सीटी रवि
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5 जनवरी, 2020 को दिल्ली में स्थित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में हुई हिंसा के मामले में अभी तक किसी भी शख़्स की गिरफ़्तारी नहीं हुई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से मंगलवार को यह जवाब संसद में दिया गया है।
5 जनवरी को सैकड़ों की संख्या में नक़ाबपोश जेएनयू में घुसे थे, उन्होंने तीन घंटे तक कोहराम मचाया था, छात्र-छात्राओं और टीचर्स को पीटा था लेकिन इसके डेढ़ साल बाद भी इस मामले में किसी की गिरफ़्तारी न होने का बयान हर उस शख़्स को शर्मसार करता है, जिसने इस हिंसा को या तो अपने सामने होते देखा या सोशल मीडिया पर वायरल हुए इसके फ़ोटो-वीडियो देखे।
इस हिंसा में 36 लोग घायल हुए थे। इनमें टीचर्स और छात्र-छात्राएं शामिल थे। जेएनयूएसयू की पूर्व अध्यक्ष आइशी घोष भी बुरी तरह घायल हुई थीं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया कि इस मामले में दिल्ली पुलिस के द्वारा तीन मुक़दमे दर्ज किए गए हैं और संदिग्धों को पकड़ने के लिए कई तरह की जांच की गई है। हिंसा और गुंडई की ये जघन्य वारदात उस दिल्ली में हुई थी, जहां की सुरक्षा केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है और जिसके पास बेहतर संसाधनों वाली पुलिस फ़ोर्स है और जो देश की राजधानी भी है।
जनवरी, 2021 में दिल्ली पुलिस ने कहा था कि लॉकडाउन लगने के कारण जांच आगे नहीं बढ़ सकी थी। पुलिस के मुताबिक़, छात्र घरों को चले गए थे, इस वजह से वह हिंसा में शामिल छात्रों के ख़िलाफ़ पुख़्ता सबूत नहीं जुटा सकी।
हिंसा के दौरान एबीवीपी की छात्रा कोमल शर्मा की फ़ोटो काफ़ी वायरल हुई थी। दिल्ली पुलिस की एसआईटी ने उससे भी पूछताछ की लेकिन कोमल का कहना है कि वह उस दिन कैंपस में मौजूद ही नहीं थी।
जेएनयू प्रशासन ने भी इस मामले में आंतरिक जांच के लिए 5 लोगों की एक कमेटी बनाई थी। लेकिन इस साल की शुरुआत में आंतरिक जांच को बंद कर दिया गया था। प्रशासन का कहना था कि पुलिस की जांच चल रही थी इसलिए इस जांच को बंद कर दिया गया। जबकि हिंसा में घायल हुए टीचर्स और छात्रों ने कहा था कि कमेटी ने एक बार भी उनसे इस मामले में बात नहीं की।
जेएनयू में घुसे नक़ाबपोशों ने ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’, ‘नक्सलवाद मुर्दाबाद’ और ‘न माओवाद, ना नक्सलवाद, सबसे ऊपर राष्ट्रवाद’ के नारे लगाए थे।
जेएनयू के छात्र-छात्राओं और टीचर्स ने आरोप लगाया था कि जिस दौरान ये नक़ाबपोश गुंडे उन्हें पीट रहे थे, उस दौरान पुलिस कैंपस के गेट पर मौजूद थी लेकिन उसने इन लोगों को रोकने की कोशिश नहीं की।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने ख़बर दी थी कि हिंसा वाले दिन पुलिस को दोपहर 2.30 बजे के बाद 4 घंटे तक 23 बार कॉल की गई लेकिन पुलिस तब कैंपस के अंदर आई जब उसे रजिस्ट्रार की ओर से आधिकारिक रूप से आने के लिए कहा गया। तब सवाल यही उठा था कि पुलिस कैंपस के बाहर क्यों खड़ी रही जबकि उसे कॉल कर हिंसा के बारे में लगातार बताया जाता रहा। पिछले साल दिसंबर में दिल्ली पुलिस ने जामिया के कैंपस में घुसकर छात्रों को पीटा था।
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