राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिंसा पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की नींद तीन दिन बाद अब खुली है। वह भी आधी रात को। या यूँ कहें कि वह अब होश में आए हैं। वह भी तब जब यह हिंसा पूरी तरह बेकाबू हो गई। 18 लोगों की जानें चली गईं और 250 से ज़्यादा लोग गंभीर घायल हो गए। देश-दुनिया में पूरी तरह बदनामी हो रही है। और गृह मंत्रालय से लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस का पूरा महकमा दो दिन से लगातार उच्चस्तरीय बैठकें कर रहे हैं।
रिपोर्टों में कहा गया है कि अजीत डोभाल ने मंगलवार रात को हिंसा प्रभावित उत्तर-पूर्वी दिल्ली में स्थिति का जायजा लिया है। वह रात को ही दिल्ली पुलिस के मुखिया अमुल्य पटनायक के साथ सीलमपुर में डीसीपी वेद प्रकाश के कार्यालय पहुँचे, बैठक की और फिर हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लिया।
अजीत डोभाल का यह हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा तब हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भारत से जा चुके थे। तो क्या वह ट्रंप के जाने का इंतज़ार कर रहे थे? क्या उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और ज़्यादा बदनामी का डर लग रहा था?
बता दें कि ट्रंप भारत के दो दिवसीय दौरे पर आए थे और मंगलवार रात क़रीब 10 बजे भारत से वापस चले गए। लेकिन जाने से पहले उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पूछे गए सवाल के जवाब में ट्रंप ने कहा कि उन्होंने दिल्ली में हो रही हिंसा के बारे में सुना है लेकिन यह भारत का आंतरिक मामला है। हालाँकि इसके साथ ही ट्रंप ने यह भी कहा, ‘हमने धार्मिक आज़ादी पर पर बात की। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वह चाहते हैं कि लोगों की धार्मिक आज़ादी बनी रहे।’
जब ट्रंप को सब पता था फिर अजीत डोभाल ने मामले में हस्तक्षेप करने में देरी क्यों की? क्या उन्हें हाई कमान से ऐसा करने के लिए आदेश नहीं था या उन्हें रोका जा रहा था? शायद उन्हें लग रहा हो कि ट्रंप की यात्रा के दौरान यदि उन्होंने इस मामले में हस्तक्षेप किया तो इसका संदेश पूरी दुनिया में जाएगा कि सरकार हिंसा को रोक नहीं पा रही है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसी कारण अब तक हिंसा पर कुछ नहीं बोला है क्योंकि यह बड़ी ख़बर बनती और दुनिया भर में यह ख़बर प्रमुखता से छपती।
तो क्या हिंसा पर बदनामी से बचने के लिए कार्रवाई करने में ढिलाई बरती गई? चाहे वह प्रधानमंत्री के स्तर पर हो या गृह मंत्री अमित शाह के स्तर पर या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के स्तर पर? क्या ट्रंप की यात्रा के कारण इस मामले में बड़े स्तर पर हस्तक्षेप नहीं किया गया, इससे हिंसा बढ़ती गई और मरने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती गई?
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की ज़िम्मेदारी है कि देश में सुरक्षा को लेकर जो ख़तरा हो उस पर नज़र रखे और ऐसी किसी घटना से पहले ही उससे निपटने की तैयारी हो। यानी ख़ुफिया एजेंसियाँ तत्पर रहें। यहां पर सवाल यह है क्या ख़ुफिया एजेंसियां पूरी तरह फ़ेल हो गई हैं? क्या उन्हें इस बात की भनक नहीं लगी कि इतने बड़े पैमाने पर दंगाई देश की राजधानी को दहलाने के लिये तैयार बैठे हैं? और यह सब ऐसे समय में हुआ जब दुनिया के ताक़तवर देशों में से एक अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर आये हुए थे। इसका मतलब ख़ुफिया एजेंसियां अपने काम में पूरी तरह फ़ेल रहीं और अगर उन्होंने कोई इनपुट दिया था तो एक्शन क्यों नहीं हुआ?
ये सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से पूछे जाने चाहिए कि आख़िर इसमें उनकी ज़िम्मेदारी क्या बनती है? यदि उनकी ज़िम्मेदारी कुछ नहीं बनती तो आधी रात को वह हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लेने क्यों गए थे और बैठक क्यों की?
और यदि उनकी ज़िम्मेदारी बनती है तो ऐसा क्यों हुआ कि नागरिकता संशोधन क़ानून के समर्थक और विरोधियों के बीच हुई हिंसा के कारण दिल्ली में अब तक 18 लोगों की मौत हो चुकी है और 250 से ज़्यादा लोग घायल हैं? यह सामान्य हालात नहीं है कि देश की राजधानी के चार इलाक़ों में कर्फ़्यू लगा दिया गया हो।
अपनी राय बतायें