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प्रतीकात्मक तसवीर।

कश्मीर: पोस्ट के लिए फ़ोटोग्राफ़र पर यूएपीए; मीडिया की आवाज़ दबाने का प्रयास?

जम्मू-कश्मीर में क्या पत्रकारों की आवाज़ को दबाया जा रहा है और इसीलिए उनके ख़िलाफ़ पुलिस सख़्त कार्रवाई कर रही है? यह सवाल कश्मीर प्रेस क्लब द्वारा पत्रकारों पर कथित ग़ैर क़ानूनी कार्रवाई और राजनीतिक दलों द्वारा मीडिया की आवाज़ को दबाने के आरोप लगने के बाद उठ रहे हैं। उन्होंने ये आरोप तब लगाए हैं जब जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक महिला फ़ोटोग्राफ़र पर सख़्त क़ानून ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए लगाया है। इस क़ानून को देश की एकता और स्वायतता पर ख़तरा होने पर लगाया जाता है। पुलिस का आरोप है कि फ़ोटोग्राफ़र ने सोशल मीडिया पर 'देश विरोधी' पोस्ट डाले हैं। एक अन्य मामले में पुलिस ने 'द हिंदू' के पत्रकार पर 'फ़ेक न्यूज़' छापने का आरोप लगाकर एफ़आईआर दर्ज की है।

राज्य की राजनीतिक पार्टी पीडीपी और पीपल्स कॉन्फ़्रेंस ने पुलिस की इस कार्रवाई को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला क़रार दिया है। इसके साथ ही इस कार्रवाई को इसने कश्मीर में मीडिया को 'चुप कराने का खुला प्रयास' बताया है। 

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इधर, कश्मीर प्रेस क्लब ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर के लेफ़्टिनेंट गवर्नर जी सी मुर्मू को हस्तक्षेप कर केस हटवाने की माँग की है। प्रेस क्लब ने कहा है कि पत्रकारिता और साइबर क्राइम में काफ़ी बड़ा अंतर है। इसने कहा है कि ख़बर को खारिज करने का सरकार के पास पूरा अधिकार है, लेकिन ख़बरों पर पत्रकारों के ख़िलाफ़ केस दर्ज करना ग़ैरज़रूरी, ग़ैर क़ानूनी और कठोर कार्रवाई है।

फ़ोटोग्राफ़र के ख़िलाफ़ जो यूएपीए के तहत आरोप लगाया गया है उसमें पुलिस ने दावा किया है कि श्रीनगर में साइबर पुलिस स्टेशन में 18 अप्रैल को 'भरोसेमंद सूत्रों से सूचना मिली थी कि मसरत ज़ाहरा नाम की फ़ेसबुक यूजर आपराधिक उद्देश्यों के लिए बार-बार देश-विरोधी पोस्ट लिख रही है'। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने इस पर एक रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने बयान में कहा है, 'यूजर का पोस्ट देश विरोधी गतिविधियों को महिमामंडित करने के अलावा क़ानून-व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए जम्मू-कश्मीर को सार्वजनिक रूप से उकसा सकता है।' 

देश-दुनिया के कई समाचार संस्थानों ने श्रीनगर की रहने वाली 26 वर्षीय ज़ाहरा की खीची हुईं तसवीरें प्रकाशित की हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' से ज़ाहरा ने कहा कि वह सोशल मीडिया पर अधिकतर अपने किए हुए काम का लिंक साझा करती रही हैं। वह कहती हैं कि वह एक विशुद्ध रूप से फ़ोटो जर्नलिस्ट हैं और उनका कोई राजनीतिक या सामाजिक एजेंडा नहीं है। ज़ाहरा ने कहा, 'यह कश्मीर में पत्रकारों की आज़ादी को दबाने का प्रयास है'।

साइबर सेल के एसपी ताहिर अशरफ भाट्टी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'ज़ाहरा के ख़िलाफ़ मामला सोशल मीडिया पर सामग्री पोस्ट करने के लिए दर्ज किया गया था जिसमें फ़र्ज़ी ख़बरें दिखाई गई थीं और आतंकवाद और आतंकवादियों का महिमामंडन भी किया गया था।' 

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ज़ाहरा राज्य में दूसरी पत्रकार हैं जिनपर यूएपीए लगाया गया है। इससे पहले श्रीनगर के पत्रकार आसिफ़ सुलतान पर कथित तौर पर आतंकी संगठन को सहयोग देने के लिए यह क़ानून लगाया गया था। सुलतान अभी हिरासत में हैं।

एक अन्य मामले में पुलिस का दावा है कि उसे 19 अप्रैल को सूचना मिली कि शोपियाँ एनकाउंटर और उसके बाद के घटनाक्रमों पर पीरज़ादा आशिक़ नाम के पत्रकार द्वारा 'द हिंदू' अख़बार में ‘फ़ेक न्यूज़’ प्रकाशित किया जा रहा था। 

रविवार को प्रकाशित पीरज़ादा आशिक़ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 'जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने शनिवार को शोपियाँ में मारे गए दो आतंकवादियों के परिवारों को बारामूला में एक कब्रिस्तान से उनके शव को बाहर निकालने की अनुमति दी। पहले पुलिस ने उन्हें अनुमति नहीं दी थी'। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि 'शोपियाँ के उपायुक्त यासीन चौधरी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे'।

इस रिपोर्ट को लेकर ही दर्ज की गई एफ़आईआर के बाद बयान में पुलिस ने दावा किया कि न्यूज़ में दी गई जानकारी तथ्यात्मक रूप से ग़लत है और इस ख़बर से लोगों के मन में डर बैठ सकता है। बयान में यह भी कहा गया कि ख़बर में पत्रकार ने ज़िला के अधिकारियों से इसकी पुष्टि नहीं कराई। इस पर आशिक़ ने कहा कि उन्होंने शोपियाँ के परिवार के इंटरव्यू के आधार पर ख़बर बनाई और उनके पास रिकॉर्डिंग है। उन्होंने यह भी दावा किया कि शोपियाँ के डीसी के आधिकारिक बयान के लिए एसएमएस, वाट्सएप और ट्विटर से संपर्क किया। उन्होंने हैरानी जताई कि उस ख़बर को फ़ेक न्यूज़ क़रार दिया जा रहा है।
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क़मर वहीद नक़वी

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