ज़िला विकास परिषद
नई व्यवस्था के तहत हर ज़िले में 14 चुनाव क्षेत्र होंगे, जिनके प्रतिनिधि उसी क्षेत्र से चुने जाएंगे। पहले ज़िला विकास बोर्ड होता था, जिसकी अध्यक्षता एक कैबिनेट मंत्री करता था। इस बोर्ड में विधायक, एमएलसी और सांसद होते थे।ज़िला बोर्ड के पास विकास की योजना बनाने और उसे लागू करने के अधिकार होते थे। उसे पैसे राज्य सरकार या केंद्रीय स्कीम से मिलते थे। ज़िला परिषद स्वयं योजना बनाएगा और पैसे खर्च करेगा। म्युनिसपल इलाक़ों को छोड़ पूरा ज़िला उसके अधिकार क्षेत्र में होगा।
तीसरे स्तर का निकाय
इंडियन एक्सप्रेस ने एक सरकारी अधिकारी के हवाले से कहा है कि इसका मक़सद स्थानीय स्तर पर राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करना है। इससे तीसरे स्तर के स्थानीय निकायों को मजबूती मिलेगी। पर इससे दूसरे स्तर के निकाय यानी राज्य या केंद्र-शासित क्षेत्र का महत्व कम होगा।“
'इसका मक़सद पूरी व्यवस्था को अराजनीतिक बना देना है ताकि कोई भी सामूहिक स्वर नहीं बचा रहे। कोशिश यह है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की कोई राजनीतिक आवाज़ न बचे। इस व्यवस्था में सबकुछ अंत में अफ़सरशाही के हाथों में रहेगा।'
नईम अख़्तर, नेता, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी
विधायकों का महत्व कम
नैशनल कॉन्फ्रेंस के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि 'इसका दूरगामी असर होगा, विधायकों की भूमिका कम हो जाएगी, उनके अधिकार व महत्व भी कम हो जाएंगे।'5 साल का कार्यकाल
इस प्रणाली में पाँच साल की योजना ग्राम पंचायत, ब्लॉक विकास परिषद और ज़िला विकास परिषद बनाएंगे। ब्लॉक विकास परिषद विकास योजना बना कर ज़िला योजना कमेटी को भेजेंगे।उल्टा कर रही है सरकार?
फ़िलहाल पंच व सरपंच के 13 हज़ार पद खाली पड़े हैं। आतंकवादियों के डर से और स्थानीय जनता के दबाव की वजह से कई पंचों-सरपंचों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। ऐसे में सरकार को सबसे पहले इन खाली पदों पर उपचुनाव कराना होगा। उसके बाद ही ज़िला विकास परिषद का चुनाव कराया जा सकता है।सवाल यह उठता है कि ऐसे समय जब राज्य में 6 मुख्य दलों ने पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुप्कर डेक्लेरेशन का गठन किया है और 5 अगस्त 2019 के पहले की स्थिति को बहाल करने का संघर्ष शुरू करने वाले हैं, सरकार का यह फ़ैसला बहुत ही ग़लत संकेत दे रहा है।
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