loader

धर्मांतरण की ‘दुर्भावनापूर्ण’ रिपोर्ट पर मीडिया संस्थान, NBSA को नोटिस

एक हिंदू महिला के धर्मांतरण के बाद उसके बारे में कथित दुर्भावनापूर्ण ख़बर प्रकाशित करने और जान पर ख़तरे का आरोप लगाए जाने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार, संबंधित मीडिया संस्थानों, न्यूज़ चैनलों की संस्था एनबीएसए को नोटिस जारी किया है। यूपी की महिला ने 9 साल पहले 2012 में ही धर्म परिवर्तन कर इसलाम धर्म अपना लिया था और वह फ़िलहाल दिल्ली में रह रही हैं। महिला ने हाई कोर्ट में याचिक दायर कर आरोप लगाया है कि धर्मांतरण की वजह से उनको और उनके परिवार के सदस्यों को निशाना बनाया जा रहा है और मीडिया में दुर्भावनापूर्ण सामग्री प्रकाशित की जा रही है। 

महिला ने याचिका में अपने और अपने परिवार के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की है। ‘लाइव लॉ’ की रिपोर्ट के अनुसार महिला ने यह भी कहा है कि मीडिया को उसकी निजता का सम्मान करना चाहिए और उसके बारे में कोई भी ‘दुर्भावनापूर्ण’ ख़बर प्रकाशित करने से बचना चाहिए। उसमें यह भी आग्रह किया गया है कि दिशा रवि के मामले में हाई कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों का मीडिया चैनलों से पालन करवाया जाए। 

ताज़ा ख़बरें

टूलकिट मामले में गिरफ़्तार दिशा रवि की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने 19 फ़रवरी को कुछ न्यूज़ चैनलों को सनसनी फैलाने से बचने को कहा था। कोर्ट ने कहा था कि 'आम तौर पर मीडिया इस तरह सनसनीखेज तरीक़े से जानकारी प्रसारित नहीं कर सकता है।' इसने कहा था कि सूचना प्रसारित करते समय 'पर्याप्त संपादकीय नियंत्रण' हो। दिशा ने पुलिस पर आरोप लगाया गया था कि पुलिस उनकी निजी वाट्सऐप चैट सहित जाँच की सामग्री को मीडिया में लीक कर रही है। दिशा रवि ने याचिका में इंडिया टुडे, टाइम्स नाउ और न्यूज 18 के ख़िलाफ़ टूलकिट मामले में कथित तौर पर नियमों के ख़िलाफ़ और 'एकतरफा' रिपोर्टिंग के लिए कार्रवाई की माँग की थी। 

कोर्ट ने चैनल के संपादकों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि जाँच प्रभावित नहीं हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सूचना प्रसारित करते समय पर्याप्त संपादकीय नियंत्रण का प्रयोग किया जाए।

हाई कोर्ट ने केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ का हवाला दिया था। इस पीठ ने मान्यता दी थी कि एक फ़ोन पर बातचीत एक अंतरंग और गोपनीय प्रकृति की है, और अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के गोपनीयता के मौलिक अधिकार के तहत संरक्षित किए जाने का हकदार है।' उसने यह भी कहा था, 'माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ में मान्यता दी है... कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रतिष्ठा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।'

बहरहाल, उस महिला की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार, ज़ी मीडिया, नवभारत टाइम्स जैसे मीडिया संस्थान और मीडिया संस्थानों की संस्था एनबीएसए यानी न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स ऑथोरिटी को नोटिस दिया है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता तान्या अग्रवाल ने अदालत के समक्ष आशंका जताई कि महिला को न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से दूर किया जा सकता है और न्यायालय से अनुरोध किया कि वह उत्तर प्रदेश राज्य को नोटिस जारी करे ताकि उसका अपना रुख स्पष्ट हो जाए। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने हालाँकि यह तर्क देकर उत्तर प्रदेश राज्य को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया कि यह इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।  

याचिका में दावा किया गया है कि उसने अपनी मर्जी से और बिना किसी धमकी या जबरदस्ती के साल 2012 में इस्लाम धर्म अपना लिया था जिसके बाद धर्मांतरण का प्रमाण पत्र जारी किया गया था। हालाँकि इस साल जून से इस तरह के धर्म परिवर्तन के कारण उसे परेशान किया जा रहा है।

दिल्ली से और ख़बरें

तो सवाल है कि जब 2012 में धर्म परिवर्तन किया और शादी की तो अब ऐसा क्या हो गया। दरअसल, इस संबंध में धर्मांतरण से संबंधित अख़बार में विज्ञापन देना था और उन्होंने इस साल 6 और 8 अप्रैल को अख़बार में इस बारे में विज्ञापन प्रकाशित करवाया। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इस विज्ञापन के बाद उन मीडिया में ऐसी ‘दुर्भावनापूर्ण’ ख़बरें प्रकाशित हुईं कि उन्हें धमकियाँ मिलने लगीं। आरोप लगाया गया कि उन मीडिया में उसकी निजता और प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन करते हुए नाम, पता और फोटोग्राफ़ भी छापे गए। उन्होंने अदालत से इस मामले में संज्ञान लेने और उससे जुड़ी ख़बरें भी वेबसाइट से हटवाने की अपील की।

कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली सरकार, मीडिया संस्थान और एनबएसए तीन हफ़्ते में हलफनामा दें। अदालत ने दिल्ली पुलिस को महिला को पर्याप्त सुरक्षा देने को भी कहा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 16 नवंबर को होगी।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

दिल्ली से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें