भारत ने यह साफ़ कर दिया है कि वह रीजनल कॉम्प्रेहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल नहीं होगा। इस क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग संगठन में अब 15 देश होंगे और समझा जाता है कि इस पर अगले साल दस्तख़त हो जाएगे। भारत की चिंता यह है कि चीनी उत्पाद भारतीय बाज़ार पर छा जाएंगे और इससे भारतीय उद्योग व्यवसाय पर इसका बुरा असर पडेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इसकी घोषणा कर दी है। उन्होंने कहा कि यह भारत की चिंताओं या आरसीईपी की मूल भावना और तयशुदा सिद्धांतों को नहीं दर्शाता है।
मोदी ने सोमवार को कहा:
“
जब मैं आरसीईपी समझौते को सभी भारतीयों के हितों से तौलता हूँ तो मुझे सकारात्मक उत्तर नहीं मिलता है। ऐसे में न तो गाँधी जी का मूल मंत्र न ही मेरी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति देती है।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
भारत ने यह फ़ैसला ऐसे समय लिया है जब इसकी अपनी अर्थव्यवस्था धीमी हो चुकी है, लगातार फिसल रही है और मंदी की ओर बढ़ती ही जा रही है।
भारत की आशंका
भारत आरसीईपी की बैठकों में लगातार दूसरे देशों में बाजा़र और सेवा क्षेत्र को खोलने की माँग करता आ रहा है। इस मुद्दे पर काफ़ी खींचतान रही है। भारत में ज़्यादातर लोगों का मानना है कि दूसरे एशियाई देशों, ख़ास कर चीन के उत्पाद भारतीय बाज़ार में पर जाएंगे और इससे पहले से ही धीमी चल रही अर्थव्यवस्था पर और बुरा असर पड़ सकता है।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर एक दिन पहले ही सरकार को घेरा था और उस पर ज़ोरदार हमला किया था। राहुल गाँधी ने कहा था कि आरसीईपी भारत के बाज़ार को सस्ती चीजों से पाट देगा, जिससे रोज़गार के लाखों मौके नष्ट होंगे और भारतीय अर्थव्यवस्था पंगु हो जाएगी।
क्या है आरसीईपी?
रीजनल कॉम्प्रेहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी में दक्षिण एशिया के 15 देश होंगे। यह एक क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग संगठन होगा। इसके सदस्य होंगे ब्रूनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीफीन्स, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड। साल 2017 के एक अध्ययन के अनुसार, आरसीईपी में कुल 3.4 अरब लोग हैं और उनकी अर्थव्यवस्थाओं का कुल नेटवर्थ 49.5 खरब डॉलर था। यह दुनिया की कुल जीडीपी का 39 प्रतिशत था।
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