लॉकडाउन के बाद बेरोज़गारी दर काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है। 30 मार्च से 5 अप्रैल के दौरान यानी छह दिन में बेरोज़गारी दर बढ़कर 23.4 प्रतिशत हो गई है। जबकि पूरे मार्च महीने में यह दर 8.7 फ़ीसदी थी। मार्च का यह आँकड़ा 43 महीनों में सबसे ज़्यादा था। ये आँकड़े सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई ने जारी किए हैं। बता दें कि बेरोज़गारी दर का आँकड़ा जुलाई 2017 से लगातार बढ़ता ही रहा है तब यह दर सिर्फ़ 3.4 फ़ीसदी थी।
सीएमआईई के अनुसार, मार्च महीने से पहले फ़रवरी में बेरोज़गारी की यह दर 7.7 फ़ीसदी और जनवरी में यह 7.1 फ़ीसदी रही थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि श्रम भागीदारी दर 36 प्रतिशत तक गिर गई है। फ़रवरी में श्रम भागीदारी दर 42.6 प्रतिशत और पिछले साल मार्च में 42.7 प्रतिशत थी। बता दें कि 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद से मज़दूरों की उपलब्धता काफ़ी कम हो गई है और इसलिए इनकी भागीदारी गिर गई है।
सरकार ने कोरोना वायरस पर नियंत्रण करने के लिए 24 मार्च को पूरे देश भर में लॉकडाउन की घोषणा की थी। यह 14 अप्रैल को पूरा हो रहा है। हालाँकि संभावना जताई जा रही है कि इसे अभी और भी बढ़ाया जा सकता है। कोरोना वायरस काफ़ी तेज़ी से संक्रमित करने वाला वायरस है और इसलिए लॉकडाउन जैसा फ़ैसला उठाया गया है जिससे लोग सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर सकें।
लॉकडाउन जैसा कड़ा क़दम इसलिए उठाया गया है क्योंकि इस वायरस का इलाज नहीं ढूँढा जा सका है और अर्थव्यवस्था को बचाने से पहले लोगों की ज़िंदगियों को बचाने की ज़रूरत है। इसी कारण पूरी दुनिया भर के कई देशों में लॉकडाउन का सहारा लिया गया है। इस लॉकडाउन का असर अर्थव्यवस्था पर बुरी तरह पड़ रहा है। हालाँकि लॉकडाउन से पहले ही कोरोना वायरस जब काफ़ी तेज़ी से फैल रहा था तभी अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ने लगा था और आशंका जताई गई थी कि इसका असर काफ़ी ज़्यादा होगा। अब रिपोर्टों में कहा गया है कि दुनिया वैश्विक आर्थिक मंदी की तरफ़ बढ़ चुकी है।
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