सरकार की ओर से दिए ऑडिट स्टेटमेंट के अनुसार सिर्फ 5 दिन में इस कोष में 3,076 करोड़ रुपए जमा कराए गए। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इस पर पूछा है कि इन उदार दानदाताओं के नाम क्यों नहीं उजागर किए जा रहे हैं।
पिछली तिमाही में भारत की जीडीपी विकास दर -23.9 रही है। रिपोर्ट है कि अगली तिमाही में भी यह नकारात्मक रहेगी। यानी 40 साल में पहली बार भारत आर्थिक मंदी की चपेट में जा चुका होगा।
चार गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने बगाव़त करते हुए केंद्र सरकार से साफ़ शब्दों में कहा है कि उसके पास पैसे नहीं है तो वह बाज़ार से क़र्ज़ लेकर उन्हें पैसे दे, पर उन्हें हर हाल में पैसे चाहिए।
सबसे तेज़ वृद्धि दर वाली जीडीपी कुछ ही वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है। विकासशील देशों पर या जी-7 देशों पर नज़र डाली जाए तो साफ दिखता है कि -23.9 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ यह स्पेन से भी नीचे जा चुका है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आँकड़े बता रहे हैं कि कभी सबसे तेज़ी से तरक्क़ी कर रही अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने वाला भारत अब दुनिया की सबसे तेज़ी से नीचे गिर रही अर्थव्यवस्था बन गया है।
पूंजी बाज़ार ने शायद यह पहले ही मान लिया है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी पहले से बहुत कम होगी। यह इससे समझा जा सकता है कि बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदनशील सूचकांक सेंसेक्स पहले ही 899.12 अंक गिरा।
जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद पर आम जनता ही नहीं, बैंक व वित्तीय संस्थाएं, उद्योग जगत, पूंजी बाज़ार, विदेश निवेशक, विदेशी क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी सबकी नज़र रहती है। क्यों? आख़िर क्या होता है जीडीपी?
क्या भारतीय जनता पार्टी ने जानबूझ कर देश की आर्थिक स्थिति की ग़लत तसवीर पेश की? क्या उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पुराने आँकड़ों को मौजूदा आर्थिक स्थिति कह कर पेश किया है?
देश की जीडीपी में तेज़ गिरावट आई तो उसका आम इंसान की ज़िंदगी पर क्या फ़र्क पड़ेगा? भारत को फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर यानी पाँच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने का क्या होगा और इस हालत से उबरने का रास्ता क्या है?
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने कोरोना महामारी को ही ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ कहा है। ऐसा कहकर बीते छह सालों में लगातार गिरती अर्थव्यवस्था के वाजिब कारणों को पहचाने से भी बचने की कोशिश कर रही है केंद्र सरकार।