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चीन-अमेरिका लड़ाई में फँसी 5 जी टेक्नोलॉजी को कैसे उबारेंगे मोदी?

वह दिन दूर नहीं जब आप अपने मोबाइल फ़ोन पर बहुत तेज़ रफ़्तार से वीडियो देख सकेंगे, जो फ़िल्म डाउनलोड करने में अभी 5-7 मिनट लगते हैं, वह आप 30-40 सेकंड में डाउनलोड कर सकेंगे, बिहार का बेहद पिछड़ा गाँव हो या अरुणाचल का सुदूर इलाक़ा, बग़ैर किसी रुकावट के टेलीफ़ोन पर बात कर सकेंगे। बस कुछ महीनों की बात है। यह 5 जी यानी फ़िफ़्थ जेनरेशन मोबाइल प्रौद्योगिकी से मुमकिन हो सकेगा। 5 जी सेवाओं का परीक्षण इस साल सितंबर में शुरू हो सकता है। अगले साल यह विधिवत चालू कर दिया जाएगा, यह उम्मीद फ़िलहाल की जा रही है।
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इन उम्मीदों पर पानी फिर सकता है क्योंकि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इस पर अड़े हुए हैं कि भारत यह प्रौद्योगिकी अमेरिका से ही ले। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार चाहती है कि यह टेक्नोलॉजी चीन से ली जाए और इस बहाने पूरी अर्थव्यवस्था को एक मजबूत आधार दिया जाए। 
5 जी का सारा मामला स्पीड का है। इसे केंद्र सरकार के दावे से ही समझा जा सकता है। सरकार का दावा है कि 5 जी में नेटवर्क डाटा स्पीड 2-20 गीगाबाइट प्रति सेकंड होगी, जबकि मौजूदा 4 जी की अधिकतम स्पीड 6-7 मेगावाट प्रति सेकंड है। यानी, डाटा स्पीड 14 गुणा बढ़ जाएगी।

क्या फ़ायदा है?

5 जी टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा फ़ायदा स्पीड का है। घंटों का काम मिनटों में और मिनटों का काम सेकंडों में हो जाएगा। इसके अलावा ग्राफ़िक्स बहुत ही साफ़ दिखेगा। इसमें दिक़्क़त सिर्फ यह है कि इसके लिए आपको नया मोबाइल हैंड सेट खरीदना होगा, जो 5-जी टेक्नोलॉजी के मुफ़ीद हो। 

लेकिन 5 जी का लाभ सिर्फ़ मोबाइल वाले उठा सकते हैं, ऐसा नहीं है। यह टेक्नोलॉजी इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स यानी आईओटी जैसे बिल्कुल नई और तेज़ी से उभर रही प्रौद्योगिकी का आधार बन सकता है। इसके अलावा बग़ैर ड्राइवर के चलने वाली गाड़ियाँ, दूर बैठे सर्जरी करने और मशीन कम्यूनिकेशन भी इसी प्रौद्योगिकी पर काम करते हैं। इन तमाम प्रौद्योगिकी के लिए लो लैटेन्सी चाहिए। एक जगह से दूसरी जगह  तक किसी डाटा के जाने में जो समय लगता है, उसे लैटेन्सी कहते हैं। यानी ऐसी टेक्नोलॉजी जिसमें डाटा के ट्रांसफ़र होने में कम समय की ज़रूरत हो, 5 जी पर निर्भर हो सकती हैं।

अड़चनें क्या हैं?

भारत में 5 जी टेक्नोलॉजी के शुरू होने में तकनीकी नहीं, राजनीतिक और व्यवसायिक अड़चने हैं। लेकिन ये अड़चनें बेहद मजबूत हैं। मौजूदा समय में भारत में दूरसंचार के क्षेत्र में काम करने वाली ज़्यादातर कंपनियाँ 3 जी पर निर्भर हैं। वे नहीं चाहतीं कि 5 जी आए, क्योंकि इसके लिए बहुत पैसे चाहिए। 
भारती टेलीकॉम और एअरटेल जैसी कंपनियाँ 5 जी का मुखर विरोध कर रही हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें जो पैसे लगेंगे, उसकी वसूली होने में बहुत समय लग जाएगा।

