Delhi bjp controversy hardev puri remark on BJP chief manoj tiwari

दिल्ली: बीजेपी को भारी न पड़ जाए मनोज तिवारी पर पुरी का बयान

खिलाड़ी जब अनाड़ी हो तो फिर ऐसा ही होता है, जैसा केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के साथ हुआ। पुरी ने अति उत्साह में कह डाला, ‘हम दिल्ली का आगामी विधानसभा चुनाव मनोज तिवारी के नेतृत्व में लड़ेंगे और उन्हें दिल्ली का सीएम बनाकर ही छोड़ेंगे।’ विधानसभा का चुनाव मनोज तिवारी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, इस बात से तो कोई इनकार नहीं कर सकता और किसी को एतराज भी नहीं हो सकता। क्योंकि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते मनोज तिवारी को तो दिल्ली का चुनाव लड़ाना ही है लेकिन हरदीप पुरी के अगले वाक्य - ‘हम उन्हें दिल्ली का सीएम बनाकर ही छोड़ेंगे’ ने तो जैसे आम आदमी पार्टी (आप) की मुराद ही पूरी कर दी। 

पुरी को हटना पड़ा पीछे

‘आप’ पिछले कुछ समय से बीजेपी को उकसा रही है कि वह अपने सीएम के चेहरे का एलान करे। बीजेपी की तरफ से अब तक यह बात बड़े विश्वास के साथ कही जा रही थी कि इस बार किसी को भी सीएम प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा। बीजेपी पिछले विधानसभा चुनावों में किसी नेता को सीएम प्रोजेक्ट करके और किसी को ‘सीएम इन वेटिंग’ घोषित करके मुंह की खाती रही है। मगर, हरदीप पुरी ने जैसे ही मनोज तिवारी का नाम उछाला, ‘आप’ ने उसे हाथों-हाथ कैच कर लिया। बात इतनी बिगड़ गई कि आखिर हरदीप पुरी को अपने बयान से पीछे हटना पड़ा और यह कहना पड़ा, ‘पार्टी ने किसी का भी नाम फ़ाइनल नहीं किया है और मैंने ऐसा नहीं कहा था।’ 
आज के समय में ‘मैंने ऐसा नहीं कहा था या मेरे कहने का मतलब यह नहीं था’, वाली बात नहीं चलती। बहरहाल, हरदीप पुरी ने भले ही यू टर्न ले लिया हो लेकिन ‘आप’ को तो सीधा रास्ता मिल गया है। इसी की तो उसे तलाश थी।

‘आप’ इस गुमान में है कि अरविंद केजरीवाल के मुक़ाबले का नाम न तो बीजेपी के पास है और न ही कांग्रेस के पास। इसीलिए उसके नेता केजरीवाल के मुक़ाबले का नाम पूछते रहते हैं। 2013 में जब ‘आप’ ने केजरीवाल को सबसे ईमानदार नेता के रूप में प्रचारित किया था तो बीजेपी ने दबाव में आकर डॉ. हर्षवर्धन को उतार दिया था लेकिन तब बीजेपी 32 के आंकड़े पर अटक गई थी और अगर वह 4 सीटें और जीत जाती तो सरकार बना लेती। 

आज जैसे हालात होते तो तब अमित शाह कह सकते थे कि सरकार बनाओ, बाकी मैं देख लूंगा। लेकिन तब डॉ. हर्षवर्धन ने यह कहते हुए क़दम वापस खींच लिए थे कि जनता ने हमें विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है। बहरहाल, डॉ. हर्षवर्धन का नाम भी बीजेपी की नैया पार नहीं लगा पाया था। उसके बाद 2015 में जब ‘आप’ ने इसी तरह का दबाव बनाया तो बीजेपी केजरीवाल के मुक़ाबले किरन बेदी को ले आई। फिर जो कुछ हुआ, वह इतिहास बन चुका है। किरन बेदी को बड़े बेआबरू होकर कूचे से निकलना पड़ा। इसलिए ‘आप’ का यह विश्वास पक्का हो गया कि जब बीजेपी और कांग्रेस कोई भी नाम उछालेंगे तो वह केजरीवाल से उन्नीस ही होगा। कांग्रेस तो ख़ैर अभी मुक़ाबले में ही नहीं है। इसलिए ‘आप’ के नेता बीजेपी पर दबाव बनाते रहे हैं कि वह दिल्ली में मुख्यमंत्री के चेहरे का नाम सामने लाए। इसके लिए वे कभी विजय गोयल को निशाना बनाते हैं और कभी मनोज तिवारी को।

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गुटबाज़ी पर लगाम लगाना ज़रूरी

