लेकिन इसके अलावा एक सवाल और है और अधिक महत्वपूर्ण है कि क्या सरकार अमेरिकी दबाव में आकर भारत के वित्तीय क्षेत्र को पहले से ज़्यादा उदार बना रही है?
सरकार को मिलेंगे 2 लाख करोड़
केंद्र सरकार ने साल 2020 में सार्वजनिक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेच कर 1.05 लाख करोड़ रुपए उगाहने का लक्ष्य तय कर रखा है। सरकार अब तक 18,094.59 करोड़ रुपए की जायदाद बेच चुकी है। वित्त मंत्री ने एलान किया कि सरकार इसके लिए आईपीओ यानी इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग बाज़ार में लाएगी, यानी अपने शेयर खुले बाज़ार में बेचेगी और कोई भी आवेदन कर शेयर खरीद सकता है।तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018 में कहा था कि जीवन बीमा निगम की कुल परिसंपत्ति लगभग 22.10 लाख करोड़ रुपए है। यह उस साल के सकल घरेलू उत्पाद का 15 प्रतिशत था। बीते साल एलआईसी को 40,000 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफ़ा हुआ।
यदि जीवन बीमा निगम की कुल परिसंपत्ति 22.10 लाख करोड़ रुपए भी मान ली जाए और सरकार अगर उसका 10 प्रतिशत भी बेच दे, तो उसे 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक मिल जाएंगे। यह सरकार के कुल लक्ष्य से ज़्यादा है।
भारत-अमेरिका रिश्तों की उलझनें
दूसरी अहम बात है कि अमेरिका-भारत व्यापार रिश्ते बुरे दौर से गुजर रहे हैं। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ की नीति पर चलते हुए भारत को जनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ़ प्रीफरेंसेज़ से बाहर कर दिया, यानी भारत के आयात को मिलने वाली करों में छूट ख़त्म कर दी गई। भारत ने इस पर पलटवार करते हुए कुछ अमेरिकी उत्पादों के आयात पर अतिरिक्त शुल्क लगा दिया।अमेरिका चाहता है, भारत वित्तीय क्षेत्र में सरकारी कंपनियों से निकले, निजी क्षेत्रों को मौका दे। ऐसा हुआ तो अमेरिकी कंपनियाँ सीधे या भारत की किसी कंपनी के साथ मिल कर कुछ हिस्सा खरीद लें और यहाँ व्यवसाय करे।
सुधार की प्रक्रिया
नरसिंह राव के जमाने में जब आर्थिक सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई तो उस समय भी बीजेपी ने उसका विरोध नहीं किया था। दोनों में तुलना की जाए तो बीजेपी की आर्थिक नीतियाँ कांग्रेस से अधिक उदारवादी रही हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि वह इस सुधार को और आगे ले जाए।मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में राजनीतिक कारणों से सुधार प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया। पर अब जब वह मजबूत स्थिति है, लोकसभा में उसके ख़ुद के पास 300 से अधिक सीटें हैं, अधिकतर राज्यों में उसकी सरकार है, वह इस तरह का जोखिम उठा सकती है।
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