हुए तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में कई लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। इसके बाद तबलीग़ी पर आरोप लगाए जाने लगे कि इसके कारण कोरोना फैला है। इनके ख़िलाफ़ नफ़रत वाला अभियान चला। सरकार की तरफ़ से ऐसी रिपोर्टें जारी की गईं जिसकी आलोचना की गई। मीडिया ने भी वैसी ही रिपोर्टिंग की। मरकज में शामिल होने वालों पर केस किया गया। बाद में कोर्ट में ये मामले नहीं टिके और अब तक अधिकतर केस खारिज किए जा चुके हैं।
कोरोना की पहली लहर कमजोर पड़ने पर देश भर में धार्मिक और राजनीतिक सभाएँ होने लगीं। लेकिन अब जब कोरोना संक्रमण का मामला कहीं ज़्यादा फैल चुका है, दूसरी लहर आ गई है तो कई जगहों पर प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। हालाँकि, कुंभ मेले जैसे धार्मिक आयोजन चल भी रहे हैं।
देश भर में कई जगहों पर धार्मिक कार्यक्रम किए जा रहे हैं तो हाई कोर्ट में दिल्ली वक्फ बोर्ड की तरफ़ से याचिका लगाई गई थी कि क्या मरकज़ में लोगों को नमाज़ अदा करने के लिए पाबंदी में थोड़ी राहत दी जा सकती है?
इसी पर सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र के उस बयान पर कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया दी जिसमें इसने कहा था कि पुलिस द्वारा सत्यापित की गई 200 लोगों की सूची में से 20 लोग ही एक समय पर मरकज़ परिसर में जा सकते हैं। उत्तराखंड के कुंभ में लाखों लोगों के इकट्ठे होने के बीच कोर्ट ने पूछा कि क्या आपने अधिसूचना में धार्मिक जगहों पर एक समय पर 20 लोगों से ज़्यादा लोगों के इकट्ठे नहीं होने की बात कही है?
अदालत ने कहा कि जब किसी अन्य धार्मिक पूजा स्थल पर श्रद्धालुओं की संख्या तय नहीं है तो मसजिद पर भी एक निश्चित संख्या की ज़रूरत नहीं है। अदालत ने कहा, '200 लोगों की सूची स्वीकार्य नहीं है।'
इसके बाद मंगलवार को केंद्र सरकार ने अपना तर्क बदल दिया। उसने कहा कि दिल्ली आपदा प्रबंधन अधिनियम के दिशा निर्देश सभी धार्मिक समारोहों को रोकते हैं। इसने कहा कि ये नियम केवल दिल्ली में लागू होते हैं। यानी उसका इशारा साफ़ था कि दिल्ली के बाहर यानी कुंभ मेले जैसे आयोजन पर ये नियम नहीं लागू होते हैं।
केंद्र का प्रतिनिधित्व भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कर रहे थे। उन्होंने यह बयान भी दिया कि सभी धार्मिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस पर वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता ने अदालत के कहा कि वह करोल बाग हनुमान मंदिर की तसवीरें पेश कर सकते हैं जिसमें लंबी कतारें हैं और सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों का पालन नहीं हो रहा है।
रमेश गुप्ता ने हरिद्वार में होने वाले कुंभ मेले का भी ज़िक्र किया और पूछा कि क्या केंद्र सरकार के नियम वहाँ लागू नहीं हैं और क्या वे केवल मुसलमानों के लिए हैं।
इस पर अदालन ने साफ़ कहा कि 'आज, मैं एक अदालत के रूप में, एक दिशा-निर्देश नहीं दे सकता जो क़ानून के विपरीत हो। इसलिए मुझे क़ानून की चहारदीवारी के भीतर काम करना होगा। उन्हें हलफनामे में बताने दें कि उन्होंने यह सब बंद कर दिया है तो निश्चित रूप से यह इस (मरकज़) पर लागू होगा, लेकिन अगर उन्होंने मंदिरों, चर्चों और मसजिदों में इन सभी धार्मिक समारोहों को बंद नहीं किया है तो यह खुलेगा और हर जगह सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होना चाहिए।'
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