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दिल्ली दंगों की वजह से भारत से हाथ खींच सकते हैं विदेशी निवेशक

दिल्ली दंगों की वजह से इसकी पूरी आशंका है कि विदेशी निवेशक अब भारत में निवेश करने से पहले गंभीरता से सोचें और अपने हाथ खींच लें। बिगड़ती अर्थव्यवस्था के बीच एक बात भारत के पक्ष में जाती थी और वह थी राजनीतिक स्थिरता। अब भारत इसका दावा भी नहीं कर सकता है। दिल्ली दंगों की वजह से भारत की छवि खराब हुई और इसका सीधा असर निवेश पर पड़ सकता है।
याद दिला दें कि फ़रवरी के अंतिम हफ़्ते में दिल्ली के कुछ इलाक़ों में सांप्रदायिक दंगे भड़के, जिसमें 47 लोगों की मौत हो गई और 422 लोग बुरी तरह घायल हो गए। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मारे गए जिन लोगों की पहचान अब तक हो सकी है, उसमें कम से कम 28 मुसलमान हैं। 

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ट्रंप के दौरे के समय दंगा

लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि यह वारदात उस समय हुई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर थे और पूरी दुनिया की नज़र भारत की ओर लगी थी।
यह दंगा जिस जगह हुआ, उससे सिर्फ़ कुछ किलोमीटर की दूरी पर डोनल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर रहे थे। ट्रंप ने आख़िरकार भारत में मुसलमानों की स्थिति पर चिंता जता ही दी और जाते जाते भारत को नसीहत दे गए। 

यह भी बेहद बुरी बात है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने दिल्ली दंगों को काफी कवरेज दिया और भारत की जम कर आलोचना की। इससे भारत की फ़जीहत हुई और वह भी ऐसे समय अमेरिकी राष्ट्रपति भारत में मौजूद थे।

निवेशक हैं चिंतित

हॉन्ग कॉन्ग स्थित निवेश प्रबंधन कंपनी एसईआई के एशियन इक्विटीज़ के प्रमुख जॉन लाऊ की प्रतिक्रिया से इसे समझा जा सकता है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक लाऊ ने कहा, 'पिछले चुनाव के समय से ही भारत को लेकर निवेशकों में निराशा की भावना है जो गहरी होती जा रही है।' लाऊ के इस कथन का मतलब इससे समझा जा सकता है कि यह कंपनी 352 अरब डॉलर के निवेश का प्रबंध काम देखती है। 
अमेरिकी निवेश प्रबंध कंपनी विज़डमट्री इनवेस्टमेंट इंक ने कहा कि लगातार तीन दिन तक दिल्ली की सड़कों पर हिंसा होती रही, जो गंभीर चिंता की बात है। यह कंपनी 64 अरब डॉलर के निवेश का काम देखती है।
वेस्टर्न असेट मैनेजमेंट कंपनी ने विरोध प्रदर्शनों पर जनवरी में चिंता जताई थी। इसके पहले उसने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्ज ख़त्म किए जाने के बाद की स्थिति पर भी चिंता जताई थी। यह कंपनी 453 अरब डॉलर के निवेश का काम देखती है।

तनाव कम करे भारत

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़, लंदन स्थित चैथम हाउस के अध्यक्ष जिम ओ नील ने कहा, 'यदि भारत सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए ज़रूरी कदम उठाती है तो उसे जातीय तनावों पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए, हम ऐसी स्थिति की कल्पना करते हैं जिसमें भारत में निवेश रोक दिया जाए।'
बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहते अमेरिका के उप सहायक विदेश मंत्री रही अलीसा एरीज़ ने भी भारत के राजनीतिक उथल-पुथल पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा, 'भारत काफी हद तक टूटा-फूटा है और यह अंदरूनी विभाजनों से ऊपर नहीं उठ पा रहा है।'

डेनमार्क स्थित लीडन यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर साइमन चॉचर्ड इस मुद्दे पर कुछ ज़्यादा साफ़गोई से बात करते हैं। उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से कहा, ‘लोग नकारात्मक सोच वाली सरकारों को पसंद नहीं करते, मोदी ने आर्थिक सुधार करने की अपनी छवि दंगों के इर्द-गिर्द खड़ी की।’ 

वे इसके आगे यह भी कहते हैं कि ‘अर्थव्यवस्था सुधारने वाली मोदी की छवि बदल चुकी है, लोगों का मूड बदल रहा है, स्थितियाँ बदल चुकी हैं।’
भारत के प्रति इस तरह की बातें ऐसे समय कही जा रही हैं जब अर्थव्यवस्था बुरी हालत में है। सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर गिर रही है, मांग, खपत, उत्पादन कम हो रहे हैं। आयात-निर्यात गिर रहा है, कोर सेक्टर का उत्पादन कई सेक्टर में शून्य से नीचे जा चुका है।
 ऐसे में सीएए, एनआरसी, एनपीआर, कश्मीर और इन वजहों से चल रहे विरोध प्रदर्शन से भारत की छवि चौपट हो चुकी है। और अब दिल्ली का दंगा। ऐसे में विदेशी कंपनियों की भारत में दिलचस्पी कितनी कम होगी, इससे समझा जा सकता है।  

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क़मर वहीद नक़वी

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