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रिज़र्व बैंक ने माना, अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने में अभी लगेगा समय

सरकार की तमाम घोषणाओं, दावों और उपायों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था का संकट बढ़ता ही जा रहा है। इसके पटरी पर लौटने की फ़िलहाल कोई गुंजाइश नहीं दिखती है और इसमें अभी समय लगेगा। भारतीय रिज़र्व बैंक ने आधिकारिक तौर पर यह मान लिया है और कहा है कि अर्थव्यवस्था को दुरुस्त होने में अभी समय लगेगा। 
बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019-2020 की अपनी सालाना रिपोर्ट में यह भी माना है कि कोरोना महामारी की वजह से जो आर्थिक स्थिति बिगड़ी, उसकी सबसे ज़्यादा मार उन लोगों पर पड़ी है जो सबसे अधिक ग़रीब थे।
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कोरोना अर्थव्यवस्था

सालाना रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने कहा है कि घरेलू खपत बुरी तरह गिरी है, उसे एक ज़ोरदार झटका लगा है। बैंक ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के जो लक्षण मई-जून में दिखे थे, वे जुलाई-अगस्त आते-आते कमज़ोर पड़ गए। इसकी वजह लॉकडाउन को सख़्ती से लागू करना है। ऐसा लगता है कि अर्थव्यस्था का सिकुड़ना इस वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में भी जारी रहेगा।
रिज़र्व बैंक ने माना है कि घरेलू खपत में सुधार आने के बाद ही अर्थव्यवस्था ठीक हो सकती है। दूसरी ओर सरकारी खपत जारी रहेगी और वह मुख्य रूप से कोरोना से जुड़े मामलों में होगी।

कमज़ोर अर्थव्यवस्था

भारतीय रिज़र्व बैंक ने कहा है कि इंडीकेटरों को देख कर लगता है कि अर्थव्यवस्था से जुड़े कामकाज में कमी बनी रहेगी। यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब कई रेटिंग एजेन्सियों ने कहा है कि चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। 
याद दिला दें कि रिज़र्व बैंक ने मार्च से अब तक वित्त बाज़ार में 10 लाख करोड़ रुपए डाले हैं। उसने इसके साथ ही जिन दरों पर बैंकों को क़र्ज़ देता है, उसमें कटौती की है। पर इन प्रयासों का कोई ख़ास नतीजा नहीं दिखा और इन उपायों के बावजूद अर्थव्यवस्था बदहाल है।

सर्वे

अर्थव्यवस्था की बदहाली का अंदाज ख़ुद रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षणों से लगाया जा सकता है। केंद्रीय बैंक ने जुलाई में जो सर्वे किया था, उसमें यह पता लगा था कि उपभोक्ताओं का भरोसा रिकार्ड निचले स्तर पर है। रोज़गार, महंगाई, आय वगैरह तमाम मामलों में स्थिति दिखी थी।
रिज़र्व बैंक का कहना है कि कोरोना की वजह से समाज और अर्थव्यवस्था में एक नई तरह की असमानता दिखी है। यह असमानता व्हाइट कॉलर जॉब और ब्लू कॉलर जॉब में रोज़गार के मौकों को लेकर उभरी है।

ब्लू कॉलर जॉब वालों को अधिक दिक्क़त

व्हाइट कॉलर जॉब यानी ऑफिस वगैरह में बैठ कर अच्छा काम करने वालों के पास यह विकल्प था कि वे घर से काम कर सकते हैं। कई लोगों ने ऐसा किया और इस तरह बेरोज़गारी से दूर रहे, उन्हें पैसे मिलते रहे। लेकिन ब्लू कॉलर जॉब यानी छोटा-मोटा काम करने वाले और ऐसे लोग जो साइट पर जा कर ही काम कर सकते हैं, उनके पास घर से काम करने का विकल्प नहीं रहा। उन्हें काम नहीं मिला, उनकी रोजी-रोटी छिन गई।
होटल, रेस्तरां, पर्यटन, हवाई जहाज़ वगैरह में यह ज़्यादा साफ़ दिखा और उन क्षेत्रों में काम करने वालों को अधिक दिक्क़तें हुई हैं। रिज़र्व बैंक ने इसे मानते हुए कहा है, 'जो सबसे ग़रीब थे, उन पर सबसे ज़्यादा चोट पड़ी है।'
रिज़र्व बैंक ने कहा कि इन तमाम बातों के बीच उम्मीद की किरण यह दिखी कि जून 2020 में सामान ले जाने के लिए बनने वाले ई-बिल के पैसे में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। यानी, सामानों की खपत बढ़ी और इससे सरकार को पहले से अधिक पैसे मिले। लेकिन इसके अगले महीने जुलाई में इसमें सिर्फ 11.4 प्रतिशत की बढ़त हुई, यानी खपत और सरकार को मिलने वाले राजस्व में बढ़त बहुत ही कम देखी गई।
लॉकडाउन से तबाह भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले दो साल यानी 2020-2021 के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर 1 प्रतिशत से थोड़ी अधिक होगी। 
जून महीने में भारत आई अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा था कि 2020-2021 के दौरान भारत की जीडीपी 1 प्रतिशत से थोड़ी तेज़ रफ़्तार से बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि यह बहुत मजबूत वृद्धि दर नहीं है, पर दूसरे कई देशों में भी ऐसा ही होने की संभावना है। 
इसके पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा था कि साल 2020 में भारत में आर्थिक मंदी पहले के अनुमान से ज़्यादा होगी। नतीजतन, भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति बदतर होगी। 
लॉकडाउन की वजह से अप्रैल महीने में पूरे देश में औद्योगिक उत्पादन आधे से भी कम हुआ क्योंकि ज़्यादातर ईकाइयों में उत्पादन शून्य रहा। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आँकड़ों से पता चला कि अप्रैल में उत्पादन में 55.50 प्रतिशत की कमी आई। इसके पहले यानी मार्च में औद्योगिक उत्पादन में 16.70 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। 
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क़मर वहीद नक़वी

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