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कोरोना के कम टेस्ट पर दिल्ली को फटकार तो यूपी- बिहार को क्यों नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना के मरीज़ों को समुचित इलाज ना मिलने के मामले पर सुनवाई करते हुए अरविंद केजरीवाल सरकार को जमकर फटकार लगायी है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के अस्पतालों में शवों की हो रही दुर्गति मामले में भी केजरीवाल सरकार को कटघऱे में खड़ा किया है। शवों की दुर्गति का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई की।

तीन जजों की बेंच ने कहा कि दिल्ली में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, बावजूद इसके यहाँ टेस्ट कम क्यों हो रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीज़ों के साथ जिस तरह का व्यवहार हो रहा है, उससे कोर्ट नाराज़ है। कोर्ट ने कहा कि चेन्नई और मुंबई में टेस्टिंग बढ़ा दी गयी है, दिल्ली में इसे क्यों नहीं बढ़ाया गया है?
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सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान

तीन जजों की बेंच ने कहा कि दिल्ली में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, बावजूद इसके यहाँ टेस्ट कम क्यों हो रहे हैं।
सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीज़ों के साथ जिस तरह का व्यवहार हो रहा है, उससे कोर्ट नाराज़ है। कोर्ट ने पूछा है कि चेन्नई और मुंबई में टेस्टिंग बढ़ा दी गयी है, दिल्ली में क्यों नहीं बढ़ाया गया है?
सुप्रीम कोर्ट ने एकदम सही मुद्दा उठाया है। जैसे-जैसे दिल्ली में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़े हैं यहाँ रोज़ाना होने वाले टेस्ट की संख्या में कमी आ गई। हाल ही में दिल्ली में कई ऐसे मामले सामने आ हैं जब कोरोना के मरीज़ों के सरकारी और निजी दोनों तरह के अस्पतालों में बेड न होने का बहाना बनाकर भर्ती करने से इंकार कर दिया गया। हालांकि दिल्ली सरकार का एप बेड उपलब्ध बता रहा था। संभवतः ऐसे ही मामलों ने सुप्रीम कोर्ट को  दिल्ली के हालात पर स्वतः संज्ञान लेने के लिए मजबूर किया हो।

कोरोना टेस्ट

पहली जून से दिल्ली में औसतन 5-6 हज़ार के बीच कोरेना टेस्ट रोज़ाना हो रहे हैं, जबकि 31 मई को दिल्ली में 6,045 टेस्ट हुए थे। जबकि अगले दिन सिर्फ 4,753 टेस्ट हुए। दो जून को 6,070, 3 जून को 6,538, 4 जून को 6,361, 5 जून को 5,187, 6 जून को 5180. 7 जून को 5042, 8 जून को 3700, 9 जून को 5,464, 10 जून को 5,070 और 11 जून को 5,360 टेस्ट हुए। 12 जून को 5,947 टेस्ट हुए।
दिल्ली में अचानक कम टेस्ट होना हैरानी की बात है। इस पर सवाल उठने ही चाहिए। क्योंकि यह वही दिल्ली है जहाँ पहली अप्रैल को ही 2,261 टेस्ट किए गए थे। उसके बाद 7 अप्रैल को 6,420 टेस्ट हुए। अप्रैल के पूरे महीने  दिल्ली में 1000 से 3000 तक रोज़ाना टेस्ट हुए। 2 मई को दिल्ली में एक दिन मे सबसे ज़्यादा 10,985 टेस्ट हुए थे।

कम टेस्ट

उसके बाद इसमे फिर कमी आ गई। अगले एक हफ़्ते यह संख्या दो हज़ार से पांच हज़ार के बीच रही। 10 मई को 9,584 टेस्ट हुए। उसके बाद दिल्ली में रोज़ाना टेस्ट का ये सिलसिला धीमा पड़ गया।

सरकार के आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक़ दिल्ली प्रति दस लाख लोगों पर कोरोना के टेस्ट करने के मामले में सबसे ऊपर है।

दिल्ली का हाल

ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़़, दिल्ली मे 12 जून 2020 तक कुल 2,77,463 लोगों की कोरोना की जाँच की गई है। इनमें से 36,824 कोरोना प़ॉज़िटिव पाए गए हैं।
दिल्ली की आबादी और कोरोना टेस्ट के अनुपात के हिसाब से देखें तो लगता है कि दूसरे राज्यों के मुक़ाबले दिल्ली में कोरोना से बेहतर ढंग से लड़ा जा रहा है।
दिल्ली में प्रति दस लाख आबादी पर 14,003 लोगों की जांच हो रही है। प्रति दस लाख लोगों पर 1751 लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए गए हैं।

