कोरोना महामारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन का असर यह हुआ कि अर्थव्यवस्था मई से जस की तस ठहरी हुई है। अर्थव्यवस्था की स्थिति बताने वाले 16 में से 14 इंडीकेटर दिखा रहे हैं कि हालत बदतर है।
मई और जून में अर्थव्यवस्था में थोड़ी बहुत गतिशीलता देखी गई, पर वह फिर ठहर गई क्योंकि लॉकडाउन को एक बार फिर सख़्ती से लागू किया गया। लॉकडाउन के पहले की स्थिति पर भी यह आर्थिक गतिविधि नहीं पहुँच पाई।
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इंडीकेटर्स का संकेत?
लाइवमिंट ने कहा है कि चार बड़े इंडीकेटरों ने यह संकेत दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहद बुरी है। परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स यानी पीएमआई, बुनियादी ढाँचा के सेक्टर में विकास, बैंकों से लिया गया ग़ैर खाद्य क़र्ज़ और रेलवे की माल ढुलाई, ये सारे सूचक बता रहे थे कि अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब है। रेलवे की माल ढुलाई में 5 प्रतिशत की कमी हो गई। कोर सेक्टर की वृद्धि में 15 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। फरवरी के बाद से अब तक कोर सेक्टर में वृद्धि नहीं देखी गई है।खपत की स्थिति बदतर हुई और 4 में से तीन इंडीकेटर संकेत दे रहे थे कि हाल खराब है। गाड़ियों की बिक्री जुलाई में बढ़ी, पर यह पिछले साल की इसी अवधि की बिक्री की तुलना में 17 प्रतिशत कम थी।
रेल, विमानन
नागरिक विमानन क्षेत्र की स्थिति अधिक बुरी थी। घरेलू विमान सेवा में पिछले साल की तुलना में 82 प्रतिशत कम यात्री मिले थे। लेकिन इस दौरान ट्रैक्टर की बिक्री बढ़ी। इससे यह समझा जाता है कि कृषि क्षेत्र में स्थिति बेहतर हुई है।लाइवमिंट का कहना है कि इस दौरान मंहगाई में 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। अर्थशास्त्रियों को डर है कि यह स्टैगफ्लेशन की ओर इशारा कर रहा है। स्टैगफ़्लेशन उस स्थिति को कहते हैं जब वृद्धि की रफ़्तार कम हो जाती है लेकिन मंहगाई बढ़ती जाती है।
कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मांग कम होने से मंहगाई की दर अपने आप कम हो जाएगी। लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक की मुद्रा नीति कमेटी ने कहा है कि महंगाई की दर अभी बढ़ती रहेगी। पहले जितना अनुमान था, उससे अधिक समय तक यह वृद्धि होती रहेगी।
रोज़गार
रोज़गार की स्थिति तो और बुरी है। रिज़र्व बैंक ने 802 कंपनियों के औद्योगिक आउटलुक सर्वे के आधार पर कहा है कि रोज़गार की स्थिति अभी नहीं सुधरने वाली है। इस सर्वे में भाग लेने वालों में 29 प्रतिशत लोगों ने कहा कि जून की तिमाही में रोज़गार के मौकों का कम होना जारी रहेगा। इसमें से 8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि रोज़गार की स्थिति में सितंबर की तिमाही तक कोई सुधार नहीं होने को है।निर्यात
मिंट का कहना है कि इस दौरान निर्यात में इज़ाफा हुआ। लेकिन इसकी बड़ी वजह सोने के निर्यात में हुई बढ़ोतरी है। श्रम आधारित उत्पादों के निर्यात में गिरावट जारी है। यह समझा जाता है कि कुल मिला कर निर्यात पिछले साल की तुलना में कम ही रहेगा।यह तो साफ़ है कि अर्थव्यवस्था अभी भी संकट से बाहर नहीं निकली है। इसमें अभी समय लगेगा। इसके ठीक होने में कितना समय लगेगा, यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि संकट कम होने के बजाय एक बार फिर बढ़ता जा रहा है।
कितना नुक़सान हुआ?
लॉकडाउन की वजह से भारतीय अर्थव्यस्था को कितने का नुक़सान हुआ होगा, यह अनुमान लगाना भी मुश्किल है। लेकिन, मैनेजमेंट अध्ययन की संस्था इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस और इम्पीरियल कॉलेज ने मिल कर एक अध्ययन किया और उसके आधार पर अनुमान लगाया है।इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर में कहा गया है कि इस अनुमान के मुताबिक़, एक शहर में एक सप्ताह में औसतन 10 हज़ार करोड़ से 14,900 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ।
इसकी वजह उस जगह की उत्पादकता में 58 प्रतिशत से लेकर 83.4 प्रतिशत तक की कमी आई।
लॉकडाउन अभी भी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है, लेकिन यदि यह मान लिया जाए कि 25 अप्रैल से शुरू हुआ लॉकडाउन 31 मई को ख़त्म हो गया तो लॉकडाउन 66 दिन रहा। इस आधार पर जो रकम बैठेगी, उसका अनुमान भी लगाना मुश्किल है, पर समझा जाता है कि वह कई ट्रिलियन डॉलर होगी। यह अनुमान लगाया गया है कि यदि जनसंख्या के 20 प्रतिशत लोगों की कोरोना जाँच कराई जाए तो हर हफ़्ते 200 करोड़ से 317 करोड़ रुपए का खर्च बैठेगा।
यह तो उस समय का अनुमान है। लेकिन सच तो यह है कि अभी आर्थिक गतिविधियाँ लॉकडाउन के पहले के स्तर तक कहीं नहीं पहुँची हैं। इसलिए यह अनुमान उसी समय यानी जून तक का है। वास्तविक नुक़सान उससे बहुत अधिक हुआ है। इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।
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