लेकिन रिलायंस इसके पक्ष में है। उसने जिओ के बहाने इस मामले में बढ़त हासिल कर ली है। यह व्यवसायिक लड़ाई अंत में वह लॉबी जीत लेगी, जो सरकार के नज़दीक है। पर अभी तो विरोध हो ही रहा है। इसलिए हो सकता है कि 5 जी के शुरू होने में देर हो। 

भारत-चीन-अमेरिका त्रिकोण

दूसरी  वजह अंतरराष्ट्रीय राजनीति है।  इसे भारत-चीन-अमेरिका के त्रिकोण और उनके बीच के रिश्ते से समझना होगा। 5 जी टेक्नोलॉजी में फ़िलहाल चीनी कंपनी ह्वाबे आगे है। लेकिन वह ट्रंप प्रशासन की आँख की किरकिरी बनी हुई है। 

अमेरिका ने ह्वाबे पर प्रतिबंध लगा रखा है। समझा जाता है कि इसकी वजह यह है कि ट्रंप सैमसंग और नोकिया जैसी कंपनियों का समर्थन करता चाहते हैं क्योंकि उनके संयंत्र अमेरिका में हैं।
ह्वाबे अमेरिका में घुसी तो इसका फ़ायदा चीन को होगा जबिक चीन और अमेरिका की बीच बाक़ायदा घोषित व्यापार युद्ध चल रहा है। इसके तहत अमेरिका ने चीन के 300 अरब डॉलर के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया तो चीन ने भी 65 अरब डॉलर मूल्य के अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया।
भारत इसमें फँसा हुआ है क्योंकि उसने यदि ह्वाबे को अपने यहाँ काम करने की अनुमति दे दी तो इसे चीन का समर्थन करना माना जाएगा। इससे वाशिंगटन नाराज़ हो जाएगा। 

चीनी सेना का कनेक्शन

ह्वाबे पर यह आरोप लगाया जाता है कि चूँकि वह चीन सरकार के नियंत्रण की कंपनी है, बीजिंग इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर दूसरे देश में बड़ी आसानी से जासूसी कर सकेगा। 

ह्वाबे की कई परियोजनाओं में कुछ ऐसे लोग काम करते हैं जो चीनी सेना से जुड़े हुए हैं या पहले जुड़े हुए थे। यह भी कहा जाता है कि चीन के कई सरकारी विश्वविद्यालय कई परियोजनाओं पर ह्वाबे के साथ काम कर रहे हैं। भारत में भी ह्वाबे का विरोध इसी आधार पर हो रहा है।

चीन मजबूत करे भारतीय अर्थव्यवस्था

समझा जाता है कि नरेंद्र मोदी सरकार इस मुद्दे पर ह्वाबे के पक्ष में है, हालाँकि वह बहुत फूँक-फ़ूँक कर कदम बढ़ा रही है। मोदी सरकार चाहती है कि ह्वाबे को अनुमति देकर चीन से दूसरे क्षेत्र में रियायत ली जाए। चीन के पास बहुत फालतू पैसे हैं, संसाधन हैं, उत्पाद हैं और सस्ती टेक्नलॉजी है। वह उन्हें कम कीमत पर देने को तैयार है।
भारत सरकार की कोशिश है कि चीन से निवेश कराया जाए, टेक्नोलॉजी ली जाए और भारत को उत्पादन केंद्र बनाया जाए। यह ऐसा उत्पादन केंद्र हो जहाँ चीनी कंपनियाँ संयंत्र खोले और उसका उत्पाद यूरोप, लैटिन अमेरिका और अफ़्रीका को बेचे।

इससे भारत में बहुत बड़ी तादाद में रोज़गार के मौके बनेंगे और खरबों डॉलर का निवेश हो सकेगा। 

इस तरह 5 जी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में तुरुप का पत्ता बना हुआ है। इसका इस्तेमाल कर भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपनी जगह और मजबूत करना चाहता है और अपनी पूरी अर्थव्यवस्था को बदलना चाहता है। लेकिन इसका नतीजा आने में समय लगेगा। 

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क़मर वहीद नक़वी

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