ग़ौरतलब है कि प्रति दस लाख पर कोरोना पॉज़िटिव पाए जाने का राष्ट्रीय औसत लगभग 224 है। इस हिसाब से देखने पर दिल्ली की हालत बहुत ही ख़राब लगती है। दिल्ली में कोरोना से मौत का आंकड़ा 3.3 फ़ीसद है। ठीक होने वालों का प्रतिशत 36.38 तो एक्टिव रहने वाले मरीज़ों का प्रतिशत 60.32 है। पिछले एक महीने में दिल्ली में 5 फ़ीसदी की दर से कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र की आबादी 12,21,53000 हैं। वहाँ अभी तक कुल 6,26,521 कोरोना के टेस्ट हुए हैं। वहां प्रति दस लाख आबादी पर 5129 लोगों की टेस्टिंग हो रही है। जबकि प्रति दस लाख पर कोरोना प़ॉज़िटिव पाए जाने वालों का आँकड़ा क़रीब 800 है।
कोरोना से मौत का आँकड़ा 3.68 फ़ीसद है। ठीक होने वालों का प्रतिशत 47.19 तो एक्टिव रहने वाले मरीज़ों का प्रतिशत 49.14 है। पिछले एक महीने में महाराष्ट्र में 3 फ़ीसदी की दर से कोरोनो के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। 

तमिलनाडु

वहीं तमिलनाडु की आबादी 7,56,93000 है। वहां अभी तक कुल 6,55,675 कोरोना के टेस्ट हुए हैं। वहाँ प्रति दस लाख आबादी पर 8,662 लोगों की टेस्टिंग हो रही है। जबकि प्रति दस लाख पर कोरोना प़ॉज़िटिव पाए जाने वालों का आंकड़ा क़रीब 511.44 है। कोरोना से मौत का आंकड़ा 0.9 फ़ीसद है।
ठीक होने वालों का प्रतिशत 53.48 तो एक्टिव रहने वाले मरीज़ों का प्रतिशत 45.62 है। पिछले एक महीने में तमिलनाडु में 5 फ़ीसदी की दर से कोरोनो के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। 

रोज़ाना होने वाले टेस्ट के हिसाब से देखें तो महाराष्ट्र में लॉकडाउन के अख़िरी दिन यानी 31 मई को 14,516 टेस्ट हुए थे। अगले दिन पहली जून को सिर्फ 9,167 टेस्ट ही हुए। 12 जून को 15,731 टेस्ट हुए हैं। इसी तरह तमिलनाडु में लॉकडाउन के अख़िरी दिन यानी 31 मई को 12,807 टेस्ट हुए थे। अगले दिन पहली जून को सिर्फ 11,377 टेस्ट ही हुए। 12 जून को वहां 18,231 टेस्ट हुए।

कोरोना के टेस्ट के मामले में बिहार सबसे फिसड्डी साबित हो रही है। वहाँ प्रति दस लाख आबादी पर महज़ 947 टेस्ट हुए हैं।

बिहार

बिहार की आबादी 11,95,20000 हैं। वहाँ अभी 1,13,225 टेस्ट हुए हैं। कुल कोरोना मरीज़ 6,043 हैं। इनमें 3,316 लोग ठीक हो चुके हैं जबकि 2692 एक्टिव हैं। प्रति दस लाख पर 51 लोग पॉज़िटिव पाए गए हैं। मौत का आँकड़ा 0.58 फ़ीसदी है। राज्य में 4 फ़ीसदी की दर से कोरोना के मरीज़ बढ़ रहे हैं।

बिहार के बाद उत्तर प्रदेश है। 22,49,79000 की आबादी वाले राज्य में अभी तक सिर्फ़ 4,20,669 ही टेस्ट हुए हैं। राज्य में प्रति दस लाख लोगों पर सिर्फ 1,870 लोगों का ही टेस्ट हुआ है और 54 लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए गए हैं। राज्य में मौत का आँकड़ा 2.85 फ़ीसदी है और कोरोना मरीज़ों के बढ़ने की रफ़्तार 3 फ़ीसदी है। यूपी में पहली जून के बाद से क़रीब 10 ह़जार के औसत से रोज़ाना टेस्ट हो रहे हैं।   

सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर दिल्ली सरकार को कम टेस्ट करने के लिए फटकार लगाता है तो उसकी नज़र यूपी, बिहार जैसे राज्यों पर क्यों नहीं पड़ती।
इनके अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में भी काफ़ी कम टेस्ट हुए हैं। पश्चिम बंगाल की सरकार को तो केंद्र ने नोटिस तक भेजे लेकिन बाक़ी राज्य सरकारों के कम टेस्ट को केंद्र सरकार भी नज़रअंदाज़ कर रही है और सुप्रीम कोर्ट भी ख़ामोश है।

जहाँ तक शवों की दुर्गति का सवाल है तो यूपी से भी एक सरकारी कर्मचारी के शव को कूड़े की गाड़ी में डालकर ले जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में एक कोरोना मरीज़ की शौचालय में मौत और कई दिन तक उसके शव के वहीं पड़े रहने का मामला भी सामने आया है। इन सब मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।

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यूसुफ़ अंसारी

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