बीजेपी को शायद डर यह नहीं है कि उसके पास मुख्यमंत्री पद के लिए कोई नाम नहीं है। बीजेपी कोई न कोई नाम ला भी सकती है। डॉ. हर्षवर्धन को फिर से उतारा जा सकता है या फिर पैंतरेबाज़ी में माहिर विजय गोयल को भी यह लक्ष्य दिया जा सकता है कि इस बार दिल्ली जीतकर दिखाओ। लेकिन अतीत यह बताता है कि बीजेपी ने जब भी इस तरह का प्रयोग किया है, उसे मुंह की खानी पड़ी है, चाहे - वह 1998 में सुषमा स्वराज हों, 2003 में मदन लाल खुराना हों, 2007 में विजय कुमार मलहोत्रा हों, 2013 में डॉ. हर्षवर्धन हों या फिर 2015 में किरन बेदी हों। जब भी कोई नाम सामने आता है तो बाक़ी जितने भी नाम हैं, वे इस बड़े नाम को मिटाने में जुट जाते हैं। इसलिए गुटबाज़ी पर काबू पाने के लिए बीजेपी इस बार यह तय करके बैठी है कि किसी का भी नाम सामने नहीं लाया जाए और सभी को यह जिम्मेदारी दी जाए कि चुनाव जिताकर बीजेपी का 21 साल का बनवास खत्म करें। मगर, हरदीप पुरी की जल्दबाज़ी या अनाड़ीपन ने जहां बीजेपी को बैकफ़ुट पर धकेल दिया है, वहीं ‘आप’ को भी बाउंसर पर बाउंसर पर फेंकने का मौक़ा दे दिया।

संजय सिंह ने बनाया मुद्दा

हरदीप पुरी के एलान के फौरन बाद ही ‘आप’ के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने ट्वीट करके मनोज तिवारी को बधाई दे डाली और फिर प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर डाली। उन्होंने मनोज तिवारी के उन बयानों से जनता को डराया कि अगर वह सत्ता में आ गए तो मुफ्त बिजली और पानी वापस ले लेंगे। संजय सिंह ने साथ ही हरदीप पुरी को भी कोसा कि वह महिलाओं की डीटीसी में मुफ्त सवारी बंद करने वाले हैं।

संजय सिंह की कोशिश यह बताने की थी कि एक तरफ केजरीवाल हैं जो सब कुछ फ़्री बांट रहे हैं और दूसरी तरफ मनोज तिवारी हैं, जो जनता को दी गई सारी सुविधाएं वापस ले लेंगे। केजरीवाल के मुक़ाबले मनोज तिवारी का चेहरा बिगाड़ना ‘आप’ के लिए कोई ज्यादा मुश्किल काम नहीं था।

बीजेपी में मची खलबली

इधर, हरदीप पुरी ने मनोज तिवारी के नाम का एलान किया और उधर बीजेपी में हलचल मच गई। आखिर पुरी को यह अधिकार किसने दिया कि वह इस तरह मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला कर लें। हाईकमान से पूछताछ हुई और हरदीप पुरी से कहा गया कि वह फौरन यू टर्न लें। पुरी ने ऐसा किया भी लेकिन तब तक जो नुकसान होना था, हो चुका था बल्कि इसके बाद ‘आप’ को यह कहने का मौक़ा मिल गया कि बीजेपी ऐसी बारात है जिसका कोई दूल्हा ही नहीं है। कोई कह रहा है कि बीजेपी को मनोज तिवारी की योग्यता पर भरोसा नहीं है तो कोई कह रहा है कि बीजेपी पूर्वांचलियों पर विश्वास नहीं करती। इसीलिए नाम घोषित भी किया गया और वापस भी ले लिया गया।

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हो सकता है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के दिमाग में मनोज तिवारी का नाम हो लेकिन अभी से यह नाम सामने लाकर वह उन लोगों को निराश और असंतुष्ट नहीं कर सकते जो मुख्यमंत्री बनने की लाइन में लगे हुए हैं। विजय गोयल को केंद्रीय मंत्री नहीं बनाया गया और जनवरी में उनका राज्यसभा का कार्यकाल भी ख़त्म हो रहा है। उन्हें इस बार लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ाया गया तो वह अपनी बारी मानकर बैठे हैं। 

गौतम गंभीर ने भी पिछले दिनों कहा था कि दिल्ली का सीएम बनना उनके एक सपने के पूरे होने जैसा होगा। ज़ाहिर है कि ऐसे में किसी का नाम भी सामने लाना ख़तरे से खाली नहीं है। इसीलिए बीजेपी इस सवाल से बच रही थी और ‘आप’ के दबाव के बावजूद उसने ख़ामोशी अख्तियार की हुई थी।

कुछ लोग यह कह रहे हैं कि हो सकता है कि बीजेपी ने जानबूझ कर हरदीप पुरी से नाम उछलवाया हो ताकि पूर्वांचल के लोगों के मन में यह बात भर दी जाए कि मनोज तिवारी सीएम हो सकते हैं। लेकिन ऐसा इसलिए संभव नहीं है क्योंकि बीजेपी इतिहास को देखते हुए इस तरह का जोखिम नहीं लेगी। अगर ऐसा होता भी तो फिर हरदीप पुरी से इतनी जल्दी और इतनी सख़्ती से अपने बयान का खंडन भी नहीं कराया जाता।

कुल मिलाकर पुरी ने ‘आप’ को एक ऐसा मुद्दा दे दिया है जिसे लेकर उसके नेता रोजाना दबाव बनाएंगे और बीजेपी को मजबूर करेंगे कि वे अपनी बारात के दूल्हे का नाम सामने लाएं। अब देखना यही है कि बीजेपी इस सवाल को कब तक टालती है और कब तक इस दबाव को बर्दाश्त करती है।

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दिलबर गोठी

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