फ़रवरी में दिल्ली में हुए दंगों को लेकर दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी से निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन पर ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए लगा दिया है। ताहिर हुसैन पर इंटेलीजेंस ब्यूरो के अफ़सर अंकित शर्मा की हत्या करने का आरोप है। इससे पहले पुलिस ने ताहिर हुसैन के ख़िलाफ़ धारा 302 (हत्या), आगजनी और हिंसा के मामले में मुक़दमा दर्ज किया था। मुक़दमा दर्ज होने के बाद पार्टी ने ताहिर को निलंबित कर दिया था।
अंकित शर्मा का नाले में शव मिलने के बाद उसके परिजनों का कहना था कि ताहिर हुसैन के घर से लोगों पर पत्थर और पेट्रोल बम फेंके गये और ताहिर के समर्थकों ने ही अंकित की हत्या की है। दूसरी ओर ताहिर ने इन आरोपों को ग़लत बताया था। ताहिर ने कहा था कि वह पूरी तरह निर्दोष है और कपिल मिश्रा के भड़काऊ बयान के बाद दिल्ली में हालात ख़राब हुए थे।
ताहिर ने कहा था कि भीड़ उनके ऑफ़िस का दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुस गई थी और छत पर चढ़ गई थी और इस दौरान उन्होंने पुलिस से कई बार मदद मांगी थी। ताहिर ने कहा था कि वह नार्को टेस्ट के लिये तैयार हैं और किसी भी अन्य तरह की भी जांच का सामना करेंगे।
क्या है यूएपीए?
यूएपीए केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह आतंकवादी संगठन से जुड़े होने के शक के आधार पर वह किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकती है और किसी को भी आतंकवादी घोषित कर सकती है। इस क़ानून के लागू होने के बाद से ही इसे लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं। कई जनप्रतिनिधियों ने इस क़ानून का जोरदार विरोध किया था और यह तर्क दिया था कि यह क़ानून आम आदमी को प्राप्त स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट में इस क़ानून के विरोध में याचिका भी दायर की गई थी।
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