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दिल्ली दंगा: नये वीडियो में दिखा, छत से गोलियां चला रहे दंगाई

इन दिनों दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े कई वीडियो एक के बाद एक सामने आ रहे हैं। एक नये वीडियो में दिख रहा है कि दंगाइयों ने युमना विहार इलाक़े के मोहन नर्सिंग होम एंड हॉस्पिटल पर कब्जा कर लिया है। ये दंगाई छतों से सड़क की दूसरी ओर चांदबाग वाले इलाक़े में नागरिकता क़ानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर बोतलें फेंक रहे हैं। एनडीटीवी के मुताबिक़ यह वीडियो 24 फ़रवरी का है। 

वीडियो में देखा जा सकता है कि दंगाइयों में शामिल कई लोगों ने हेलमेट पहना हुआ है, मास्क लगाया हुआ है। हेलमेट पहना हुए एक दंगाई रुक-रुक कर भीड़ पर फ़ायरिंग कर रहा है। वीडियो में कई दंगाइयों के चेहरे साफ देखे जा सकते हैं। यमुना विहार हिंदू बहुल आबादी वाला इलाक़ा है जबकि चांदबाग में मुसलिम आबादी बड़ी संख्या में है। 

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एनडीटीवी के मुताबिक़, हॉस्पिटल की ओर से कहा गया है कि उन्होंने 24 फ़रवरी को दिन में 3.30 बजे हॉस्पिटल को खाली करा लिया था और इसके बाद भीड़ ने छत पर कब्जा कर लिया होगा। हॉस्पिटल के स्टाफ़ ने कहा है कि भीड़ अपने साथ सीसीटीवी की फ़ुटेज भी ले गयी। एनडीटीवी की ओर से इस मामले में भजनपुरा पुलिस स्टेशन के अधिकारियों से भी बात की गई लेकिन उन्होंने मामले की जांच को लेकर पूछे गये सवालों का जवाब नहीं दिया। 

अब यह देखने में आ रहा है कि दिल्ली पुलिस दंगों के दौरान ख़ुद को विक्टिम यानी पीड़ित पक्ष के रूप में पेश कर रही है। एक ताज़ा वीडियो में भी देखा जा सकता है कि प्रदर्शनकारियों की भीड़ पुलिस पर पत्थर फेंक रही है और पुलिसकर्मी जान बचाने के लिये भाग रहे हैं। यह वीडियो दिल्ली पुलिस की दयनीय छवि पेश करता है।

अवैध असलहों का बेज़ा इस्तेमाल

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर दिल्ली में हुए दंगों में 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें से एक दर्जन से ज़्यादा लोगों की मौत गोली लगने से हुई है। इसके अलावा 97 लोग भी गोली लगने से घायल हुए हैं। इसका सीधा मतलब है कि दंगों में बड़ी संख्या में अवैध असलहों का इस्तेमाल किया गया। क्या राजधानी की पुलिस को यह जानकारी नहीं है कि यहां लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में अवैध असलहों को इकट्ठा किया हुआ है। 

गृह मंत्रालय के पास जवाब नहीं

दंगों में यह पहली बार देखा गया कि इतने बड़े पैमाने पर अवैध हथियारों का इस्तेमाल हुआ। आख़िर ट्रंप के दौरे से पहले पुलिस क्या कर रही थी। क्यों नहीं उसने इलाक़े के अपराधियों को जेल में ठूंसा। दंगाइयों ने छत पर कब्जा कर लिया, उन्होंने तीन दिन में 50 से ज़्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया, हज़ारों घरों-दुकानों-गाड़ियों में आग लगा दी लेकिन पुलिस कहां थी और क्या कर रही थी, इसका कोई जवाब केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास नहीं है।  

कई ख़बरों में कहा गया है कि दंगाई स्थानीय नहीं थे। वे बाहर से आकर तीन दिन तक राजधानी में दंगा करते रहे लेकिन पुलिस उन्हें क़ाबू में नहीं कर सकी।

पुलिस पर सवाल यह भी उठ रहा है कि उसने दंगाइयों को नियंत्रित करने में इतनी काहिली क्यों दिखाई। वह यह बताने की कोशिश क्यों कर रही है कि दंगाइयों ने उसे घेर लिया था और उस पर हमला कर दिया गया। ऐसे में पुलिस से दंगाइयों से सख़्ती से निपटने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। कोई कैसे पुलिस पर भरोसा करेगा। 

क़ानून व्यवस्था को बनाये रखने, उपद्रवियों-दंगाइयों पर नकेल कसने की जिम्मेदारी पुलिस की है और ऐसे में पुलिस ख़ुद को असहाय दिखायेगी, पीड़ित दिखाने की कोशिश करेगी तो क़ानून-व्यवस्था तो पूरी तरह ढह जायेगी।
पुलिस भड़काऊ भाषण देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिये भी तैयार नहीं है। आप विधायक अमानतुल्ला ख़ान और बीजेपी नेता कपिल मिश्रा पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है, लेकिन ये दोनों आज भी खुले बाहर घूम रहे हैं। 
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ख़ुफिया तंत्र पूरी तरह नाकाम?

दिल्ली में जिस दिन दंगा शुरू हुआ, आख़िर उसी दिन पुलिस को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश क्यों नहीं दिया गया आख़िर क्यों तीन दिन तक दंगाइयों को जो मन में आया वह करने की छूट दी गई। पुलिस ने पहले ही दिन दंगाइयों को पकड़कर जेल में क्यों नहीं ठूंसा। इस तरह की ख़बरें आई हैं कि दंगाइयों ने बड़ी संख्या में देसी तमंचे, पेट्रोल बम, पत्थर इकट्ठे किये थे। यह उस दौरान हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप दिल्ली में थे। ऐसे में ख़ुफ़िया तंत्र क्या कर रहा था, क्या उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि दंगाइयों ने इतने बड़े पैमाने पर तैयारियां की हुई हैं। 
दंगाग्रस्त इलाक़े शिव विहार में कुछ स्कूलों को आग लगा देने वाले दंगाइयों ने बाक़ायदा स्कूल में उतरने के लिये रस्सियों का सहारा लिया। सवाल उठता है कि क्या दंगाई प्रोफ़ेशनल थे और क्या उन्हें सुरक्षा बलों के जवानों की तरह ट्रेनिंग दी गई थी, जो वे रस्सियों के सहारे पांच मंजिला मकान की छत से स्कूल में उतर गये। इसका सीधा मतलब यही हुआ कि राजधानी की पुलिस और ख़ुफिया तंत्र दंगाइयों पर क़ाबू पाने में पूरी तरह नाकाम रहा और अब पुलिस आए दिन सामने आ रहे वीडियो से यह साबित करने में जुटी है कि उस पर ख़ुद ही हमला हो गया और वह भी पीड़ित पक्ष है। 
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क़मर वहीद नक़वी

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